गुरुवार, 26 जून 2025

कितने गाज़ा - सुरेश चंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla

कितने गाज़ा 

 - सुरेश चंद्र शुक्ल 


कितने गाजा, मणिपुर जल रहे,

राजनीति के संत छल रहे। 

सत्य अहिंसा वाली सत्ता, 

बन जाये बर्रैया का छत्ता। 

 

अब न और सताओ जी,

अब तो लोकतंत्र बचाओ जी।


पचास साल पहले आपातकाल था 

घोषित पर निंदनीय बहुत था।

कितना बड़ा झूठ या सच है,

एक दशक से अघोषित आपातकाल है । 


राजनीति में थाली के बैगन,

आज काले तो कल उजले हैं।

लोकतंत्र का चाहे गला घुटे,

सब कठपुतली के पुतले हैं। 


भुखमरी और गरीबी में अव्वल,

जैसे वेंटिलेटर पर नैतिकता है?

बेरोजगारी, शिक्षा, मँहगाई 

आवाज पर पहरा, लोकतन्त्र है?


जहाँ न्यायालय आशा का दीपक, 

चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं है।

हेट स्पीच -फेक न्यूज तंत्र बड़े,

जनता का हौंसला बड़ा है।


अक्षम जहाँ राज्य करते हों,

किसके हाथों की कठपुतली हैं।

कर्तव्यों का बोध नहीं है 

अधिकारों की माँग बढ़ी है।


यहाँ-वहां सब ओर थूकते,

देहरी, गलियाँ भवन भले हो।

तालाब, मार्ग, पार्क भले हो,

अतिक्रमण करते नहीं थकते हैं।


उद्द्योगपति से चंदा लेकर, 

सत्ता में आ उनके एजेंट बने हैं।

हवाई अड्डे, बंदरगाह, खानें बाटें,

कैसे ठेकेदार बने हैं। 


देश की रक्षा का सौदा कौड़ी के भाव,

क्या बहुत बड़ा अपराध किया है?

जनता से कैसा प्यार किया है,

उसे जन्म से ही कर्जदार किया है।


अब बहुत हुआ अब जाओ जी,

सब मिलकर लोकतंत्र बचाओ जी।

( ओस्लो, 26.06.25)






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