आज बहुत ख़ुशी का दिन है, जन्माष्टमी भी है और इस पावन दिन पर मेरे बेटे अनुराग का विवाह ओस्लो में हुआ
आज बहुत ख़ुशी का दिन है. सूरज देवता भी प्रसन्न हैं और अपनी किरणें चहुओर फैला रहे हैं. ओस्लो में अगस्त का महीना, बुधवार तारीख २८ अगस्त २०१३। नार्वे में कुछ देरी से ही सही पर गर्मी ऋतु के सभी कद्रदान हैं। किसी का जन्मदिन तो किसी की शादी की सालगिरह होगी और किसी का नामकरण, विवाह और उपनयन संस्कार आदि होगा।
सभी खुश रहें, प्रसन्न रहें और शतायु हों यही दुआयें हैं हमारी।
हर लम्हे से खुशियाँ मांगें,
और दुआयें मांगे!
फूल में छिपी आस्था सबकी,
गुलदस्तों ने बांचे!
तुम्हें मुबारक, दिन तेरा हो,
मेरी हों बस रातें।
जहाँ रहें अपने-बेगाने,
हों खुशियों की बरसातें!!
एक और ख़ुशी में इजाफा, मेरे बड़े बेटे का विवाह संपन्न हुआ.
चित्र में बायें से मेरेते की माँ , मेरेते नव विवाहित बहू , नवविवाहित बड़ा पुत्र अनुराग और उसकी माँ माया भारती (माया शुक्ला)
अनुराग की अनोखी बातें
मुझे स्मरण है पांच वर्ष तक मुंडन न होने की वजह से अनुपम के केश बढ़ गये थे. बड़े बालों के कारण अनुराग में एक अलग आकर्षण था.
वह कभी भारत में अपनी दादी श्रीमती किशोरी देवी और दादा (बाबा) श्री बृजमोहन लाल शुक्ल के साथ के साथ रहा और इसी कारण उसका सम्बन्ध सदा अपनी दादी से भी रहा और दादी की मृत्यु पर सम्मिलित हुआ और औरों की तरह अंतिम संस्कार में केश भी कटवाए थे जैसा कि परिवार की परंपरा है कि शोक में और मरने वाले को सम्मान देने के लिए केश कटाये जाते हैं.
अब लोग आधुनिक हो गये हैं, सभी लोग केश नहीं कटवाते। परंपरा और रीति रिवाज स्वयं अपनाने के लिए हम स्वतन्त्र हैं. वहां अनुराग का महत्त्व पारिवारिक दायरे में बढ़ जाता है. अपनी दादी की तेहरवीं में संगीता और अनुराग उपस्थित भी हुए और दिल खोलकर खर्चकर संतुष्टि प्राप्त की।
विदेशों में नयी पीढ़ी को अपनी और पूर्वजों की संस्कृति के बारे में बताने के लिये माता -पिता ही उपयुक्त और सही शिक्षक हैं. बेटे के श्रवण कुमार बनने की सम्भावना तब अधिक होती है जब पिता, माता स्वयं उदहारण बनें।
एक और घटना उस समय की है जब अनुराग को पढ़ाने उसके अध्यापक आते थे या जब वह मोहल्ले में १२/४ में रहने वाली शुक्ला अध्यापिका के घर पढ़ने अनुराग जाता था, सुना है वह बहाने बनाने में बहुत निपुण था.
भोला और सभी के स्नेह का भाजन अनुराग अपनी दादी और बाबा का प्रिय था. बाबा की सबसे प्रिय उसकी बड़ी बहन संगीता और नीलू (मेरी बड़ी भांजी) रहे हैं. जय प्रकाश मेरा बड़ा भतीजा है जो सदा अपने परिवार के साथ रहता था जहाँ अनुराग और संगीता भी रहे हैं.
ओस्लो शतरंज चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक
जब अनुराग की चर्चा कर रहा हूँ तो यह भी बताता चलूं अन्य बच्चों की तरह अनुराग भी माइकेल जैक्सन के संगीत पर बहुत अच्छा नृत्य कर लेता था और उसने मार्शल आर्ट भी सीखी तथा ओस्लो शतरंज चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक अपनी टीम के साथ लाया। नार्वे में हर फ़ुटबाल खेलता और बरफ के खेल स्की कर लेता है. अनुराग को भी सकी करना और फ़ुटबाल बहुत पसंद है आजकल भी वह अपने पुराने मित्रों के साथ कभी-कभी फ़ुटबाल खेलता है. अनुराग सदा से टेक्नीकल रूचि का रहा है और वह कंप्यूटर हार्डवेयर में ही कार्य करता है.
मैं चाहता था कि अनुराग सिनेमा से जुड़े
मैं पिता होने के नाते चाहता था कि अनुराग सिनेमा से जुड़े और फोटोग्राफर और एडिटर बने. इसी वजह से मैंने अनुराग को अपनी पहली नार्वेजीय फिल्म 'Reisen til Canada' कनाडा की सैर में फोटोग्राफर के रूप में उतारा और उसने फिल्म का संपादन का भार भी उठाया जिसे उसने भली भांति पालन भी किया। नार्वेजीय समाचारपत्रों ने फिल्म के साथ अनुराग की फोटोग्रागी की भी चर्चा की. अनुराग सिनेमा से तो नहीं जुड़ा पर कंप्यूटर से जुड़ गया जो आज की आवश्यकता है. यहाँ और भारत में उसने अपने भाइयों की कंप्यूटर से मदद की और आज मेरी भी अक्सर कोई समस्या होने पर मदद करता है.
बायें अनुराग का बनवाया चश्मा पहने दादी सन 1998 में
नार्वे में दादी का चश्मा
मैं और अन्य अनेक प्रवासी लोग आँखों का चश्मा सस्ता और बेहतर होने के कारण भारत से बनवाते हैं. नार्वे में बहुत धन लगता है नजर की ऐनक बनवाने में इसलिए अपने-अपने देश में (यानि भारत में ) बनवाते हैं पर अनुराग ने दादी का चश्मा नार्वे से बनवाया। उसका कहना था कि दादी के चश्में के लिए धन क्या बचाना। इससे मुझे प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' की याद आ गयी जिसमें हामिद अपनी दादी के लिए अपने खिलौने की जगह चिमटा खरीदकर लाता है.
२८ अगस्त को जन्माष्टमी के दिन शादी
हर माता-पिता, भाई-बहन चाहते हैं कि क्रमशः उसकी संतान उसका भाई विवाहित हो. तो यह सपना भी पूरा हुआ अनुराग के विवाह के बाद. कल जन्माष्टमी के शुभ दिन अनुराग और मेरेते वैवाहिक बंधन में बन्ध गए जो १२ वर्षों से साथ-साथ रह रहे थे.
थिंगहूस (कोर्ट) ओस्लो के बाहर एक ग्रुप फोटो
थिंगहूस (कोर्ट) ओस्लो के अन्दर जज के साथ एक ग्रुप फोटो
विवाह के बाद हम सभी उपस्थित लोगों ने साथ-साथ भोजन किया। मुझे अपने उन मित्रों की याद आयी जो संगीत के माहिर हैं और अनेक साजों के साथ गीत और गजलें गाते हैं.
मेरा मन भी चाहा कि कुछ गुनगुनाऊं, पर ऐसा नहीं कर सका. भावुक हो गया था. मेरा छोटे बेटे
अर्जुन ने इस अवसर पर कुछ शुभकामनाओं के शब्द कहे जो हमेशा याद रहेंगे।
शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे
आज बहुत ख़ुशी का दिन है. सूरज देवता भी प्रसन्न हैं और अपनी किरणें चहुओर फैला रहे हैं. ओस्लो में अगस्त का महीना, बुधवार तारीख २८ अगस्त २०१३। नार्वे में कुछ देरी से ही सही पर गर्मी ऋतु के सभी कद्रदान हैं। किसी का जन्मदिन तो किसी की शादी की सालगिरह होगी और किसी का नामकरण, विवाह और उपनयन संस्कार आदि होगा।
सभी खुश रहें, प्रसन्न रहें और शतायु हों यही दुआयें हैं हमारी।
हर लम्हे से खुशियाँ मांगें,
और दुआयें मांगे!
फूल में छिपी आस्था सबकी,
गुलदस्तों ने बांचे!
तुम्हें मुबारक, दिन तेरा हो,
मेरी हों बस रातें।
जहाँ रहें अपने-बेगाने,
हों खुशियों की बरसातें!!
एक और ख़ुशी में इजाफा, मेरे बड़े बेटे का विवाह संपन्न हुआ.
चित्र में बायें से मेरेते की माँ , मेरेते नव विवाहित बहू , नवविवाहित बड़ा पुत्र अनुराग और उसकी माँ माया भारती (माया शुक्ला)
अनुराग की अनोखी बातें
मुझे स्मरण है पांच वर्ष तक मुंडन न होने की वजह से अनुपम के केश बढ़ गये थे. बड़े बालों के कारण अनुराग में एक अलग आकर्षण था.
वह कभी भारत में अपनी दादी श्रीमती किशोरी देवी और दादा (बाबा) श्री बृजमोहन लाल शुक्ल के साथ के साथ रहा और इसी कारण उसका सम्बन्ध सदा अपनी दादी से भी रहा और दादी की मृत्यु पर सम्मिलित हुआ और औरों की तरह अंतिम संस्कार में केश भी कटवाए थे जैसा कि परिवार की परंपरा है कि शोक में और मरने वाले को सम्मान देने के लिए केश कटाये जाते हैं.
