माँ बाप को बच्चा दिलाने के लिए भारतीय अधिकारी नॉर्वे में
(साभार 'समाचार पत्र' २७.०२.१२) ओस्लो. भारत और नार्वे के मध्य अच्छे सम्बन्ध हैं. भारतीय सरकार ने बच्चों को भारत ले जाने के लिए सार्थक प्रयत्न किये हैं जिसमें भारतीय राजदूत और नार्वेजीय राजदूत एक सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को नॉर्वे भेजा गया है ताकि वो एक भारतीय दंपति को उनके बच्चों को सौंपने के सिलसिले में बातचीत कर सकें.
विशेष दूत मधूसुदन गणपति नॉर्वे के विदेश मंत्री और दूसरे उच्च अधिकारियों से बातचीत करेंगे.
इससे जुड़ी ख़बरें‘देखभाल’ के लिए बच्चे और मां-बाप जुदा नॉर्वे में बच्चों से मिले भारतीय दंपति 'ऐसा भी नहीं कि बच्चे अनाथ हैं और उनका कोई वतन नहीं'. भारत भारतीय विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता सईद अकबरुद्दीन ने ट्वीट पर कहा कहा कि विशेष दूत गणपति सभी जरूरी अधिकारियों से मिलेंगे.
नॉर्वे के बाल कल्याण अधिकारियों ने पिछले साल मई में अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी सागरिका को उनके दो छोटे बच्चों को ये कहते हुए उनसे छीन लिया कि वे बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रहे.
इस घटना को लेकर ख़ासा हंगामा हुआ और भारत सरकार को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है जिसने नॉर्वे के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया है.
कुछ दिनों पहले नॉर्वे के तीसरे बड़े शहर स्तावान्गेर में काम कर रहे अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी सागरिका भट्टाचार्य को तीन महीने बाद अपने बच्चों से मिलने दिया गया था.
तीन वर्षीय अभिज्ञान और एक वर्षीया ऐश्वर्या - से उनकी कुछ घंटे की मुलाक़ात बाल कल्याण विभाग के एक दफ़्तर में हुई.
फ़िलहाल नॉर्वे के अधिकारी इन बच्चों को उनके चाचा को सौंपे जाने के बारे में विचार कर रहे हैं.
नॉर्वे के अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि अगले दो हफ़्ते में इस बारे में कुछ तय कर लिया जाएगा.
मगर बच्चों के माता-पिता का कहना है कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है और उन्हें बताया गया है कि बच्चों को सौंपे जाने को लेकर देर हो सकती है.
इस बीच बंगाल में रहने वालों उन बच्चों के नाना-नानी दिल्ली में नॉर्वे की दूतावास के बाहर सोमवार से चार दिनों तक धरना कर रहे हैं.
ध्यान रहे बच्चों की सही देखभाल न करने और लापरवाही के कारण बच्चों की सही देखरेख के अभाव में बच्चों की देखभाल माता-पिता से ले ली गयी थी.
नार्वे में बच्चों की देखभाल विश्व के उच्च स्तर पर किया जाता है. यहाँ सामाजिक और उच्च स्तर पर बच्चों की परवरिश किये जाने में विश्व में बड़ा नाम है. यदि भारत सरकार सहयोग न करे तो बच्चे १८ वर्ष से पहले माता पिता को मिलना संभव नहीं है. इस सम्बन्ध में भारत से दूत भेजे गए हैं जो नार्वे में सरकार के प्रतिनिधियों से इस बारे में मिलकर समझौता करने का प्रयास करेंगे.
(साभार 'समाचार पत्र' २७.०२.१२) ओस्लो. भारत और नार्वे के मध्य अच्छे सम्बन्ध हैं. भारतीय सरकार ने बच्चों को भारत ले जाने के लिए सार्थक प्रयत्न किये हैं जिसमें भारतीय राजदूत और नार्वेजीय राजदूत एक सकारात्मक भूमिका निभा रहे हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी को नॉर्वे भेजा गया है ताकि वो एक भारतीय दंपति को उनके बच्चों को सौंपने के सिलसिले में बातचीत कर सकें.
विशेष दूत मधूसुदन गणपति नॉर्वे के विदेश मंत्री और दूसरे उच्च अधिकारियों से बातचीत करेंगे.
इससे जुड़ी ख़बरें‘देखभाल’ के लिए बच्चे और मां-बाप जुदा नॉर्वे में बच्चों से मिले भारतीय दंपति 'ऐसा भी नहीं कि बच्चे अनाथ हैं और उनका कोई वतन नहीं'. भारत भारतीय विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता सईद अकबरुद्दीन ने ट्वीट पर कहा कहा कि विशेष दूत गणपति सभी जरूरी अधिकारियों से मिलेंगे.
नॉर्वे के बाल कल्याण अधिकारियों ने पिछले साल मई में अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी सागरिका को उनके दो छोटे बच्चों को ये कहते हुए उनसे छीन लिया कि वे बच्चों की ठीक से देखभाल नहीं कर पा रहे.
इस घटना को लेकर ख़ासा हंगामा हुआ और भारत सरकार को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा है जिसने नॉर्वे के विदेश मंत्रालय से संपर्क किया है.
कुछ दिनों पहले नॉर्वे के तीसरे बड़े शहर स्तावान्गेर में काम कर रहे अनुरूप भट्टाचार्य और उनकी पत्नी सागरिका भट्टाचार्य को तीन महीने बाद अपने बच्चों से मिलने दिया गया था.
तीन वर्षीय अभिज्ञान और एक वर्षीया ऐश्वर्या - से उनकी कुछ घंटे की मुलाक़ात बाल कल्याण विभाग के एक दफ़्तर में हुई.
फ़िलहाल नॉर्वे के अधिकारी इन बच्चों को उनके चाचा को सौंपे जाने के बारे में विचार कर रहे हैं.
नॉर्वे के अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि अगले दो हफ़्ते में इस बारे में कुछ तय कर लिया जाएगा.
मगर बच्चों के माता-पिता का कहना है कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है और उन्हें बताया गया है कि बच्चों को सौंपे जाने को लेकर देर हो सकती है.
इस बीच बंगाल में रहने वालों उन बच्चों के नाना-नानी दिल्ली में नॉर्वे की दूतावास के बाहर सोमवार से चार दिनों तक धरना कर रहे हैं.
ध्यान रहे बच्चों की सही देखभाल न करने और लापरवाही के कारण बच्चों की सही देखरेख के अभाव में बच्चों की देखभाल माता-पिता से ले ली गयी थी.
नार्वे में बच्चों की देखभाल विश्व के उच्च स्तर पर किया जाता है. यहाँ सामाजिक और उच्च स्तर पर बच्चों की परवरिश किये जाने में विश्व में बड़ा नाम है. यदि भारत सरकार सहयोग न करे तो बच्चे १८ वर्ष से पहले माता पिता को मिलना संभव नहीं है. इस सम्बन्ध में भारत से दूत भेजे गए हैं जो नार्वे में सरकार के प्रतिनिधियों से इस बारे में मिलकर समझौता करने का प्रयास करेंगे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें