रविवार, 29 अप्रैल 2012
बुधवार, 25 अप्रैल 2012
नार्वे में मनाया गया विश्व पुस्तक दिवस
नार्वे में मनाया गया विश्व पुस्तक दिवस
बाएं से इंदरजीत पाल, सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन और सिलेस कुमार कविता पाठ करते हुए
कार्यक्रम में लेखकों के साथ आयोजकगन
२३ अप्रैल को वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा आयोजित
लेखक गोष्ठी में विश्व पुस्तक दिवस मनाया गया.
१९९५ में यूनेस्को ने निश्चय किया की हर वर्ष विश्व पुस्तक दिवस मनाया जाएगा.
लेखकों के कापी राईट अधिकार और अभिव्यक्ति स्वतंत्रता को केंद्र में रहकर इसकी घोषणा की थी. विश्व पुस्तक दिवस लगभग सौ देशों में मनाया जाता है. भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम छठी बार विश्व पुस्तक दिवस मन रही है. इस अवसर पर चार लेखकों ने अपनी रचनाएं पढीं जिनके नाम हैं: सिलेश कुमार, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, इंदरजीत पाल और सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'. कार्यक्रम के आरम्भ में सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने पुस्तक दिवस पर अपने विचार व्यक्त किये और भारतीय दूतावास के सीलेस कुमार ने शुभकामनाएं दी और फोरम के कार्यों को दोनों देशों के मध्य महत्वपूर्ण सेतु बताया. कार्यक्रम की शुरुआत में राज कुमार भट्टी ने सस्वर देशभक्ति के गीत गाये. कार्यक्रम में सभी महानुभावों का स्वागत किया माया भारती ने.
नार्वे में लेखक गोष्ठी में मनाया गया विश्व पुस्तक दिवस
नार्वे में लेखक गोष्ठी में मनाया गया विश्व पुस्तक दिवस
गुरुवार, 19 अप्रैल 2012
Verdens bok dag feiring på Veitvet
VELKOMMEN
til
Forfatterkafe
mandag den 23. april kl. 18:00
på Chilensk kulturhus, Veitvetsenter, Oslo
Vi markerer verdens bokdag med dikt, novelle lesing.
Arrangør:
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Tlf. 22 25 51 57
स्वागतम
लेखक गोष्ठी में
कविता और कहानी के साथ मनाया जा रहा है
२३ अप्रैल को १८:०० बजे
चिली कुल्तुरहूस, वाइटवेत सेंटर , ओस्लो
आपका हार्दिक स्वागत है.
बुधवार, 18 अप्रैल 2012
सर्वहारा (किसान, मजदूर और फ़ौजी) की पुकार- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
सर्वहारा (किसान, मजदूर और फ़ौजी) की पुकार- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
महुआ महके, बौर आम के, महके बगिया हमार.
फागुन आया, चैत द्वार पर दस्तक दे दस बार.
भ्रष्टाचार की आंधी आयी, दे गयी कितनी मार,
ऊपर से महंगाई आयी, आम आदमी हुआ लाचार.
पहले पसीना फिर खून बहाया खेतों पर फसल उगाई
सर-कन्धों पर ढोकर गारा, ईंट की नीवं बनायी.
इसी नीवं के नीचे दबकर सपने देते रहे दुहाई.
नहीं पढ़ा पाया बच्चों को , किसका दोष है भाई.
इसी लिए क्या सन ४७ में आजादी है पायी.
सत्य अहिंसा के खातिर ही बापू ने जान गवाईं.
नयी चेतना, नयी उमंगों से फिर भरना होगा,
इस बार अब देश के अन्दर दुश्मन से लड़ना होगा.
श्रमिक सड़क पर, किसान खेत में और जवान सरहद पर
प्राण तक निछावर कर देता है, हंसकर अपने देश पर.
बच्चों को मिले न शिक्षा और इलाज, मिले न रोजी-रोटी
देश का पैसा लूट रहे, कर नहीं देते, बना रहे हैं कोठी.
दूध नहीं मिलता बच्चों को, हमारा पानी हमको बेच रहे हैं,
ये नहीं दूसरे, अपने देशवासी, आँखों में धूल झोक रहे हैं.
मात्रभूमि की हवा पानी से पलकर कैसा फर्ज निभाते
न जाने जननी के दूध का मोल चुकाना, देश के जोंक बने हैं.
सूखा-बाढ़ से निपटने खातिर हमने कितने उपाय किये हैं
अपनी जान से प्यारे पशु को किसान रोकर बेच रहे हैं.
नहीं अगर है भोजन खुद का, पशु को कहाँ खिलाएं,
अखबारों की सुर्खी कहती है, किसान आत्महत्या तक करते हैं.
दूध नहीं मिलता बच्चों को, हमारा पानी हमको बेच रहे हैं,
ये नहीं दूसरे, अपने देशवासी, आँखों में धूल झोक रहे हैं.
मात्रभूमि की हवा पानी से पलकर कैसा फर्ज निभाते
न जाने जननी के दूध का मोल चुकाना, देश के जोंक बने हैं.
सूखा-बाढ़ से निपटने खातिर हमने कितने उपाय किये हैं
अपनी जान से प्यारे पशु को किसान रोकर बेच रहे हैं.
नहीं अगर है भोजन खुद का, पशु को कहाँ खिलाएं,
अखबारों की सुर्खी कहती है, किसान आत्महत्या तक करते हैं.
ओस्लो, १८.०४.१२
रविवार, 15 अप्रैल 2012
१५ अप्रैल बैसाखी पर ओस्लो में विशाल नगर कीर्तन
ओस्लो, रविवार.
नगर्कीर्तन में सबसे आगे ढोल बजाते हुए नौजवान बच्चे चल रहे थे और उनकी अगुवाई पांच प्यारे कृपाण लिए अगुवाई कर रहे थे. केसरिया और नीली पोशाकों में बहुत से लोग इस नगर कीर्तन को रंगमय बना रहे थे.
रोदहूस के सामने विशाल जनसभा
पिछले वर्ष से ओस्लो में १४ अप्रैल को इस अवसर पर पगड़ी दिवस मनाया जाता है. सैकड़ों लोगो ने निशुल्क पगड़ी बंधवाई और पूरा माहोल बैसाखीमय हो गया था. चायपानी और भोजन का भी प्रबंध किया गया था. सभी सेवादारों ने बड़ी कुशलता से अपना कर्तव्य निभाया जिनका सञ्चालन करते हुए धरमिंदर सिंह कर रहे थे ने सभी के थे, ने मिलकर इस पर्व का सम्मान बढ़ाया. नार्वेजीय लोगों ने भी होंसले से पग बंधवाकर अपना योगदान दिया.
१५ अप्रैल बैसाखी पर ओस्लो में विशाल नगर कीर्तन और पगड़ी दिवस संपन्न:
ओस्लो में भारतीयों ने धूमधाम से बैसाखी पर्व मनाया. ओस्लो स्थित गुरुद्वारा गुरुनानक देव, अल्नाब्रू से कार्यक्रम आरम्भ हुआ जो ओस्लो सेन्ट्रल स्टेशन के सामने विशाल नगर कीर्तन निकला गया जो कार्ल जहां होता हुआ पार्लियामेंट और नॅशनल थिएटर के सामने से गुजरता हुआ रोदहूस (सिटी हाल) के सामने समुद्री किनारे पर एक विशाल जनसभा में बदल गया.
पांच प्यारे द्वारा अगुवाई नगर्कीर्तन में सबसे आगे ढोल बजाते हुए नौजवान बच्चे चल रहे थे और उनकी अगुवाई पांच प्यारे कृपाण लिए अगुवाई कर रहे थे. केसरिया और नीली पोशाकों में बहुत से लोग इस नगर कीर्तन को रंगमय बना रहे थे.
रोदहूस के सामने विशाल जनसभा
यहाँ मंच से ओस्लो नगर पार्लियामेंट के सांस्कृतिक बीरोद हाल्स्ताइन बियेर्के ने भारतीयों को शुभकामनाएं दी और उनके नार्वे में योगदान के लिए बढ़ायी दी. गुरुद्वारा के प्रतिनिधियों अमनदीप कौर, राजेंद्र सिंह टूर और लिएर गुरुद्वारा के प्रतिनिधि ने बैसाखी पर्व पर सभी को शुभकामनाएं दी. रागियों ने शब्द कीर्तन किया और महँ गुरुओं का यशगान किया.
पगड़ी दिवसपिछले वर्ष से ओस्लो में १४ अप्रैल को इस अवसर पर पगड़ी दिवस मनाया जाता है. सैकड़ों लोगो ने निशुल्क पगड़ी बंधवाई और पूरा माहोल बैसाखीमय हो गया था. चायपानी और भोजन का भी प्रबंध किया गया था. सभी सेवादारों ने बड़ी कुशलता से अपना कर्तव्य निभाया जिनका सञ्चालन करते हुए धरमिंदर सिंह कर रहे थे ने सभी के थे, ने मिलकर इस पर्व का सम्मान बढ़ाया. नार्वेजीय लोगों ने भी होंसले से पग बंधवाकर अपना योगदान दिया.
शनिवार, 14 अप्रैल 2012
ओस्लो की सुजाता शर्मा को पचासवें जन्मदिन पर बधाई
ओस्लो की सुजाता शर्मा को पचासवें जन्मदिन पर बधाई!
सुजाता शर्मा २४ मार्च को पचास वर्ष की हो गयीं. वह एक नेक इंसान, अच्छी मित्र, अच्छी बहन और अच्छी मां हैं. ये उदगार उनके जन्मदिन समारोह में जो शुक्रवार १३ अप्रैल को स्केद्स्मू
हाल में संपन्न हुआ उनके मित्र, भाई और बेटे अरविन्द ने व्यक्त किये. इस कार्यक्रम को उनकी बेटी
निधी और उनके बेटों अरविन्द और रोबिन ( एक प्रसिद्द रैप गायक) ने आयोजित किया था. इस कार्यक्रम में इटली, विएना और भारत से भी भी, बहन और रिश्तेदारों और मित्रों ने हिस्सा लिया और बधाइयां दी थीं. यह एक यादगार जन्मदिन उत्सव था जिसे बहुत समय तक याद किया आएगा. सुजाता जी ने अकेले ही अपनी तीनो संतानों के पालन पोषण सहित सभी जिम्मेदारियां निभायी
और उन्हें योग्य बनाने में अपनी महत्वपूर्ण माँ की भूमिका निभायी.
बाएं से बासदेव एवं कुनाल भरत, माया भारती, सुजाता शर्मा, अलका भरत, एक लडकी, सुरेशचंद्र शुक्ल और करिश्मा
सुजाता शर्मा २४ मार्च को पचास वर्ष की हो गयीं. वह एक नेक इंसान, अच्छी मित्र, अच्छी बहन और अच्छी मां हैं. ये उदगार उनके जन्मदिन समारोह में जो शुक्रवार १३ अप्रैल को स्केद्स्मू
हाल में संपन्न हुआ उनके मित्र, भाई और बेटे अरविन्द ने व्यक्त किये. इस कार्यक्रम को उनकी बेटी
निधी और उनके बेटों अरविन्द और रोबिन ( एक प्रसिद्द रैप गायक) ने आयोजित किया था. इस कार्यक्रम में इटली, विएना और भारत से भी भी, बहन और रिश्तेदारों और मित्रों ने हिस्सा लिया और बधाइयां दी थीं. यह एक यादगार जन्मदिन उत्सव था जिसे बहुत समय तक याद किया आएगा. सुजाता जी ने अकेले ही अपनी तीनो संतानों के पालन पोषण सहित सभी जिम्मेदारियां निभायी
और उन्हें योग्य बनाने में अपनी महत्वपूर्ण माँ की भूमिका निभायी.
हिन्दी सिनेमा ने विदेशों में हिन्दी का प्रसार किया है- शरद आलोक
विश्व में हिन्दी सिनेमा 'संभावनाएं और प्रयोग'
हिन्दी सिनेमा के १०० वर्ष पूरे होने पर लखनऊ में विश्व सिनेमा में हिन्दी 'संभावनाएं और प्रयोग' विषय पर व्याख्यान एवं फिल्म प्रदर्शन हुआ जिसमें नार्वे से पधारे भारतीय नार्वेजीय पत्रिका के संपादक सुरेशचंद्र शुक्ल ने मुख्या वक्ता के रूप में कहा कि हिन्दी इनेमा विश्व का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है. हिन्दी फिल्म के समारोह अनेक देशों में हो रहे हैं. यदि हम हिन्दी फिल्मोई अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्टता पर ध्यान दें तो हिन्दी भाषा की फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय स्थान मिल सकता है. ओस्लो में प्रत्येक वर्ष भारतीय सिनेमा उत्सव (बालीवुड फिल्म फेस्टिवल) मनाया जाता है. लखनऊ के फिल्म क्षात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इंडो-नार्विजन फिल्म स्टुडेंट्स के बीच सांस्कृतिक रचनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करेंगे. इस अवसर पर लखनऊ विश्व विद्यालय के फिल्म के क्षत्र की लघु शोध भारतीय मूल के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म निर्देशकों और निर्माताओं पर दाकुमेंत्री फिल्म दिखाई गयी. की पर कार्यक्रम कार्यक्रम सम्पन्न हुआ.
हिन्दी सिनेमा के १०० वर्ष पूरे होने पर लखनऊ में विश्व सिनेमा में हिन्दी 'संभावनाएं और प्रयोग' विषय पर व्याख्यान एवं फिल्म प्रदर्शन हुआ जिसमें नार्वे से पधारे भारतीय नार्वेजीय पत्रिका के संपादक सुरेशचंद्र शुक्ल ने मुख्या वक्ता के रूप में कहा कि हिन्दी इनेमा विश्व का सबसे बड़ा फिल्म उद्योग है. हिन्दी फिल्म के समारोह अनेक देशों में हो रहे हैं. यदि हम हिन्दी फिल्मोई अंतर्राष्ट्रीय उत्कृष्टता पर ध्यान दें तो हिन्दी भाषा की फिल्मों को अंतर्राष्ट्रीय स्थान मिल सकता है. ओस्लो में प्रत्येक वर्ष भारतीय सिनेमा उत्सव (बालीवुड फिल्म फेस्टिवल) मनाया जाता है. लखनऊ के फिल्म क्षात्रों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि इंडो-नार्विजन फिल्म स्टुडेंट्स के बीच सांस्कृतिक रचनात्मक सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करेंगे. इस अवसर पर लखनऊ विश्व विद्यालय के फिल्म के क्षत्र की लघु शोध भारतीय मूल के अंतर्राष्ट्रीय फिल्म निर्देशकों और निर्माताओं पर दाकुमेंत्री फिल्म दिखाई गयी. की पर कार्यक्रम कार्यक्रम सम्पन्न हुआ.
सोमवार, 9 अप्रैल 2012
साहित्य अकादमी में नार्वे में हिंदी लेखन पर व्याख्यान
साहित्य अकादमी में नार्वे में हिंदी लेखन पर व्याख्यान
चित्र में बाएं से: दिल्ली विश्वविद्यालय की अंगरेजी की प्रोफ़ेसर (नाम पता नहीं), अनुवादक श्री सिंह, साहित्य अकादमी के सदस्य, साहित्य अकादमी के सदस्य, डॉ. ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', डॉ. सतेन्द्र कुमार सेठी, आलोचक डॉ. कमल किशोर गोयनका, प्रदीप कुमार
शुक्ल और राष्ट्र किंकर के संपादक विनोद बब्बर
चित्र में बाएं से: दिल्ली विश्वविद्यालय की अंगरेजी की प्रोफ़ेसर (नाम पता नहीं), अनुवादक श्री सिंह, साहित्य अकादमी के सदस्य, साहित्य अकादमी के सदस्य, डॉ. ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', डॉ. सतेन्द्र कुमार सेठी, आलोचक डॉ. कमल किशोर गोयनका, प्रदीप कुमार
शुक्ल और राष्ट्र किंकर के संपादक विनोद बब्बर
31 मार्च को साहित्य अकादमी दिल्ली में प्रवासी मंच के तहत नार्वे से पधारे प्रवासी साहित्यकार और 'परिचय' (१९८०-१९८५) और 'स्पाइल-दर्पण' (१९८८ से) के संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ने नार्वे में हिन्दी लेखन पर व्याख्यान दिया. कार्यक्रम का शुभारम्भ साहित्य अकादमी के डॉ. ब्रिजेन्द्र त्रिपाठी द्वारा प्रवासी मंच और प्रवासी मंच में व्याख्यान देने वाले साहित्यकार का परिचय देकर किया.
कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय, साहित्य अकादमी के सदस्यों के अतिरिक्त प्रसिद्ध विद्वान डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ विनोद सेठ, अमर उजाला के हरी प्रकाश, राष्ट्र किंकर के संपादक और नार्वे पर संस्मरण-पुस्तक 'इबसेन के देश में' के लेखक विनोद बब्बर, वैश्विका साप्ताहिक के संपादक, संजय मिश्र, स्पाइल-दर्पण दिल्ली के प्रतिनिधि और संपादक मंडल के सदस्य डॉ. सत्येन्द्र कुमार सेठी और अन्य लोगों ने प्रश्नोत्तर के दौरान सक्रिय भागीदारी से व्याख्यानमाला को बहुत रोचक बना दिया. अनेक सुझावों, प्रश्नों और संवाद ने गोष्ठी में जिज्ञासाओं और समस्याओं को हल करने के लिए संवाद बनाए रखने के लिए सामाजिक मीडिया में परस्पर संबंधों को बढाने की बात की गयी.सुरेशचंद्र शुक्ल ने अपने व्याख्यान में नार्वे में मूल से नार्वेजीय भाषा और हिन्दी मूल से नार्वेजीय भाषा में अनुवाद पर ओस्लो में होने वाले सेमीनार, मासिक लेखक गोष्ठियों तथा हिन्दी भाषियों और क्षत्रों के लिए लेखन कर्मशाला में नार्वे के हिन्दी लेखन मंच, भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं
सांस्कृतिक फोरम नार्वे का कार्य उत्कृष्ट है. उन्होंने भारतीय, प्रवासी संस्थाओं द्वारा की जा रही हिन्दी, पंजाबी और अन्य भारतीय भाषाओँ की सेवा के लिए किये जा रहे कार्यों पर संतोष व्यक्त करते हुए उसे सराहनीय बताया. सुरेशचंद्र शुक्ल ने अपनी सम्पादित प्रवासी कहानियों के संकलनों 'प्रतिनिधि प्रवासी कहानियां' (सन २००४ में प्रचारक बुक क्लब, वाराणसी, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित) और 'समसामयिक प्रवासी कहानियां' सहित नार्वे के प्रवासी लेखकों के कहानी संग्रहों में स्वर्गीय हरचरण चावला का कहानी संग्रह 'आख़िरी कदम से पहले' ( सन १९८३ को नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली से प्रकाशित) और सुरेशचंद्र शुक्ल का कहानी संग्रह 'अर्द्धरात्रि का सूरज' (सन १९९६ को
हिन्दी प्रचारक पब्लिकेशन्स, वाराणसी द्वारा प्रकाशित और राष्ट्रपति शकर दयाल शर्मा द्वारा प्रशंसित) को खास बताया तथा यात्रा वृत्तान्त में सन १९७३ को वन्दे मातरम् प्रेस लखनऊ से छपी डॉ राजेंद्र प्रसाद शुक्ल की पुस्तक 'मेरी साइकिल यात्रा' को यात्रा साहित्य में विशिष्ट बताया.
नार्वे के लेखकों की खास पुस्तकों जो हिन्दी साहित्य में चर्चित रहीं वे हैं स्वर्गीय पूर्णिमा चावला की पुस्तक 'कभी-कभी लगता है' और सुरेश चन्द्र शुक्ल की काव्य पुस्तकों 'रजनी' (१९८४ संगीता प्रकाशन, लखनऊ), नंगे पांवों का सुख' (१९८६ संगीता प्रकाशन, लखनऊ), 'नीड़ में फंसे पंख' ( १९९९ को हिन्दी प्रचारक पब्लिकेशन्स, वाराणसी जिसका लोकार्पण लन्दन में हुए विश्व हिन्दी सम्मलेन में
माननीय विजय राजे सिंधिया द्वारा हुआ था),और 'गंगा से ग्लोमा तक' ( २०१० को 'विश्व पुस्तक प्रकाशन, नयी दिल्ली से प्रकाशित) .
संगीता शुक्ल सीमोन्सेन की हिन्दी की पाठ्य पुस्तक भी सराहनीय है जो हिन्दी स्कूल नार्वे में पढ़ाई जाती है. ओस्लो विश्व विद्यालय के प्रो. जोलर द्वारा हिन्दी का डाटा बेस भी एक उत्कृष्ट कार्य है.
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