संस्मरण -आप बीती - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, नार्वे (०१.०२.१६)
आज से अपने संस्मरण लिखने की शुरुआत के रूप में भूमिका बना रहा हूँ और शीघ्र ही लिखना आरम्भ करूंगा। अभी यह समझ लीजिये कि अपनी स्मृति के पन्ने पलट रहा हूँ और कुछ नाम सामने ला रहा हूँ जिनमें कुछ पर संस्मरण भी लिखूंगा। दिल्ली के डॉ कमल किशोर गोयनका और बर्मिंगम के कृष्ण कुमार जी ने अनेक बार सुझाव दिया कि मुझे अपनी आपबीती लिखनी चाहिये।
नार्वे में
बहुत से भारतीय लेखकों से मिले। कुछ भारतीय लेखक यहाँ कार्यक्रम में भाग लेने आये जैसे लेखक सेमीनार, कविसम्मेलन या मुशायरा में भाग लेने आये.
लेखकगण जो नार्वे में साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने आये और मेरे ओस्लो स्थित मेरे घर पर भी रुके वे हैं: मनोरमा जफ़ा, रमणिका गुप्ता, वासंती, सरोजनी प्रीतम, डॉ विद्याविन्दु सिंह, डॉ के डी सिंह, डॉ रामेश्वर मिश्र , शकुंतला मिश्रा, राजेन्द्र अवस्थी, डॉ सत्य भूषण वर्मा, डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी, डॉ निर्मला एस मौर्या, विक्रम सिंह, उर्दू के लेखक राम लाल, गोपीचन्द नारंग, हरमहिंदर सिंह बेदी, शमशेर सिंह शेर, डॉ कृष्ण कुमार, महेंद्र वर्मा, उषा वर्मा, डॉ विजय कुमार मेहता, प्रो राम प्रसाद भट्ट, और अन्य।
नार्वे में जिनके साथ कवितापाठ किया और कार्यक्रम में साथ-साथ हिस्सा लिया वे हैं:
अमृता प्रीतम, कुर्अतुल ऐन हैदर, अहमद फराज, कैफ़ी आजमी, जावेद अख्तर, प्रभाकर क्षोत्रिय, शंकर दयाल सिंह, इंद्र नाथ चौधरी, कमलेश्वर, सुनील जोगी, केशरी नाथ त्रिपाठी, भीष्म नारायण सिंह, सत्य नारायण रेड्डी,
यू के (ब्रिटेन) में:
सबसे पहले विष्णुदत्त शर्मा जी से मिले लन्दन में स्थित साउथ हाल में एक मंदिर के पास, फिर उनसे मिलना जुलना शुरू हो गया वह बामपंथी विचारधारा के लन्दन में सशक्त नेता थे. उन्होंने ही मुझे साउथहॉल में अनेक लोगों से मिलवाया। साउथहॉल में एक गुप्ता जी चाट वाले और कुछ लेबर पार्टी के कार्यकर्ता से मिले जिन्होंने मुझे वहां ब्रिटिश मूल के सांसद से मिलाया यह सन 1986 -1987 की बात रही होगी। विष्णु दत्त शर्मा जी ने मुझे हिन्दी साप्ताहिक 'अमरदीप' के संपादक जगदीश मित्र कौशल और वीरेन्द्र शर्मा (वर्तमान सांसद) जी से मिलने को भी कहा.
जगदीश मित्र कौशल जी के घर पर अनेक बार गया और उन्होंने आवभगत की और भोजन साथ-साथ किया उन्होंने हिन्दी का प्रेस लगाया था उसमें अपना साप्ताहिक प्रकाशित करते थे. अमरदीप पत्रिका की रामधारी सिंह दिनकर जी ने भी तारीफ़ की थी.
यहाँ मैं ओंकारनाथ श्रीवास्तव-कीर्ति चौधरी के घर पर गया, मेरे साथ एक मित्र संपादक भी थे. उन्होंने अपनी रचनाएं सुनाईं, विचार विमर्श किया और भोजन कराया।
विष्णुदत्त शर्मा जी के बाद मेरी मुलाकात डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी से हुई. वह वहां भारत के हाई कमिश्नर थे और वहां हिन्दी के कार्यक्रम करवाते थे जहाँ मैंने आना-जाना शुरू किया जिससे वहां के टीवी से भी जुड़ा और अनेक इंटरव्यू हुए. श्रीमती डॉ लता पाठक, सरिता सबरवाल, डॉ सतीश पाठक से मिलना हुआ. सरिता सबरवाल हमारे शुरुवाती कविसम्मेलनों की संचालक थीं. इस कविसम्मेलन का प्रसारण भी टी वी पर हुआ था.
विश्व हिन्दी सम्मलेन, न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ भवन में. सन 2007 में डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी के साथ.
आज से अपने संस्मरण लिखने की शुरुआत के रूप में भूमिका बना रहा हूँ और शीघ्र ही लिखना आरम्भ करूंगा। अभी यह समझ लीजिये कि अपनी स्मृति के पन्ने पलट रहा हूँ और कुछ नाम सामने ला रहा हूँ जिनमें कुछ पर संस्मरण भी लिखूंगा। दिल्ली के डॉ कमल किशोर गोयनका और बर्मिंगम के कृष्ण कुमार जी ने अनेक बार सुझाव दिया कि मुझे अपनी आपबीती लिखनी चाहिये।
नार्वे में
बहुत से भारतीय लेखकों से मिले। कुछ भारतीय लेखक यहाँ कार्यक्रम में भाग लेने आये जैसे लेखक सेमीनार, कविसम्मेलन या मुशायरा में भाग लेने आये.
लेखकगण जो नार्वे में साहित्यिक कार्यक्रम में भाग लेने आये और मेरे ओस्लो स्थित मेरे घर पर भी रुके वे हैं: मनोरमा जफ़ा, रमणिका गुप्ता, वासंती, सरोजनी प्रीतम, डॉ विद्याविन्दु सिंह, डॉ के डी सिंह, डॉ रामेश्वर मिश्र , शकुंतला मिश्रा, राजेन्द्र अवस्थी, डॉ सत्य भूषण वर्मा, डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी, डॉ निर्मला एस मौर्या, विक्रम सिंह, उर्दू के लेखक राम लाल, गोपीचन्द नारंग, हरमहिंदर सिंह बेदी, शमशेर सिंह शेर, डॉ कृष्ण कुमार, महेंद्र वर्मा, उषा वर्मा, डॉ विजय कुमार मेहता, प्रो राम प्रसाद भट्ट, और अन्य।
नार्वे में जिनके साथ कवितापाठ किया और कार्यक्रम में साथ-साथ हिस्सा लिया वे हैं:
अमृता प्रीतम, कुर्अतुल ऐन हैदर, अहमद फराज, कैफ़ी आजमी, जावेद अख्तर, प्रभाकर क्षोत्रिय, शंकर दयाल सिंह, इंद्र नाथ चौधरी, कमलेश्वर, सुनील जोगी, केशरी नाथ त्रिपाठी, भीष्म नारायण सिंह, सत्य नारायण रेड्डी,
यू के (ब्रिटेन) में:
सबसे पहले विष्णुदत्त शर्मा जी से मिले लन्दन में स्थित साउथ हाल में एक मंदिर के पास, फिर उनसे मिलना जुलना शुरू हो गया वह बामपंथी विचारधारा के लन्दन में सशक्त नेता थे. उन्होंने ही मुझे साउथहॉल में अनेक लोगों से मिलवाया। साउथहॉल में एक गुप्ता जी चाट वाले और कुछ लेबर पार्टी के कार्यकर्ता से मिले जिन्होंने मुझे वहां ब्रिटिश मूल के सांसद से मिलाया यह सन 1986 -1987 की बात रही होगी। विष्णु दत्त शर्मा जी ने मुझे हिन्दी साप्ताहिक 'अमरदीप' के संपादक जगदीश मित्र कौशल और वीरेन्द्र शर्मा (वर्तमान सांसद) जी से मिलने को भी कहा.
जगदीश मित्र कौशल जी के घर पर अनेक बार गया और उन्होंने आवभगत की और भोजन साथ-साथ किया उन्होंने हिन्दी का प्रेस लगाया था उसमें अपना साप्ताहिक प्रकाशित करते थे. अमरदीप पत्रिका की रामधारी सिंह दिनकर जी ने भी तारीफ़ की थी.
यहाँ मैं ओंकारनाथ श्रीवास्तव-कीर्ति चौधरी के घर पर गया, मेरे साथ एक मित्र संपादक भी थे. उन्होंने अपनी रचनाएं सुनाईं, विचार विमर्श किया और भोजन कराया।
विष्णुदत्त शर्मा जी के बाद मेरी मुलाकात डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी से हुई. वह वहां भारत के हाई कमिश्नर थे और वहां हिन्दी के कार्यक्रम करवाते थे जहाँ मैंने आना-जाना शुरू किया जिससे वहां के टीवी से भी जुड़ा और अनेक इंटरव्यू हुए. श्रीमती डॉ लता पाठक, सरिता सबरवाल, डॉ सतीश पाठक से मिलना हुआ. सरिता सबरवाल हमारे शुरुवाती कविसम्मेलनों की संचालक थीं. इस कविसम्मेलन का प्रसारण भी टी वी पर हुआ था.
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