हिन्दी ब्लागलेखन की विस्तृत भूमिका
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो, नार्वे
(लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' गत ३२ वर्षों से नार्वे में हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहे है और गत 25 वर्षों से नार्वे प्रकाशित द्वैमासिक, द्वैभाषिक (हिन्दी-नार्वेजीय) पत्रिका स्पाइल-दर्पण के सम्पादक और 'वैश्विका' साप्ताहिक के संस्थापक हैं और स्वयं ब्लाग लेखन भी करते हैं. विदेशों में हिन्दी साहित्य और मीडिया में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का नाम महत्वपूर्ण है. आपके दो कहानी संग्रहों और आठ काव्य संग्रहों के अलावा नाटक संग्रह तथा अनुवाद साहित्य में नार्वे, स्वीडेन और डेनमार्क के साहित्य से हिन्दी में अनुवाद भी किया है: अनुवाद में हेनरिक इब्सेन के नाटकों 'गुड़िया का घर' और 'मुर्गाबी' कथाओं में 'नार्वे की लोककथायें' तथा डेनमार्क के एच सी अन्दर्सन कथायें तथा नार्वे, स्वीडेन और डेनमार्क के प्रसिद्द कवियों की कविताओं का अनुवाद भी किया है. )
आज सन् 2012 में हिन्दी ब्लॉग लेखन की बड़ी भूमिका है. एक दशक से हिंदी ब्लागिंग ने जन संचार में एक धूम मचाई है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है.
भारत में मैंने हिन्दी को वैश्विक परिदृश्य में एक चमकते सितारे की तरह देखा है.
शोध पत्रिकाओं की अहम् भूमिका
पहले हिन्दी में शोध पत्रिकाओं का अभाव था पर जिस तरह अनेक नयी-नयी शोध पत्रिकायें प्रकाशित हो रही हैं वह हिन्दी के उज्जवल भविष्य की ओर संकेत कर रही हैं. विश्वविद्यालयों में शोधकर्ता और शोध गुरुओं द्वारा हिन्दी के वैश्विक धरातल पर स्तरीय वैश्विक शोध द्वारा हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है. जैसा कि अनेक दशकों पूर्व अंग्रेजी और यूरोप में अभी भी अनेक भाषाओँ के शोध मात्र सरकारी धन से ही संपन्न हो रहे हैं वहाँ हिन्दी का प्रचार-प्रसार निस्वार्थ भाव से देश विदेश के हिन्दी प्रचारक, लेखक और समाजसेवी कर रहे है. हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं को चाहिए कि वे अन्य भारतीय भाषाओँ की अच्छी -अच्छी रचनाओं और शोध कार्य को हिन्दी पाठकों के सामने रोचक और स्तरीय तरीके से प्रस्तुत करें. इससे किसी को भी हिन्दी द्वारा सभी भारतीय भाषाओँ के साहित्य के दर्शन होंगे. अनेक प्रवासी लेखकों और अनुवादकों ने विदेशी साहित्य को हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओँ में अनुवाद किया है और आगे भी कर रहे हैं जो हमारी भाषा और साहित्य के असीमित विस्तार की तरफ संकेत करता है. शोध पत्रिकाओं ने अपने नेट पृष्ठ भी बनाये हैं और ब्लागलेखन में भी सम्मिलित किया है.
फोन पर हिन्दी (देवनागरी) में सूचना और सन्देश
फोन पर हिन्दी (देवनागरी) में सूचना और सन्देश भेजना शुरू हो गया है. इंटरनेट पर तो हिन्दी में पत्राचार बहुत पहले शुरू हो गया था. दो दशक पूर्व वेबदुनिया ने पाठकों को अपने पृष्ट हिन्दी में बनाने और ई-पत्र की हिन्दी में सुविधा दे रखी थी. इसमें मुझे भी जुड़ने का अवसर दो दशक पूर्व मिला था. हालाँकि वह उतना विकसित नहीं था पर शुरुआत को बहुत प्रशंसनीय कहा जाएगा.
भारत सरकार के आई टी मंत्रालय ने तो हिन्दी के प्रोग्राम को निशुल्क देकर हिन्दी का बढ़-चढ़कर प्रचार-प्रसार किया था. इस सम्बन्ध में मैं एक बार रेलवे में राजभाषा के तत्कालीन निदेशक डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा के कहने पर ओम विकास जी से मिलने गया था. ओम विकास जी और विजय कुमार मल्होत्रा की भी इंटरनेट में हिन्दी के विकास और प्रसार में महवपूर्ण भूमिका है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है.
विदेशों में बसे हिन्दी के रचनाकारों के हिन्दी ब्लॉग लेखन ने नये आयाम दिए हैं. चाहे वेब पत्रिकाओं के स्तम्भ हों, या स्थापित और छोटे-बड़े समाचार पत्र के स्तम्भ समाचार वे ब्लॉग से जुड़े दिखाई देते हैं. नार्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल का ब्लाग, यू के कथा, अभिव्यक्ति नेट पत्रिका के साहित्यिक समाचार और सैकड़ों इसके अच्छे उदाहरण हैं. इस लेख में विस्तार से लिख पाना संभव नहीं हो रहा है पर जैसे ही लेखक को और जानकारी प्राप्त होगी निकट भविष्य में उसे प्रस्तुत किया जायेगा.
भारत में तो ब्लागलेखन के अनेक समूह वेब पर उभर के आये हैं. ब्लॉग लेखन पर पुस्तकें भी छप रही हैं भले ही वह अपनी छमता के कारण ब्लाग लेखन के विस्तार को अपनी पुस्तक में समाहित नहीं कर पाये हैं.
विश्व हिन्दी सम्मलेन न्यूयार्क में ब्लॉग लेखन पर गोष्ठी
ब्लॉग लेखन करने वाले प्रवासी लेखकों की एक बैठक सन् २००७ में विश्व हिन्दी सम्मलेन न्यूयार्क में होटल के प्रेस कक्ष में हुई थी. इसमें अनेक मीडिया के सदस्य भी उपस्थित थे. एक कवि गोष्ठी भी संपन्न हुई थी जिसका सीधा फोन के जरिये अमरीकी रेडियो में प्रसारण भी हुआ था इस कवि गोष्ठी में अभिनव शुक्ल आदि की प्रमुख भूमिका थी. दोनों गोष्ठियों में लेखक (सुरेशचन्द्र शुक्ल) स्वयं भी उपस्थित थे. इसमें विदेश विभाग के प्रतिनिधि के अलावा एक भारतीय दूतावास के हिन्दी अधिकारी भी उपस्थित थे.
विश्वहिंदी सम्मलेन समाचार बुलेटिन में स्थान की कमी और पहुँच के कारण ये समाचार प्रकाश में नहीं आ पाये. दूसरा कारण ये विषय विश्व हिन्दी सम्मलेन के किसी सत्र में समाहित नहीं किये गये थे. विदेशों में किये जा रहे हिन्दी ब्लागलेखन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि इनके लेखन में विविधता के साथ-साथ विस्तार भी है. हिन्दी की सरकारी और गैर सरकारी पत्रिकायें ब्लॉग लेखन और विदेशों में जा रहे हिन्दी लेखन की सूचना प्राप्त करने के लिए प्रयास कम करती हैं. ये पत्रिकायें प्राय भेजी गयी और अपनी परिधि में प्राप होने वाली सूचनायें और सामग्री प्रकाशित कर अपनी लेख संबंधी जरूरतें पूरा करती हैं.
आशा है कि आगे चलकर इस पर शोध किया जाएगा और नयी सूचनाओं और प्रगति की सूचनाओं के साथ देश विदेश की हिन्दी पत्रिकायें हिन्दी ब्लागलेखन पर विस्तृत और विश्वसनीय सूचनायें प्रकाशित करेंगी.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जरूरी विचारों का प्रकाशन
प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा अपने पत्रों के ब्लॉग समूह स्थापित किये गये हैं और पाठकों, लेखकों और अपने पत्रकारों को उसमें सम्मिलित भी किया है. ऑनलाइन प्रतिक्रिया को भी प्रकाशित करके हिन्दी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वह आयाम दिया है जो पहले अनेक कारणों से संभव नहीं था. आवाज दबाने से कभी भी हल नहीं निकलता और अभिव्यक्ति होने से उसके जवाब में भी प्रतिक्रिया होती है जो एक जनतंत्र और खुले समाज के लिए जरूरी है. किसके मन में क्या है उसका भी पता चल जाता है.
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो, नार्वे
(लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' गत ३२ वर्षों से नार्वे में हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर रहे है और गत 25 वर्षों से नार्वे प्रकाशित द्वैमासिक, द्वैभाषिक (हिन्दी-नार्वेजीय) पत्रिका स्पाइल-दर्पण के सम्पादक और 'वैश्विका' साप्ताहिक के संस्थापक हैं और स्वयं ब्लाग लेखन भी करते हैं. विदेशों में हिन्दी साहित्य और मीडिया में महत्वपूर्ण योगदान देने वालों में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का नाम महत्वपूर्ण है. आपके दो कहानी संग्रहों और आठ काव्य संग्रहों के अलावा नाटक संग्रह तथा अनुवाद साहित्य में नार्वे, स्वीडेन और डेनमार्क के साहित्य से हिन्दी में अनुवाद भी किया है: अनुवाद में हेनरिक इब्सेन के नाटकों 'गुड़िया का घर' और 'मुर्गाबी' कथाओं में 'नार्वे की लोककथायें' तथा डेनमार्क के एच सी अन्दर्सन कथायें तथा नार्वे, स्वीडेन और डेनमार्क के प्रसिद्द कवियों की कविताओं का अनुवाद भी किया है. )
आज सन् 2012 में हिन्दी ब्लॉग लेखन की बड़ी भूमिका है. एक दशक से हिंदी ब्लागिंग ने जन संचार में एक धूम मचाई है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए वह कम है.
भारत में मैंने हिन्दी को वैश्विक परिदृश्य में एक चमकते सितारे की तरह देखा है.
शोध पत्रिकाओं की अहम् भूमिका
पहले हिन्दी में शोध पत्रिकाओं का अभाव था पर जिस तरह अनेक नयी-नयी शोध पत्रिकायें प्रकाशित हो रही हैं वह हिन्दी के उज्जवल भविष्य की ओर संकेत कर रही हैं. विश्वविद्यालयों में शोधकर्ता और शोध गुरुओं द्वारा हिन्दी के वैश्विक धरातल पर स्तरीय वैश्विक शोध द्वारा हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया जा रहा है. जैसा कि अनेक दशकों पूर्व अंग्रेजी और यूरोप में अभी भी अनेक भाषाओँ के शोध मात्र सरकारी धन से ही संपन्न हो रहे हैं वहाँ हिन्दी का प्रचार-प्रसार निस्वार्थ भाव से देश विदेश के हिन्दी प्रचारक, लेखक और समाजसेवी कर रहे है. हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं को चाहिए कि वे अन्य भारतीय भाषाओँ की अच्छी -अच्छी रचनाओं और शोध कार्य को हिन्दी पाठकों के सामने रोचक और स्तरीय तरीके से प्रस्तुत करें. इससे किसी को भी हिन्दी द्वारा सभी भारतीय भाषाओँ के साहित्य के दर्शन होंगे. अनेक प्रवासी लेखकों और अनुवादकों ने विदेशी साहित्य को हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओँ में अनुवाद किया है और आगे भी कर रहे हैं जो हमारी भाषा और साहित्य के असीमित विस्तार की तरफ संकेत करता है. शोध पत्रिकाओं ने अपने नेट पृष्ठ भी बनाये हैं और ब्लागलेखन में भी सम्मिलित किया है.
फोन पर हिन्दी (देवनागरी) में सूचना और सन्देश
फोन पर हिन्दी (देवनागरी) में सूचना और सन्देश भेजना शुरू हो गया है. इंटरनेट पर तो हिन्दी में पत्राचार बहुत पहले शुरू हो गया था. दो दशक पूर्व वेबदुनिया ने पाठकों को अपने पृष्ट हिन्दी में बनाने और ई-पत्र की हिन्दी में सुविधा दे रखी थी. इसमें मुझे भी जुड़ने का अवसर दो दशक पूर्व मिला था. हालाँकि वह उतना विकसित नहीं था पर शुरुआत को बहुत प्रशंसनीय कहा जाएगा.
भारत सरकार के आई टी मंत्रालय ने तो हिन्दी के प्रोग्राम को निशुल्क देकर हिन्दी का बढ़-चढ़कर प्रचार-प्रसार किया था. इस सम्बन्ध में मैं एक बार रेलवे में राजभाषा के तत्कालीन निदेशक डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा के कहने पर ओम विकास जी से मिलने गया था. ओम विकास जी और विजय कुमार मल्होत्रा की भी इंटरनेट में हिन्दी के विकास और प्रसार में महवपूर्ण भूमिका है जिसे भुलाया नहीं जा सकता है.
विदेशों में बसे हिन्दी के रचनाकारों के हिन्दी ब्लॉग लेखन ने नये आयाम दिए हैं. चाहे वेब पत्रिकाओं के स्तम्भ हों, या स्थापित और छोटे-बड़े समाचार पत्र के स्तम्भ समाचार वे ब्लॉग से जुड़े दिखाई देते हैं. नार्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल का ब्लाग, यू के कथा, अभिव्यक्ति नेट पत्रिका के साहित्यिक समाचार और सैकड़ों इसके अच्छे उदाहरण हैं. इस लेख में विस्तार से लिख पाना संभव नहीं हो रहा है पर जैसे ही लेखक को और जानकारी प्राप्त होगी निकट भविष्य में उसे प्रस्तुत किया जायेगा.
भारत में तो ब्लागलेखन के अनेक समूह वेब पर उभर के आये हैं. ब्लॉग लेखन पर पुस्तकें भी छप रही हैं भले ही वह अपनी छमता के कारण ब्लाग लेखन के विस्तार को अपनी पुस्तक में समाहित नहीं कर पाये हैं.
विश्व हिन्दी सम्मलेन न्यूयार्क में ब्लॉग लेखन पर गोष्ठी
ब्लॉग लेखन करने वाले प्रवासी लेखकों की एक बैठक सन् २००७ में विश्व हिन्दी सम्मलेन न्यूयार्क में होटल के प्रेस कक्ष में हुई थी. इसमें अनेक मीडिया के सदस्य भी उपस्थित थे. एक कवि गोष्ठी भी संपन्न हुई थी जिसका सीधा फोन के जरिये अमरीकी रेडियो में प्रसारण भी हुआ था इस कवि गोष्ठी में अभिनव शुक्ल आदि की प्रमुख भूमिका थी. दोनों गोष्ठियों में लेखक (सुरेशचन्द्र शुक्ल) स्वयं भी उपस्थित थे. इसमें विदेश विभाग के प्रतिनिधि के अलावा एक भारतीय दूतावास के हिन्दी अधिकारी भी उपस्थित थे.
विश्वहिंदी सम्मलेन समाचार बुलेटिन में स्थान की कमी और पहुँच के कारण ये समाचार प्रकाश में नहीं आ पाये. दूसरा कारण ये विषय विश्व हिन्दी सम्मलेन के किसी सत्र में समाहित नहीं किये गये थे. विदेशों में किये जा रहे हिन्दी ब्लागलेखन के योगदान को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि इनके लेखन में विविधता के साथ-साथ विस्तार भी है. हिन्दी की सरकारी और गैर सरकारी पत्रिकायें ब्लॉग लेखन और विदेशों में जा रहे हिन्दी लेखन की सूचना प्राप्त करने के लिए प्रयास कम करती हैं. ये पत्रिकायें प्राय भेजी गयी और अपनी परिधि में प्राप होने वाली सूचनायें और सामग्री प्रकाशित कर अपनी लेख संबंधी जरूरतें पूरा करती हैं.
आशा है कि आगे चलकर इस पर शोध किया जाएगा और नयी सूचनाओं और प्रगति की सूचनाओं के साथ देश विदेश की हिन्दी पत्रिकायें हिन्दी ब्लागलेखन पर विस्तृत और विश्वसनीय सूचनायें प्रकाशित करेंगी.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए जरूरी विचारों का प्रकाशन
प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा अपने पत्रों के ब्लॉग समूह स्थापित किये गये हैं और पाठकों, लेखकों और अपने पत्रकारों को उसमें सम्मिलित भी किया है. ऑनलाइन प्रतिक्रिया को भी प्रकाशित करके हिन्दी में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को वह आयाम दिया है जो पहले अनेक कारणों से संभव नहीं था. आवाज दबाने से कभी भी हल नहीं निकलता और अभिव्यक्ति होने से उसके जवाब में भी प्रतिक्रिया होती है जो एक जनतंत्र और खुले समाज के लिए जरूरी है. किसके मन में क्या है उसका भी पता चल जाता है.