३१ अगस्त को अमृता प्रीतम जी का जन्मदिन है
अमृता जी की एक कविता है
ए़क दर्द था
जो सिगरेट की तरह
मैने चुपचाप पिया
सिर्फ कुछ नज्में हैं
जो सिगरेट से मैने
राख की तरह झाड़ी हैं !!
- अमृता प्रीतम
अमृता जी, का जीवन कुछ हद तक खुली किताब की तरह रहा है. मैंने साथ -साथ सिगरेट पी है. साथ-साथ पीये भी हैं और खाया भी है. २८ साल पहले। ( यह बात और है कि अब सिगरेट आदि नहीं पीता।) ओस्लो की तीन महफ़िलों और दो मंचों पर महान साहित्यकारों के साथ रहे इनमें अमृता जी, आक्तावियो पाश (नोबेल पुरस्कार विजेता) और अहमद फराज थे. मौका था 'प्रथम ओस्लो इंटरनेशन पोएट्री फेस्टिवल' का. अक्सेल जेनसेन एक जिन्दा दिल इंसान और एक अच्छे लेखक थे. वे भारत से प्यार करते थे और उन्होंने भारतीय सुयोग्य महिला प्रतिभा जी से विवाह किया था. पहले वे अपनी एक नाव में रहते थे. जिस नाव में रहते थे वह सागर किनारे आकेरब्रीगे, ओस्लो में थी. वह थे तो आर्किटेक्ट पर लेखक भी कम अच्छे नहीं थे 'एप' (Epp) पुस्तक से वे ख्याति प्राप्त कर चुके थे. हमारे राजदूत कमल नयन बक्शी जी और एक्सेल येनसेन के साथ महफ़िलों में रहना कभी भुलाए भी नहीं भूलेगा।
अमृता जी! तुम्हारे साथ पी हैं सिगरेटें
ओस्लो की महफ़िलों में,
चुपचाप चश्में के मध्य देखती पैनी आँखें
साथ थे अपने सिफारत खाने के बक्शी जी,
जिन्हें भुलाने से भी भूल न सकता कभी!
ओक्तावियो पाश (मेक्सिको के) ने मिलाया हाथ में ले जाम.
एक ही मंच से कविता पढ़ीं थीं तीन शामें!
अहमद फराज मंच पर भी पीते रहे। … ,
एक शाम थी बस तुमारे नाम!
अमृता जी की एक कविता है
ए़क दर्द था
जो सिगरेट की तरह
मैने चुपचाप पिया
सिर्फ कुछ नज्में हैं
जो सिगरेट से मैने
राख की तरह झाड़ी हैं !!
- अमृता प्रीतम
अमृता जी, का जीवन कुछ हद तक खुली किताब की तरह रहा है. मैंने साथ -साथ सिगरेट पी है. साथ-साथ पीये भी हैं और खाया भी है. २८ साल पहले। ( यह बात और है कि अब सिगरेट आदि नहीं पीता।) ओस्लो की तीन महफ़िलों और दो मंचों पर महान साहित्यकारों के साथ रहे इनमें अमृता जी, आक्तावियो पाश (नोबेल पुरस्कार विजेता) और अहमद फराज थे. मौका था 'प्रथम ओस्लो इंटरनेशन पोएट्री फेस्टिवल' का. अक्सेल जेनसेन एक जिन्दा दिल इंसान और एक अच्छे लेखक थे. वे भारत से प्यार करते थे और उन्होंने भारतीय सुयोग्य महिला प्रतिभा जी से विवाह किया था. पहले वे अपनी एक नाव में रहते थे. जिस नाव में रहते थे वह सागर किनारे आकेरब्रीगे, ओस्लो में थी. वह थे तो आर्किटेक्ट पर लेखक भी कम अच्छे नहीं थे 'एप' (Epp) पुस्तक से वे ख्याति प्राप्त कर चुके थे. हमारे राजदूत कमल नयन बक्शी जी और एक्सेल येनसेन के साथ महफ़िलों में रहना कभी भुलाए भी नहीं भूलेगा।
मेरा जीवन कुछ ज्यादा ही खुली किताब की तरह रहता है. माया जी कहती हैं कि लोकलाज और समाज के लिए कुछ छिपाया भी करो. आजकल जाने-माने पत्रकार शेष नारायण सिंह नार्वे आये हुए हैं. उनसे रोज मुलाकात हो जाती है. वे रोज इंटरनेट पर कलम चलाते हैं हिन्दी में. मैंने विचार किया रोज कुछ न कुछ हिन्दी में मैं भी ब्लाग में लिखा करूँ। (ब्लाग लेखन तो काफी समय से करता हूँ पर रोज नहीं लिखता). ओस्लो के चालीस प्रतिशत भाग में जहाँ आकेर्स आवीस ग्रूरुददालेन का प्रसार है लोग मुझे जानने लगे हैं पर मैं हरगिज मशहूर आदमी नहीं हूँ. यह तो वही बतायेगा जो समाचारपत्र पढता है या यहाँ आयोजित हमारी-तुम्हारी गोष्ठियों में कभी आया हो. ओस्लो के एक समाचार पत्र के अनुसार लोग मेरी दो चीजों से परिचित हैं कविता या मेरी टोपी (हैट) से. मैं एक सांस्कृतिक लेखक-मजदूर-पत्रकार हूँ.
कुछ पंक्तियाँ मैंने भी अमृता की याद में लिखी हैं, उन्हें आपके साथ साझा कर रहा हूँ.
अमृता जी! तुम्हारे साथ पी हैं सिगरेटें
ओस्लो की महफ़िलों में,
चुपचाप चश्में के मध्य देखती पैनी आँखें
साथ थे अपने सिफारत खाने के बक्शी जी,
जिन्हें भुलाने से भी भूल न सकता कभी!
ओक्तावियो पाश (मेक्सिको के) ने मिलाया हाथ में ले जाम.
एक ही मंच से कविता पढ़ीं थीं तीन शामें!
अहमद फराज मंच पर भी पीते रहे। … ,
एक शाम थी बस तुमारे नाम!
२८ बरस बाद भी लग रहा है कल.
गुनगुनाने लगा अनबूझ गीत
आज दोहराने लगा हूँ
गुनगुनाने लगा अनबूझ गीत
आज दोहराने लगा हूँ
वे पल!!
फिर गुनगुनाने लगा हूँ
कुछ शब्द आतुर हैं पाने को स्थान ,
आगे भी दिखने लगे जब अतीत
समझ लेना रुक रही है जिन्दगी,
बढ़ रही है एक पथ अनजान !
शरद आलोक ओस्लो, २७ -०८ -१३
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