प्रवासी साहित्य, हिन्दी साहित्य का अहम् हिस्सा है- शरद आलोक
प्रख्यात साहित्यकार आलोचक नामवर सिंह जी ने विदेश में बसे एक लेखक की पुस्तक का लोकार्पण करते हुए यह विचार व्यक्त किए कि प्रवासी साहित्य हिन्दी साहित्य का अहम् हिस्सा है।
आजकल हिन्दी में भी ब्लॉग का प्रचलन बढ़ा है। विदेशों में रहने वाले हिन्दी लेखकों ने वेब / नेट के माध्यम से हिन्दी को प्रचलित करने में जो भूमिका निभाई है वह बहुत सराहनीय है।
जब वेबदुनिया और बड़े समाचार पत्रों ने हिन्दी साहित्य को कम आंकते हुए उसे अपनी नेट पत्रिकाओं में स्थान देना कम कर दिया है उस दशा में विदेशों में रहने वाले हिन्दी लेखकों और हिन्दी प्रेमियों ने हिन्दी साहित्य में योगदान देकर और हिन्दी को माध्यम बना कर विचार विमर्श करके उसका विस्तार किया है।
जो लोग विदेश में रहकर हिन्दी का प्रयोग कर रहे हैं और जो लोग अपने बच्चों को और दूसरे बच्चों को हिन्दी पढ़ा रहे हैं वे हिन्दी की अभूतपूर्व सेवा कर रहे हैं। भारत में भी हिन्दी के अनन्य सेवकों की कमी नहीं है परन्तु हिदी के माध्यम से उच्च शिक्षा का प्रबंध न होने और अधिक से अधिक इस समबन्ध में कदम न उठाने के कारण भारत की राष्ट्रभाषा और अन्तर-राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को वह मुकाम नहीं मिल रहा है। भारत के सभी विश्विद्द्यालय में हिन्दी के विभाग नहीं हैं और भारत के सभी राजदूतावासों में हिन्दी के अधिकारी नहीं है। आने वाले समय में यह कमियाँ भी पूरी हो जायेंगी क्योंकि नवाबी तरीके आ रहे बदलाव में तो समय लगेगा ही।
2 टिप्पणियां:
नीतिगत निर्णय लेने वाले जब हिन्दी मे सोचना शुरू करेंगे तब यह समय आयेगा
हम इस नये बदलाव की प्रतिक्षा कर रहे हैं।
आप ब्लॉग की दुनिया में नजर आये, बड़ी प्रसन्नता हुई ।
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