आज ईद है. आपको ईद मुबारक।- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
यहाँ ओस्लो में कई लोगों ने एक दूसरे को ईद के अवसर पर शुभकामनायें दीं. मुझे स्मरण हो रहा है बचपन के दिन. मेरा घर लखनऊ में स्थित ऐशबाग ईदगाह के सबसे करीब था. ईद और बकरीद के अवसर पर मेरे पिताजी के परिचित -मित्र जो ऐशबाग ईदगाह नमाज पढ़ने आते थे वे अपनी साइकिल मेरे घर के सामने खड़ी कर जाते थे.
आज जो लोग कार और मोटर साइकिलों पर चलते हैं पहले उसी तरह लोगों के पास स्कूटर और साइकिल हुआ करती थी.
इस तरह स्टैंड में साइकिल खड़ी करने से बाख जाते थे जिसमें कुछ समय भी लगता था. और नमाज शुरू हो चुके होने पर समय की कमी में उसमे सम्मिलित होने का पुण्य। ऐशबाग ईदगाह से मुझे काफी लगाव था. सुबह -दोपहर पेड़ों पर चढ़कर गूलर और इमली तोड़ना और नीम के पेड़ पर चढ़कर मित्रों के साथ दातून तोड़ना. उस समय बहुत आनंद आता था. मौलवी साहेब को लकडियाँ बीनकर देते थे. अतः वे कुछ न कहते थे.
ऐशबाग ईदगाह की गुम्बदें और दीवारें जीर्ण शीर्ण हो गयीं थी. जब नेताजी मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे.
गुम्बदें नयी जैसी हो गयीं। उसकी दीवारें बन गयीं और मस्जिद के चारो तरफ फुटपाथ पर पत्थर और ईंटें लग गयीं।
हालाँकि अभी भी पहले की तरह आरा-मशीनों के लिए लकड़ी के थोक खरीदारों का जमघट प्रातःकाल ईदगाह के नुक्कड़ पर लगता है. ट्रकों से बड़े- बड़े लट्ठे सड़क पर गिराने से वहां सड़क अक्सर टूट जाती है.
लीजिये इसी बहाने मैंने ईदगाह के बारे में विस्तृत लिख दिया।
मेरे प्रिय लेखक लेखक मुंशी ने अपनी कहानियों में ईदगाह का जिक्र किया है और लिखा है कि सड़क के किनारे इमली के पेड़ थे. लखनऊ ईदगाह से दो मार्ग एक जो लाल माधव चौराहा दूसरी ओर डी ए वी कालेज तक तब सड़क के दोनों ओर कुछ दूरी पर इमली के पेड़ लगे होते थे. हो न हो यही ईदगाह रही होगी जो प्रेमचंद की कहानियों में वर्णित है.
पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका में लखनऊ की यादें फिर ताजी हो गयीं। लखनऊ के श्री एस एम आसिफ और उनकी पत्रकार बेटी लुबना मिले। बिटिया लुबना फोटोग्राफी में भी माहिर हैं. एस एम आसिफ और उनकी पत्रकार बेटी लुबना 'इन दिनों' हिन्दी समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन लखनऊ और दिल्ली से करते हैं. तीन दिन तक हम मिलते रहे और बातचीत करते रहे.
यहाँ ओस्लो में कई लोगों ने एक दूसरे को ईद के अवसर पर शुभकामनायें दीं. मुझे स्मरण हो रहा है बचपन के दिन. मेरा घर लखनऊ में स्थित ऐशबाग ईदगाह के सबसे करीब था. ईद और बकरीद के अवसर पर मेरे पिताजी के परिचित -मित्र जो ऐशबाग ईदगाह नमाज पढ़ने आते थे वे अपनी साइकिल मेरे घर के सामने खड़ी कर जाते थे.
आज जो लोग कार और मोटर साइकिलों पर चलते हैं पहले उसी तरह लोगों के पास स्कूटर और साइकिल हुआ करती थी.
इस तरह स्टैंड में साइकिल खड़ी करने से बाख जाते थे जिसमें कुछ समय भी लगता था. और नमाज शुरू हो चुके होने पर समय की कमी में उसमे सम्मिलित होने का पुण्य। ऐशबाग ईदगाह से मुझे काफी लगाव था. सुबह -दोपहर पेड़ों पर चढ़कर गूलर और इमली तोड़ना और नीम के पेड़ पर चढ़कर मित्रों के साथ दातून तोड़ना. उस समय बहुत आनंद आता था. मौलवी साहेब को लकडियाँ बीनकर देते थे. अतः वे कुछ न कहते थे.
ऐशबाग ईदगाह की गुम्बदें और दीवारें जीर्ण शीर्ण हो गयीं थी. जब नेताजी मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे.
गुम्बदें नयी जैसी हो गयीं। उसकी दीवारें बन गयीं और मस्जिद के चारो तरफ फुटपाथ पर पत्थर और ईंटें लग गयीं।
हालाँकि अभी भी पहले की तरह आरा-मशीनों के लिए लकड़ी के थोक खरीदारों का जमघट प्रातःकाल ईदगाह के नुक्कड़ पर लगता है. ट्रकों से बड़े- बड़े लट्ठे सड़क पर गिराने से वहां सड़क अक्सर टूट जाती है.
लीजिये इसी बहाने मैंने ईदगाह के बारे में विस्तृत लिख दिया।
मेरे प्रिय लेखक लेखक मुंशी ने अपनी कहानियों में ईदगाह का जिक्र किया है और लिखा है कि सड़क के किनारे इमली के पेड़ थे. लखनऊ ईदगाह से दो मार्ग एक जो लाल माधव चौराहा दूसरी ओर डी ए वी कालेज तक तब सड़क के दोनों ओर कुछ दूरी पर इमली के पेड़ लगे होते थे. हो न हो यही ईदगाह रही होगी जो प्रेमचंद की कहानियों में वर्णित है.
पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका में लखनऊ की यादें फिर ताजी हो गयीं। लखनऊ के श्री एस एम आसिफ और उनकी पत्रकार बेटी लुबना मिले। बिटिया लुबना फोटोग्राफी में भी माहिर हैं. एस एम आसिफ और उनकी पत्रकार बेटी लुबना 'इन दिनों' हिन्दी समाचार पत्र का संपादन और प्रकाशन लखनऊ और दिल्ली से करते हैं. तीन दिन तक हम मिलते रहे और बातचीत करते रहे.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें