सपनों का महत्व जानने की कोशिश -शरद आलोक
चित्र में कविता महोत्सव का दृश्य
परसों स्वप्न देखा की मेरे दो अग्रज लेखक मित्र स्वप्न में दिखे और उनसे बात चीत हुई.
स्वप्न टूटने के बाद उन्हें संजोना या उन्हें उसी तरह याद रख पाना स्मृति शक्ति की सीमा से परे होता है. भले ही कुछ स्वप्न याद रह जाते हैं. ये दोनों लेखक मित्र थे कन्हैया लाल नंदन और राजेंद्र अवस्थी. कन्हैया लाल नंदन ने एक शांति स्वरूप गंभीर व्यक्तित्व के धनी कवि और सम्पादक के रूप में प्रतिष्ठा पा चुके थे जबकि राजेंद्र अवस्थी जी कहीं गंभीर तो कहीं एक चंचल मनचले व्यक्तित्व, कहानीकार और साहित्यिक संपादक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे. उनके मझिले बेटे शिवशंकर अवस्थी (मुन्नू) आजकल अवस्थी जी के बाद आथर्स गिल्ड आफ इंडिया के महामंत्री हैं. इन दोनों लेखकों में आपस में मित्रता नहीं थी. क्योंकि एक हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के साथ था तो एक टाइम्स आफ इंडिया समूह के साथ.
दिल्ली के साहित्यिक परिवेश को लेकर मेरे अन्दर कुछ धारणाएं हैं. दो बार समाचार पत्रों में साक्षात्कार के बाद भी उन धारणाओं को किसी ने सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं दिया. दिल्ली में साहित्यिक लेखकों का बटाव और अलगाव केवल विचारधारा को लेकर ही नहीं है. साधारणतया राजनैतिक विचारधारा से भी नहीं बंधे हैं लेखक और उनके खेमे. अपने तर्क को उचित ठहराने और तार्किकता से दूर रहने के कारण बहुत से लेखकों ने वर्षों से विदेशों में रची जा रही साहित्यिक सेवाओं (भारतीय भाषाओँ के लिए जिनमें मुख्यता हिंदी, पंजाबी, उर्दू, तमिल, मराठी, तेलगू और अन्य भारतीय भाषाओँ) का ठीक से जिक्र न ही अपने संस्मरण में किया है न ही अपनी अन्य रचनाओं में. इसीलिए हमने यह बीड़ा उठाया है कि विदेशों में हिंदी, पंजाबी, उर्दू का प्रचार-प्रसार करते हुए विदेशों में रचे जा रहे सामयिक उपलब्धियों को ऐतिहासिक, साहित्यिक और राजनैतिक कृतियों में स्वयं भी लिखेंगे और अन्य अपने जैसे सैकड़ों रचनाकारों और अन्य प्रतिभाशाली लोगों के बारे में भी लिखेंगे ताकि, सही तस्वीर उपस्थित दर्ज हो सके.
चित्र में कविता महोत्सव का दृश्य
परसों स्वप्न देखा की मेरे दो अग्रज लेखक मित्र स्वप्न में दिखे और उनसे बात चीत हुई.
स्वप्न टूटने के बाद उन्हें संजोना या उन्हें उसी तरह याद रख पाना स्मृति शक्ति की सीमा से परे होता है. भले ही कुछ स्वप्न याद रह जाते हैं. ये दोनों लेखक मित्र थे कन्हैया लाल नंदन और राजेंद्र अवस्थी. कन्हैया लाल नंदन ने एक शांति स्वरूप गंभीर व्यक्तित्व के धनी कवि और सम्पादक के रूप में प्रतिष्ठा पा चुके थे जबकि राजेंद्र अवस्थी जी कहीं गंभीर तो कहीं एक चंचल मनचले व्यक्तित्व, कहानीकार और साहित्यिक संपादक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे. उनके मझिले बेटे शिवशंकर अवस्थी (मुन्नू) आजकल अवस्थी जी के बाद आथर्स गिल्ड आफ इंडिया के महामंत्री हैं. इन दोनों लेखकों में आपस में मित्रता नहीं थी. क्योंकि एक हिंदुस्तान टाइम्स ग्रुप के साथ था तो एक टाइम्स आफ इंडिया समूह के साथ.
दिल्ली के साहित्यिक परिवेश को लेकर मेरे अन्दर कुछ धारणाएं हैं. दो बार समाचार पत्रों में साक्षात्कार के बाद भी उन धारणाओं को किसी ने सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं दिया. दिल्ली में साहित्यिक लेखकों का बटाव और अलगाव केवल विचारधारा को लेकर ही नहीं है. साधारणतया राजनैतिक विचारधारा से भी नहीं बंधे हैं लेखक और उनके खेमे. अपने तर्क को उचित ठहराने और तार्किकता से दूर रहने के कारण बहुत से लेखकों ने वर्षों से विदेशों में रची जा रही साहित्यिक सेवाओं (भारतीय भाषाओँ के लिए जिनमें मुख्यता हिंदी, पंजाबी, उर्दू, तमिल, मराठी, तेलगू और अन्य भारतीय भाषाओँ) का ठीक से जिक्र न ही अपने संस्मरण में किया है न ही अपनी अन्य रचनाओं में. इसीलिए हमने यह बीड़ा उठाया है कि विदेशों में हिंदी, पंजाबी, उर्दू का प्रचार-प्रसार करते हुए विदेशों में रचे जा रहे सामयिक उपलब्धियों को ऐतिहासिक, साहित्यिक और राजनैतिक कृतियों में स्वयं भी लिखेंगे और अन्य अपने जैसे सैकड़ों रचनाकारों और अन्य प्रतिभाशाली लोगों के बारे में भी लिखेंगे ताकि, सही तस्वीर उपस्थित दर्ज हो सके.
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