दिल्ली के साहित्यिक परिवेश और विदेशों (नार्वे) में हिन्दी शिक्षा - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
चित्र में: हिन्दी स्कूल नार्वे में रंगों के पर्व होली पर रंग बिरंगे चेहरे
चित्र में: हिन्दी स्कूल नार्वे में रंगों के पर्व होली पर रंग बिरंगे चेहरे
दिल्ली के साहित्यिक परिवेश को लेकर मेरे अन्दर कुछ धारणाएं हैं. दो बार समाचार पत्रों में साक्षात्कार के बाद भी उन धारणाओं को किसी ने सार्वजनिक रूप से जवाब नहीं दिया. दिल्ली में साहित्यिक लेखकों का बटाव और अलगाव केवल विचारधारा को लेकर ही नहीं है. साधारणतया राजनैतिक विचारधारा से भी नहीं बंधे हैं लेखक और उनके खेमे. अपने तर्क को उचित ठहराने और तार्किकता से दूर रहने के कारण बहुत से लेखकों ने वर्षों से विदेशों में रची जा रही साहित्यिक सेवाओं (भारतीय भाषाओँ के लिए जिनमें मुख्यता हिंदी, पंजाबी, उर्दू, तमिल, मराठी, तेलगू और अन्य भारतीय भाषाओँ) का ठीक से जिक्र न ही अपने संस्मरण में किया है न ही अपनी अन्य रचनाओं में. इसीलिए हमने यह बीड़ा उठाया है कि विदेशों में हिंदी, पंजाबी, उर्दू का प्रचार-प्रसार करते हुए विदेशों में रचे जा रहे सामयिक उपलब्धियों को ऐतिहासिक, साहित्यिक और राजनैतिक कृतियों में स्वयं भी लिखेंगे और अन्य अपने जैसे सैकड़ों रचनाकारों और अन्य प्रतिभाशाली लोगों के बारे में भी लिखेंगे ताकि, सही तस्वीर उपस्थित दर्ज हो सके.
भारतीय और विदेशी विश्वविद्यालयों का साहित्यिक और सांस्कृतिक रूप से देश-विदेश में की जा रही सेवाओं और कृतियों को प्रकाश में लाने और उन्हें प्रकाशित तथा प्रसारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है.
विदेशों में भारतीय भाषाओं के और अपने प्रवास-निवास के देश की भाषा के साहित्यकारों ने ऐतिहासिक भूमिका निभायी है इन संकलनों में यहाँ केवल उन्हें ही सम्मिलित कर रहा हूँ जिन्होंने खुली दृष्टि से बिना भेदभाव के सही तस्वीर अपने साहित्य में अपने साक्षात्कारों में और अपने व्याख्यानों में प्रस्तुत किया है. यहाँ धार्मिक लेखन का जिक्र नहीं है.
लेखक गोष्ठियों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भारतीय भाषाओं हिन्दी, पंजाबी और अन्य भाषाओँ का प्रचार और प्रसार
नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड और डेनमार्क में साहित्यिक और भारतीय भाषाओँ को, वहां की भाषाओँ और वहां बच्चों और युवाओं की सामाजिक और सामयिक आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा द्वारा और साहित्यिक, लेखक गोष्ठियों द्वारा प्रचारित करने का जो आन्दोलन शुरू किया है. हिन्दी स्कूलों और अन्य संस्थाओं के माध्यम से सहकारिता भाव से हिन्दी शिक्षा को दिया जाना और सीखने वाले देश विदेश के क्षत्रों अपने कार्यक्रमों में सम्मानित किया जाना चाहिए.