अब लोग आधुनिक हो गये हैं, सभी लोग केश नहीं कटवाते। परंपरा और रीति रिवाज स्वयं अपनाने के लिए हम स्वतन्त्र हैं. वहां अनुराग का महत्त्व पारिवारिक दायरे में बढ़ जाता है. अपनी दादी की तेहरवीं में संगीता और अनुराग उपस्थित भी हुए और दिल खोलकर खर्चकर संतुष्टि प्राप्त की।
विदेशों में नयी पीढ़ी को अपनी और पूर्वजों की संस्कृति के बारे में बताने के लिये माता -पिता ही उपयुक्त और सही शिक्षक हैं. बेटे के श्रवण कुमार बनने की सम्भावना तब अधिक होती है जब पिता, माता स्वयं उदहारण बनें।
एक और घटना उस समय की है जब अनुराग को पढ़ाने उसके अध्यापक आते थे या जब वह मोहल्ले में १२/४ में रहने वाली शुक्ला अध्यापिका के घर पढ़ने अनुराग जाता था, सुना है वह बहाने बनाने में बहुत निपुण था.
भोला और सभी के स्नेह का भाजन अनुराग अपनी दादी और बाबा का प्रिय था. बाबा की सबसे प्रिय उसकी बड़ी बहन संगीता और नीलू (मेरी बड़ी भांजी) रहे हैं. जय प्रकाश मेरा बड़ा भतीजा है जो सदा अपने परिवार के साथ रहता था जहाँ अनुराग और संगीता भी रहे हैं.
ओस्लो शतरंज चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक
जब अनुराग की चर्चा कर रहा हूँ तो यह भी बताता चलूं अन्य बच्चों की तरह अनुराग भी माइकेल जैक्सन के संगीत पर बहुत अच्छा नृत्य कर लेता था और उसने मार्शल आर्ट भी सीखी तथा ओस्लो शतरंज चैम्पियनशिप में भी स्वर्ण पदक अपनी टीम के साथ लाया। नार्वे में हर फ़ुटबाल खेलता और बरफ के खेल स्की कर लेता है. अनुराग को भी सकी करना और फ़ुटबाल बहुत पसंद है आजकल भी वह अपने पुराने मित्रों के साथ कभी-कभी फ़ुटबाल खेलता है. अनुराग सदा से टेक्नीकल रूचि का रहा है और वह कंप्यूटर हार्डवेयर में ही कार्य करता है.
मैं चाहता था कि अनुराग सिनेमा से जुड़े
मैं पिता होने के नाते चाहता था कि अनुराग सिनेमा से जुड़े और फोटोग्राफर और एडिटर बने. इसी वजह से मैंने अनुराग को अपनी पहली नार्वेजीय फिल्म 'Reisen til Canada' कनाडा की सैर में फोटोग्राफर के रूप में उतारा और उसने फिल्म का संपादन का भार भी उठाया जिसे उसने भली भांति पालन भी किया। नार्वेजीय समाचारपत्रों ने फिल्म के साथ अनुराग की फोटोग्रागी की भी चर्चा की. अनुराग सिनेमा से तो नहीं जुड़ा पर कंप्यूटर से जुड़ गया जो आज की आवश्यकता है. यहाँ और भारत में उसने अपने भाइयों की कंप्यूटर से मदद की और आज मेरी भी अक्सर कोई समस्या होने पर मदद करता है.
बायें अनुराग का बनवाया चश्मा पहने दादी सन 1998 में
नार्वे में दादी का चश्मा
मैं और अन्य अनेक प्रवासी लोग आँखों का चश्मा सस्ता और बेहतर होने के कारण भारत से बनवाते हैं. नार्वे में बहुत धन लगता है नजर की ऐनक बनवाने में इसलिए अपने-अपने देश में (यानि भारत में ) बनवाते हैं पर अनुराग ने दादी का चश्मा नार्वे से बनवाया। उसका कहना था कि दादी के चश्में के लिए धन क्या बचाना। इससे मुझे प्रेमचंद की कहानी 'ईदगाह' की याद आ गयी जिसमें हामिद अपनी दादी के लिए अपने खिलौने की जगह चिमटा खरीदकर लाता है.
२८ अगस्त को जन्माष्टमी के दिन शादी
हर माता-पिता, भाई-बहन चाहते हैं कि क्रमशः उसकी संतान उसका भाई विवाहित हो. तो यह सपना भी पूरा हुआ अनुराग के विवाह के बाद. कल जन्माष्टमी के शुभ दिन अनुराग और मेरेते वैवाहिक बंधन में बन्ध गए जो १२ वर्षों से साथ-साथ रह रहे थे.
थिंगहूस (कोर्ट) ओस्लो के बाहर एक ग्रुप फोटो
थिंगहूस (कोर्ट) ओस्लो के अन्दर जज के साथ एक ग्रुप फोटो
विवाह के बाद हम सभी उपस्थित लोगों ने साथ-साथ भोजन किया। मुझे अपने उन मित्रों की याद आयी जो संगीत के माहिर हैं और अनेक साजों के साथ गीत और गजलें गाते हैं.
मेरा मन भी चाहा कि कुछ गुनगुनाऊं, पर ऐसा नहीं कर सका. भावुक हो गया था. मेरा छोटे बेटे
अर्जुन ने इस अवसर पर कुछ शुभकामनाओं के शब्द कहे जो हमेशा याद रहेंगे।
शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे