सोमवार, 30 जून 2025

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी 11 जून 25 को नहीं रहे - सुरेश चन्द्र शुक्ल

 

लखनऊ विश्वविद्यालय के शिक्षक डॉ. कृष्णाजी नहीं रहे

- सुरेश चन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’



जन्म:14.11-1967 - मृत्यु:11.06-2025

मित्रों आपके साथ एक दुःखद सूचना साझा कर रहा हूँ कि
हम सबके प्रिय प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव नहीं रहे। डॉ. कृष्णा जी का लम्बी बीमारी के बाद बुधवार 11 जून को तड़के उनका आकस्मिक निधन हो गया।
उनका अंतिम संस्कार भैंसा कुंड, लखनऊ में किया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के प्रोफेसर वाई पी सिंह ने बताया कि आलमबाग सुजानपुरा के निवासी डॉ. कृष्णा जी श्रीवास्तव की सेवा 2029 तक थी
जो लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं कार्य परिषद् के सदस्य थे। उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखीं और शोध कराये।

लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी तथा आधुनिक भाषा विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर पवन अग्रवाल के अनुसार,
"डॉ. कृष्णा जी बड़े कर्मठ और अच्छे अध्यापक थे। रंगमंच के क्षेत्र में उनकी विशेषज्ञता थी। वह निरंतर विभागीय सहयोगियों, क्षेत्रों के साथ सौहाद्र बनाये रखते थे। उनकी मृदुभाषिता , सहजता और कर्मठता सदैव अनुकरणीय रहेगी।
उनके निधन से हम सभी हतप्रभ हैं ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करें और परिजन को इस गहन दुःख सहन करने का संबल प्रदान करें।"

आधुनिक भाषा विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित के अनुसार, " मेरे प्रिय शिष्य और सहयोगी कृष्णा जी हिन्दी विभाग में लगभग 35 वर्ष पूर्व  व्यावहारिक रंगमंच के सहायक रूप में आए थे। इस पाठ्यक्रम को चलाने में उन्होंने बहुत मदद की थी।"

कई महीनों से वह बीमार थे और इलाज करा रहे थे। उनकी बहन जी से समाचार मिल जाते थे।
एक अच्छे रंगकर्मी, मृदुभाषी मित्र की कमी को भरा नहीं जा सकता।

लखनऊ में जब भी फिल्माचार्य आनन्द शर्मा के निर्देशन में मेरे स्वरचित नाटक मंचित होते थे तब वह देखने ज़रूर आते थे। उनसे लखनऊ में रंगमंच और फिल्मी हस्तियों की भूमिका पर बहुत विचार होता था।

लखनऊ विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के अलावा उनके साथ पत्रकारिता विभाग में भी प्रो. कृष्णाजी श्रीवास्तव के साथ प्रो. मुकुल श्रीवास्तव जी से मिलने जाता था जो पत्रकारिता विभाग के विभागाध्यक्ष थे।

डॉ. कृष्णा जी के निर्देशन में मेरी (सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' की ) कहानियों पर शोधार्थी पूनम ने शोध किया था। उनके साथ विश्वविद्यालय, स्टेडियम और हजरतगंज में चाय पीने जाते थे। मेरा सपना है कि हमारा लखनऊ में निजी - सार्वजानिक थिएटर हों जहाँ रंगकर्मियों का मिलने और मंचन करने की सुविधा हो।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
11 जून 25 को (30.06.25 को प्रकाशित)

शुक्रवार, 27 जून 2025

फिर एक हादसा होना चाहिए - सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे

फिर एक हादसा होना चाहिए

    सुरेश चंद्र शुक्ल, ओस्लो, नार्वे 

कुछ नहीं रहा तेरी सियासत में,

अब तुमको स्तीफा देना चहिये।

सियासत से चिपकना है तुमको

फिर एक हादसा होना चाहिए।


यदि जीवन में सब नहीं मिलता,

तब प्रयास जारी रहना चाहिए।

तुमपर कोई हमला नहीं करता,

खुद पर हमला कराना चाहिए।


असफलता के दौर में तुमको,

विरोधी स्वर दबाना चाहिए?