बच्चों को द्विभाषीय सांस्कृतिक राजदूत बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय भाषा हिन्दी की शिक्षा जरूरी
हिन्दी की शिक्षा देवनागरी लिपि में जरूरी है. क्योंकि देवनागरी लिपि वैज्ञानिक, सहज और प्रायोगिक है. किसी भी संस्कृति को अपनी मात्रभाषा और मूल भाषा सीखे बिना संभव नहीं है. अपनी भाषा-संस्कृति, उसकी जड़ों से जुड़े बिना हमारी पहचान अधूरी है. यह अविभावकों और सामजिक कार्यकर्ताओं का फर्ज है कि मात्रभाषा और मुख्य भारतीय भाषा हिन्दी के जरिये हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की शिक्षा देना और उसमें भारत सरकार की रचनात्मक और उसकी उपलब्धियों की जानकारी देते हुए, भारतीय राष्ट्रीय और सांस्कृतिक पर्वों की जानकारी देते हुए अन्य धर्मों से सद्भाव रखने की की शिक्षा देते हुए जिस देश में रह रहे हैं उसके साहित्य और संस्कृति और सामयिक विषयों की जनकारी पत्य्क्रम में होना जरूरी है. तभी हम हिंदी सीखने वाले छात्र-छात्राओं को भाषा का सांस्कृतिक दूत बनाने में सफल हो सकेंगे जो अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद आने वाली पीढी को अपने देशों में हीनी कि शिक्षा के द्वारा प्रचार प्रसार न योगदान देते रहेंगे.
हिन्दी की शिक्षा सभी धर्म के मानने वालों या धर्म को न मानने वालों के लिए भी बहुत जरूरी है. हिंदी शिक्षा किसी का भेदभाव नहीं करेगी. हिन्दी शिक्षा को किसी के विचारों और और स्वतंत्रता का हनन नहीं करेगी और कट्टरवादिता से बचेगी.
नार्वे में हिन्दी की शिक्षा का प्रचार अनेक नगरों में
नार्वे में हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओँ की शिक्षा का प्रचार अनेक नगरों में हो रहा है. नार्वे में हिन्दी-स्कूल में अविभावकों द्वारा दी जा रहे शिक्षा के माडेल को स्वीडेन, डेनमार्क और फिनलैंड में भी प्रचारित किया जाना चाहिए जिसमें भारतीय राष्ट्रीय त्योहारों, राजनैतिक सिस्टम, पर्वों, धर्मिक और सामाजिक नाटकों और यहाँ जिस देश में हिन्दी की शिक्षा दी जा रही है यहाँ के पर्वों, परम्पराओं की भी शिक्षा को सम्मिलित किया जाना बेहद जरूरी है. बच्चों को आत्म निर्भर बनाने और नेतृत्व करने की क्षमता का विकास करने के लिए ओस्लो में दी जा रही हिन्दीस्कूल के तर्ज पर हिंदी की शिक्षा बहुत जरूरी है.
भारतीय राजदूत आर के त्यागी जी का आश्वासन
नार्वे में भारतीय राजदूत आर के त्यागी जी ने भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम और नार्वे से गत २४ वर्षों से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण पत्रिका तथा हिन्दी स्कूल और अन्य संस्थाओं को आश्वासन दिया है कि यदि भारतीय दूतावास के सहयोग की जरोरत हो तो वह पूरा करेंगे और इस कार्य को प्रोत्साहित करेंगे जो स्वागत योग्य कदम है.
सभी को समान हिन्दी शिक्षा
हिन्दी को नार्वे के विभिन्न नगरों में प्रचारित करते हुए इसे विभिन्न उत्तरीय(स्कैंडिनेवियाई देशों: नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड, ग्रीनलैंड और आइसलैंड) में अपने भाई-बहनों, देशवासियों और अन्य राजनैतिक सहयोगी मित्रों के सहयोग से हिन्दी शिक्षा के माध्यम से और बढाया जाएगा.
हमारे बच्चे चाहे वह भारतीय मूल के हों या मूल स्कैंडिनेवियाई हों, लगन, परिश्रम और सहकारिता भाव से सभी को समान और अच्छी शिक्षा दे जायेगी.
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