बुधवार, 20 अक्टूबर 2010

भारत में प्रेस स्वतंत्रता- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

भारत में प्रेस स्वतंत्रता- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' (लेख नीचे दिया है)
सोहन लाल सुखाड़िया विश्व विद्यालय में हिंदी दिवस (१४ सितम्बर) पर आयोजित गोष्ठी

मंच पर बाएँ से डॉ आशीष सिसोदिया, प्रो नवीन नंदवाना शरद आलोक और माइक पर प्रो नीतू परमार
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http://picasaweb।google.no/speil.nett/2010KanpurAurUdaypurUniversity#
क्षत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर में
भावी पत्रकारों (शिक्षार्थियों) और मीडियाकर्मियों के साथ
कानपुर विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में २१ सितम्बर २०१० को व्याख्यान के बाद प्रो अरविन्द सिंह के कक्ष में चित्र
भारत में प्रेस स्वतंत्रता- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
भारत एक प्रजातंत्र है। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रतिबन्ध के लिए तो अनेक उपाय बताये गए हैं जबकि प्रेस स्वतंत्रता का अलग कोई अध्याय नहीं है। संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में दिए गए १९ ग के अंतर्गत बोलने की आजादी की तरह प्रेस स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। भारतीय संविधान में भी प्रेस की स्वतंत्रता का एक अलग अध्याय होता तो क्या कहने थे। जो भी हो भारत में अच्छी खासी प्रेस स्वतंत्रता है।
प्रेस आजादी में भारत १२२ वें स्थान पर
मुझे कानपुर विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग में प्रोअरविन्द सिंह और डॉ योगेन्द्र प्रताप सिंह के सानिध्य में २१ सितम्बर २०१० को और १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर मोहन लाला सुखाड़िया विश्वविद्यालय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रो नवीन नन्दवाना के सानिध्य में हिंदी पत्रकारिता और उसमें निरंतर बढ़ रहे पाठकों की संख्या पर विचार रखने का अवसर मिला। शिक्षार्थियों के अतिरिक्त अध्यापकों का भी उत्साह देखते नहीं बनता था जो हिंदी को रोजगार की भविष्य की भाषा बनाने में सहयोग देगी।
हिंदी का प्रचार-प्रसार देश विदेश में बहुत तेजी से बढ़ रहा है जो उसके लिए उज्जवल भविष्य का संकेत है।
पत्रकार संगठन रिपोर्टर विदाउट बोर्डर्स ने कुछ यूरोपीय देशों में प्रेस पर बढ़ते नियंत्रण की आलोचना की है, लेकिन छह देशों की प्रेस स्वतंत्रता के लिए सराहना की है। प्रेस की आजादी पर न्यूयार्क से रिपोर्टर विदाउट बॉर्डर्स ने कहा है कि फिनलैंड, आइसलैंड, नीडरलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और स्विट्जरलैंड 2002 में सूची की शुरू होने के बाद से ही चोटी पर है। पत्रकार संगठन का कहना है कि इसके साथ वे पत्रकारों के सम्मान और मीडिया की सुरक्षा में अनुकरणीय उदाहरण हैं।पत्रकार संगठन का कहना है कि इसके विपरीत यूरोपीय संघ मीडिया की आजादी के सवाल पर नेतृत्व खोने के खतरे में है। हालाँकि यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों में से 13 रिपोर्टर विदाउट बोर्डर्स की सूची में पहले 20 में शामिल हैं, लेकिन बाकी 14 सूची में बहुत नीचे हैं।यूरोपीय संघ के महत्वपूर्ण सदस्यों में शामिल फ्रांस 44वें, इटली 49वें, रुमानिया 52वें और ग्रीस तथा बुल्गारिया बेनिनकेन्या और कोमोरोन के साथ 70वें स्थान पर हैं। जर्मनी की स्थिति पिछले साल के मुकाबले सुधरी है और वह 17वें स्थान पर पहुँच गया है जबकि अमेरिका 20वें स्थान पर है। भारत 17 स्थान गिरकर 122वें स्थान पर पहुँच गया है।रिपोर्टर विदाउट बोर्डर्स के महासचिव जाँ फ्रांसोआ यूलियार्ड का कहना है कि प्रेस की आजादी की रक्षा एक संघर्ष बना हुआ है। पुराने यूरोप के लोकतांत्रिक देशों में चौकन्ना रहने का संघर्ष और विश्व भर के निरंकुश शासनों में दमन और अन्याय के खिलाफ संघर्ष।उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और ब्लॉगरों की स्थिति संस्था के लिए स्थायी चिंता की वजह है। जूलियार्ड ने चीन से नोबेल पुरस्कार विजेता लिऊ शियाओबो को रिहा करने की माँग की। 178 देशों की सूची में चीन 171वें स्थान पर है।

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