अपने पाप  छिपाने के लिए,

नेहरू को गाली देना चाहिए।


आजादी में योगदान न सही,

देश को गुलाम बनाना चाहिए।

ले  लिया है हमने अथाह चंदा,

सबको गुलाम बनना चाहिए।


ओस्लो, २७.०६. २५ 

गुरुवार, 26 जून 2025

कितने गाज़ा - सुरेश चंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla

कितने गाज़ा 

 - सुरेश चंद्र शुक्ल 


कितने गाजा, मणिपुर जल रहे,

राजनीति के संत छल रहे। 

सत्य अहिंसा वाली सत्ता, 

बन जाये बर्रैया का छत्ता। 

 

अब न और सताओ जी,

अब तो लोकतंत्र बचाओ जी।


पचास साल पहले आपातकाल था 

घोषित पर निंदनीय बहुत था।

कितना बड़ा झूठ या सच है,

एक दशक से अघोषित आपातकाल है । 


राजनीति में थाली के बैगन,

आज काले तो कल उजले हैं।

लोकतंत्र का चाहे गला घुटे,

सब कठपुतली के पुतले हैं। 


भुखमरी और गरीबी में अव्वल,

जैसे वेंटिलेटर पर नैतिकता है?

बेरोजगारी, शिक्षा, मँहगाई 

आवाज पर पहरा, लोकतन्त्र है?


जहाँ न्यायालय आशा का दीपक, 

चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

हेट स्पीच -फेक न्यूज तंत्र बड़े,

जनता का हौंसला बड़ा है।


अक्षम जहाँ राज्य करते हों,

किसके हाथों की कठपुतली हैं।

कर्तव्यों का बोध नहीं है 

अधिकारों की माँग बढ़ी है।


यहाँ-वहां सब ओर थूकते,

देहरी, गलियाँ भवन भले हो।

तालाब, मार्ग, पार्क भले हो,

अतिक्रमण करते नहीं थकते हैं।


उद्द्योगपति से चंदा लेकर, 

सत्ता में आ उनके एजेंट बने हैं।

हवाई अड्डे, बंदरगाह, खानें बाटें,

कैसे ठेकेदार बने हैं। 


देश की रक्षा का सौदा कौड़ी के भाव,

क्या बहुत बड़ा अपराध किया है?

जनता से कैसा प्यार किया है,

उसे जन्म से ही कर्जदार किया है।


अब बहुत हुआ अब जाओ जी,

सब मिलकर लोकतंत्र बचाओ जी।

( ओस्लो, 26.06.25)






बुधवार, 18 जून 2025

नार्वे में लेखक सेमिनार - सुरेश चंद्र शुक्ल


नार्वे में लेखक सेमिनार 
सुरेश चंद्र शुक्ल कृत दीप  जो बुझते नहीं और 
शशि स्वरूप पराशर कृत तुम्हारा दुशाला का विमोचन

भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक द्वारा आयोजित लेखक सेमिनार में इंडिया नेटबुक्स द्वारा प्रकाशित सुरेश चंद्र शुक्ल कृत दीप  जो बुझते नहीं और शशि स्वरूप पराशर कृत तुम्हारा दुशाला का विमोचन संपन्न हुआ।


 


 



सोमवार, 9 जून 2025

राहुल गाँधी : मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

 वैश्विका में: ( 18.06.25)

मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

राहुल गाँधी, लोकसभा में विपक्ष के नेता


मैंने तीन फरवरी को संसद में दिए अपने भाषण और उसके बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पिछले साल हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया को लेकर चिंता जाहिर की थी. देश में हुए चुनावों को लेकर मैंने पहले भी संदेह जताया है. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि हर चुनाव में और हर जगह धांधली होती है, लेकिन जो हुआ है उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. मैं छोटी-मोटी गड़बड़ियों की नहीं, बल्कि हमारे राष्ट्रीय संस्थानों पर कब्जा करके बड़े पैमाने पर की जा रही धांधलियों की बात कर रहा हूं.

पहले के चुनावों में कुछ अजीब चीजें होती थीं, लेकिन 2024 का महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव पूरी तरह से विचित्र था. इसमें इतनी भयंकर धांधली हुई है कि सब कुछ छुपाने की तमाम कोशिशों के बावजूद भी गड़बड़ी के स्पष्ट सबूत दिखते हैं. यदि गैर-आधिकारिक जानकारियों को न भी देखा जाए, तब भी केवल आधिकारिक आंकड़ों से ही गड़बड़ियों का पूरा खेल सामने आ जाता है.

पहला चरण-अम्पायर तय करने वाली समिति में हेराफेरी
चुनाव आयुक्त अधिनियम, 2023 के द्वारा यह सुनिश्चित किया गया कि चुनाव आयुक्त प्रभावी रूप से प्रधानमंत्री और गृह मंत्री द्वारा 2:1 के बहुमत से चुने जाएं, जिससे तीसरे सदस्य, विपक्ष के नेता के वोट को अप्रभावी किया जा सके. यानी जिन लोगों को चुनाव लड़ना है, वही अम्पायर भी तय कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर उनकी जगह चयन समिति में एक कैबिनेट मंत्री को लाने का फैसला गले से नहीं उतरता. सोचिए, महत्वपूर्ण समिति से एक निष्पक्ष निर्णायक को हटाकर कोई अपनी पसंद का सदस्य क्यों लाना चाहेगा? जैसे ही आप खुद से यह सवाल पूछेंगे, आपको जवाब मिल जाएगा.

दूसरा चरण - फर्जी मतदाताओं के साथ मतदाता सूची मैं वृद्धि
चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में 2019 के विधानसभा चुनाव में पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 8.98 करोड़ थी. पांच साल बाद, मई 2024 के लोकसभा
चुनावों में यह संख्या बढ़कर 9.29 करोड़ हुई. लेकिन उसके सिर्फ पांच महीने बाद, नवंबर 2024 के विधानसभा चुनाव तक यह संख्या बढ़कर 9.70 करोड़ हो गई. यानी पांच साल में 31 लाख की मामूली वृद्धि, वहीं सिर्फ पांच महीनों में 41 लाख की जबरदस्त बढ़ोत्तरी! पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 9.70 करोड़ पहुंचना असाधारण है, क्योंकि यह सरकार के खुद के आंकड़ों के मुताबिक महाराष्ट्र के वयस्कों की कुल आबादी, 9.54 करोड़ से भी अधिक है.

तीसरा चरण फर्जी मतदाता जोड़ने के बाद, मतदान प्रतिशत भी बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाना
ज्यादातर मतदाताओं और ऑब्जर्वर्स के लिए महाराष्ट्र में मतदान का दिन बिल्कुल सामान्य था. बाकी जगहों की तरह ही, लोगों ने पंक्तिबद्ध होकर मतदान किया और घर चले गए. जो लोग शाम 5 बजे तक मतदान केंद्रों के अंदर पहुंच चुके थे, उन्हें मतदान करने की अनुमति थी. कहीं से भी किसी मतदान केंद्र पर ज्यादा भीड़ या लंबी कतारों की कोई खबर नहीं आई. लेकिन चुनाव आयोग के अनुसार, मतदान का दिन कहीं अधिक नाटकीय था. शाम 5 बजे तक मतदान प्रतिशत 58.22 था. हालांकि, मतदान खत्म होने के बाद भी मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ता ही रहा. अगली सुबह जो आखिरी आंकड़ा सामने आया, वह 66.05% था. यानी 7.83% की अचानक बढ़ोत्तरी हुई, जो कि करीब 76 लाख वोटों के बराबर है. वोट प्रतिशत में इस तरह की बढ़ोत्तरी महाराष्ट्र के पहले के किसी भी विधानसभा चुनाव से कहीं ज्यादा थी.
(संलग्न तालिका देखें).
वर्ष प्रोविजनल अंतिम अंतर (%)
मतदान (%) मतदान (%)
2009 60.00 59.50 -0.50
2014 62.00 63.08 1.08
2019 60.46 61.10 0.64
2024 58.22 66.05 7.83

चौथा चरण- चुनिंदा जगहों पर फर्जी वोटिंग ने बीजेपी को ब्रैडमैन बना दिया
इनके अलावा भी कई और गड़बड़ियां हैं. महाराष्ट्र में करीब 1 लाख बूथ हैं, लेकिन नए मतदाता ज्यादातर सिर्फ 12,000 बूथों पर ही जोड़े गए. ये बूथ उन 85 विधानसभा के थे, जहां भाजपा का पिछले लोकसभा चुनाव में बुरा प्रदर्शन था. मतलब हर बूथ में शाम 5 बजे के बाद औसतन 600 लोगों ने वोट डाला. अगर मान लें कि हर व्यक्ति को वोट डालने में एक मिनट भी लगता है, तब भी मतदान की प्रक्रिया 10 घंटे तक और जारी रहनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा कहीं नहीं हुआ। ऐसे में सवाल यह है कि ये अतिरिक्त वोट आखिर डाले कैसे गए? जाहिर है कि, इन 85 सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए ने जीत दर्ज की.
चुनाव आयोग ने मतदाताओं की इस बढ़ोत्तरी को 'युवाओं की भागीदारी का स्वागत योग्य ट्रेंड' बताया. लेकिन यह 'ट्रेंड' सिर्फ उन्हीं 12,000 बूथों तक सीमित रहा, बाकी 88,000 बूथों में नहीं। यदि यह मामला गंभीर नहीं होता, तो इसे एक शानदार चुटकुला समझकर हंसा जा सकता था.
कामठी विधानसभा इस धांधली की एक अच्छी केस स्टडी है. वर्ष 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वहां 1.36 लाख वोट मिले, जबकि बीजेपी को 1.19 लाख. 2024 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को फिर लगभग उतने ही, 1.34 लाख वोट मिले. लेकिन बीजेपी के वोट अचानक बढ़कर 1.75 लाख हो गए. यानी 56,000 वोटों की सीधी बढ़ोत्तरी. उन्हें यह बढ़त उन 35,000 नए मतदाताओं के कारण मिली जिन्हें इन दोनों चुनावों के बीच कामठी में जोड़ा गया था. ऐसा लगता है कि जिन लोगों ने लोकसभा चुनाव में वोट नहीं डाला था और जो नए मतदाता जुड़े, उनमें से लगभग सभी चुंबकीय ढंग से भाजपा की ओर खिंचते चले गए. इससे यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि वोट को आकर्षित करने वाला चुंबक कमल के आकार का था.
ऊपर चर्चा किए गए चार तरीकों को अपनाकर बीजेपी ने 2024 के विधानसभा चुनाव में जिन 149 सीटों पर चुनाव लड़ा, उनमें से 132 जीत लीं, यानी 89% की स्ट्राइक रेट. यह अब तक के किसी भी चुनाव में उसका सबसे बेहतर प्रदर्शन था. जबकि सिर्फ 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी की स्ट्राइक रेट मात्र 32% थी.

पांचवां चरण - सबूतों को छुपाने की कोशिश
चुनाव आयोग ने विपक्ष के हर सवाल का जवाब या तो चुप्पी से दिया या फिर आक्रामक रवैया अपनाकर. उसने 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनावों की फोटो सहित मतदाता सूची सार्वजनिक करने की मांग को सीधे खारिज कर दिया है. इससे भी गंभीर बात यह है कि विधानसभा चुनाव के ठीक एक महीने बाद, जब एक उच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतदान केंद्रों की वीडियोग्राफी और सीसीटीवी फुटेज साझा करने का निर्देश दिया, तो केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग से सलाह लेने के बाद निर्वाचनों के संचालन नियम, 1961 की धारा 93(2) (a) में बदलाव कर दिया. इस बदलाव के जरिये सीसीटीवी और इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डस तक पहुंच को सीमित कर दिया गया है. यह बदलाव और इसका समय दोनों ही अपने आप में बहुत कुछ बयां करते हैं. हाल ही में एक जैसे या डुप्लीकेट ईपीआईसी नंबर सामने आने के बाद फर्जी मतदाताओं को लेकर चिंताएं और गहरी हो गई हैं. हालांकि असली तस्वीर तो शायद इससे भी ज्यादा गंभीर है.
मतदाता सूची और सीसीटीवी फुटेज लोकतंत्र को मजबूत करने के औजार हैं, न कि ताले में बंद करके रखे जाने वाले सजावटी सामान. वो भी खासकर तब, जब लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ हो रहा हो. देश के लोगों का अधिकार है कि उन्हें भरोसा दिलाया जाए कि किसी भी रिकॉर्ड को नष्ट नहीं किया गया है और आगे भी ऐसा नहीं किया जाएगा. कई जगह यह आशंका जाहिर की जा रही है कि अगर रिकॉर्डस की जांच की जाए तो जानबूझकर कुछ मतदाताओं के नाम सूची से हटाने या मतदान केंद्र बदले जाने जैसी धांधली सामने आ सकती हैं. ये भी संदेह है कि इस तरह की चुनावी धांधली कोई एक बार की नहीं, बल्कि कई सालों से चलती आ रही है. इसमें कोई शक नहीं कि रिकॉर्डस की गहराई से जांच की जाए तो न सिर्फ पूरे धोखाधड़ी के तरीके का पता चल सकता है, बल्कि ये भी सामने आ सकता है कि इसमें किन-किन लोगों की भूमिका थी. लेकिन दुख की बात ये है कि विपक्ष और जनता, दोनों को हर कदम पर इन रिकॉर्डस तक पहुंचने से रोका जा रहा है.
यह समझना कठिन नहीं है कि महाराष्ट्र में नवंबर 2024 के चुनाव में इस हद तक धांधली क्यों की गई लेकिन चुनाव में धांधली मैच फिक्सिंग की तरह होती है. भले ही टीम मैच फिक्स करके एक खेल जीत जाए, लेकिन इससे संस्थाओं की साख और जनता के भरोसे का जो नुकसान होता है, उसे फिर से बहाल नहीं किया जा सकता.
मैच फिक्स किए गए चुनाव लोकतंत्र के लिए जहर हैं!

शनिवार, 7 जून 2025

आज ना जागे तो देर हो जायेगी Poem-Suresh Chandra Shukla

 आज ना जागे तो देर हो जायेगी 

                     - सुरेश चन्द्र शुक्ल, 07.06.25


लोकतंत्र में सरकार विपक्ष के जवाब दे।
प्रेस कांफ्रेंस कर हर रोज हिसाब दे।

संवाद के बिना स्वतंत्रता अधूरी है। 
हेट स्पीच, फेक न्यूज नफरत बढ़ाते हैं।

सवाल से कभी सरकार नहीं भागे।
जनता के बीच मजबूत करे लोकतंत्र।

सत्ता लोकतंत्र में कभी स्थाई नहीं होती, 
पारदर्शिता के बिना कभी न्याय नहीं होता।

राष्ट्रीय गोदी मीडिया दलाली जब करे
निष्पक्ष नहीं तो लोकतंत्र की हत्त्या करे? 

सरकार जब विपक्ष के सवालों का  जवाब नहीं देती।
वह शासन नहीं चला सकती, स्तीफा क्यों नहीं देती?
 
केंद्र सरकार राहुल के सवाल का जवाब दे।
सत्ताधारी पार्टी विपक्ष को गलियां बंद करे।

ट्रंप ने कहा, सरेंडर, नरेन्दर! 
और तुम जैसे भूमिगत हो गए?

सच्चाई से मत डरो, तुम मौन क्यों  प्रधान।
विपक्ष के सवालों का क्यों नहीं लिया संज्ञान?

कुटिल चाणक्य बहुत राष्ट्र भक्त था।
राष्ट्र के नाम पर लगता जैसे कलंक हो गए?

देश के हवाई-अड्डे, पोर्ट, खानें, राष्ट्र सम्पति 
क्यों अपने कार्पोरेटर दोस्त को दिया?

राहुल ने जब संसद में चिटठा खोल दिया,
संसद-कार्यवाही से क्यों अडानी नाम हटा दिया।


सांप्रदायिक संगठन खूब  धन कमा रहे।
नफरत भर युवाओं  को  दंगाई बना रहे।

तुम क्रूर, राष्ट्र विरुद्ध क्यों हो गए हो?
किसका दबाव पड़  रहा संसद में बताओ?


आज नयी तकनीक से कुछ नहीं छुपे?
कब्र में भी आदमी हो, कभी नहीं बचे।

कुकर्मों की अगर खुल जाती पोल।
देश में सजा, व विदेश में मखोल। 

लोकतंत्र में सवाल व संवाद जरुरी है।
यदि असफल रहे तो स्तीफा जरुरी है।

मित्र के लिए, संसद से बिना अनुमति के 
देश की संपत्ति बेचना क्यों मजबूरी?
कौन विदेशी शक्ति तुम्हें धमका रही, 
बताना बहुत जरुरी?

कोई जितने अपराध करे,  अब नहीं छिपेगा?
छोड़ो सब अपराध, संसद में माफ़ी मांगों यार!

सत्ता से दो त्याग पत्र, यदि 
प्रायश्चित नहीं करोगे?
कितने गुप्त बनाए व्यापार,
नहीं छुपा पाओगे?

राष्ट्र के विरुद्ध किए समझौते भेद खुलेंगे।
किसी के राज नहीं छिपेंगे,
जनता को जब पता चलेगा तो 
उनके व्यापार  नहीं फलेंगे?

आज ना जागे तो देर हो जायेगी।
निरंकुश सत्ता, तानाशाह बन जाएगी।

      - सुरेश चन्द्र शुक्ल,
             07.06.25