रविवार, 10 अक्टूबर 2010

दूसरा दौर बरेली में /ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता अखलाख शहरयार और ओ एन वी कुरूप को बहुत-बहुत बधाई- शरद आलोक

दूसरा दौर बरेली में -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


गोयल जी के दूसरे अभिनन्दन ग्रन्थ का लोकार्पण बरेली में
मैं बरेली, (उत्तर प्रदेश) में एक दिन रेलवे स्टेशन पर रेल से उतरा देखा कि फिल्म उमराव जान में गीत लिखने वाले शायर की जन्मभूमि के नगर बरेली में पानी बरस रहा है। उस दिन बरेली के एक दूसरे शायर राम प्रकाश गोयल के दूसरे अभिनन्दन ग्रन्थ का विमोचन और उनके युवा पुत्र विवेक गोयल कि स्मृति में पुरस्कार दिया जाना है। मुझे विशिष्ट अतिथि और गुरुनानक देव विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी प्रोफ़ेसर हर्मेन्द्र सिंह बेदी मुख्य अतिथि थे। मुरादाबाद के जाने माने साहित्यकार महेश दिवाकर भी इस कार्यक्रम में भाग लेने आये थे। यह मेरा बरेली आने का दूसरा मौका था। मेरे मन से अचानक कविता की पंक्तियाँ फूटने लगीं।
'बरेली की भीगी सारी गली,
तिपहिये में बैठे ढूँढें
मझधार में भीगे
बादल गरजे, बिजली चमकी,
सुबह के खाए
शाम के भूखे
मेहमानों की खातिरदारी खली
अपनों से ज्यादा पड़ोसी को फिकर
आँचल में छिपाए महुआ भली
दिवाकर जी के आँगन में बारिश
आदर में सूखी डली।

अपने कोसमझ महा प्राण 'निराला'
भूख गयी सिमटी।
(कार्यक्रम हुआ रेडियो में विदेशों में हिंदी पर साक्षात्कार लिया गया । कार्यक्रम अच्छा था भले ही कार्यक्रम के बाद हवापानी का नाश्ता करके आगे बढ़ना हमारी मजबूरी थी बेदी जी से और दिवाकर जी से बातचीत करने का जो मोह पाल रखा था।)
मोरलिया जी के लोकगीतों की गोरी
ज्यों सावन (साजन) को तरसी
आठ घंटे काली रात में
मार्ग अटपटे, उबड़ -खाबड़
मोटर गिरी मिलीं
बाढ़ नहीं वह काली रात थी
मेहमानों पर गुजरी
उल्लास साथ थे फिर भी
रो हंस रातभर खूब छीटाकशी।

गोयल जी को चैन नींद की
बजी मेरी वंशी
अच्छा होता
पैदल चलते फुटपात छानते
कम से कम वह साथ बिठाते
बचपन के दिन लौट आते तब
उन अमीरन और तुलसी के
फिर चरण धुलाकर
उन्हें पोछते
ऊंचों से ना कभी मिली है
आशा, पानी की गगरी
क्या जाने वह गैरों का मन
जिसने फुत्पात पर ना रात गुजारी.
इसी लिए थी मति गयी मारी
मोटर के आगे रिक्शे छोड़ कर
जब आठ घंटों में सफ़र तय किया
हाय बरेली
अलविदा मुरादाबाद दो पल साथ सही।
जब कभी मिलेंगे
मिलते ही कहेंगे अलविदा।
क्योंकि संगम
मिलन -विरह का मापदंड है
प्रेम की मिली सजा।
हाय बाय का संगम जीवन
सारी दुनिया तारी।
दूसरा दौर बरेली में, रेल में रात गुजारी।
शहरयार बरेली अपना
पर ना करना इससे यारी ।

यह तो बात थी उस रात की जब हमने मुरादाबाद तक जाने में ८ घंटे लगाये और मौत से बार-बार बचे।
आइये कुछ अच्छी खुशहाली की बात करते हैं अपने दोस्त शायर अखलाख मुहम्मद खान शहरयार को और कुरूप जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिए नामित किये जाने के लिए बहुत-बहुत बधाई।
उर्दू के नामचीन शायर अखलाक मुहम्मद खान शहरयार को 44वां ज्ञानपीठ पुरस्कार



देने की शुक्रवार को घोषणा की गई। उन्हें यह पुरस्कार वर्ष 2008 के लिए दिया जाएगा। साथ ही मलयालम के प्रसिद्ध कवि व साहित्यकार ओ.एन.वी. कुरुप को वर्ष 2007 के लिए 43वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया जाएगा।
जाने-माने लेखक और ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता डॉ. सीताकांत महापात्र की अध्यक्षता में ज्ञानपीठ चयन समिति की बैठक में दोनों साहित्यकारों को पुरस्कृत करने का निर्णय लिया गया। चयन समिति में प्रो. मैनेजर पांडे, डॉ. के. सच्चिदानंदन, प्रो. गोपीचंद नारंग, गुरदयाल सिंह, केशुभाई देसाई, दिनेश मिश्रा और रवींद्र कालिया शामिल थे। उर्दू के जाने-माने शायर शहरयार का जन्म 1936 में आंवला [बरेली, उत्तरप्रदेश] में हुआ। इस 74 वर्षीय शायर का पूरा नाम कुंवर अखलाक मुहम्मद खान है, लेकिन इन्हें इनके उपनाम शहरयार से ही ज्यादा पहचाना जाना जाता है।
वर्ष 1961 में उर्दू में स्नातकोत्तर डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1966 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उर्दू के लेक्चरर के तौर पर काम शुरू किया। वह यहीं से उर्दू विभाग के अध्यक्ष के तौर पर सेवानिवृत्त भी हुए। बॉलीवुड की कई हिट हिंदी फिल्मों के लिए गीत लिखने वाले शहरयार को सबसे ज्यादा लोकप्रियता 1981 में आई उमराव जान से मिली। इस वक्त की उर्दू शायरी को गढने में अहम भूमिका निभाने वाले शहरयार को उत्तर प्रदेश उर्दू अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, दिल्ली उर्दू पुरस्कार और फिराक सम्मान सहित कई पुरस्कारों से नवाजा गया।
वर्ष 2007 के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार पाने वाले कुरुप का जन्म 1931 में कोल्लम जिले में हुआ। वह समकालीन मलयालम कविता की आवाज बने। उन्होंने प्रगतिशील लेखक के तौर पर अपने साहित्य सफर की शुरुआत की और वक्त के साथ मानवतावादी विचारधारा को सुदृढ किया। साथ ही सामाजिक सोच और सरोकारों का दामन भी थामे रखा। बाल्मीकि, कालीदास और टैगोर से प्रभावित कुरुप की उज्जयिनी और स्वयंवरम जैसी कविताओं ने मलयालम कविता को समृद्ध किया। उनकी कविता में संगीतमयता के साथ मनोवैज्ञानिक गहराई भी है। कुरुप के अब तक 20 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं और उन्होंने गद्य लेखन भी किया है। उनको केरल साहित्य अकादमी पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, वयलार पुरस्कार और पद्मश्री से नवाजा गया है।
[शुक्रवार, 24 सितंबर 2010]