देश विदेश के प्रिय पाठकों।
भारत और अविकसित और विकासशील देशों में गरीब और गरीब हो रहे हैं.
बच्चों के स्कूल बंद हो रहे हैं.
जैसे भारत में जहाँ हम मंगल गृह और अंतरिक्ष में उपग्रह भेज रहे हैं वहीं कहाँ का न्याय है कि बेसिक स्कूल बंद हो रहे हैं.
अध्यापकों की पूर्ति की जगह स्कूलों को बंद किया जा रहा है. कभी किसी बहाने से कभी किसी बहाने से.
उत्तर प्रदेश में लाखों डेली वेजेस पर रखे गए अध्यापकों को नौकरी से हटाने की मुहीम अंतिम चरण पर है. महाराष्ट्र में एक हजार से अधिक बेसिक स्कूल इस लिए बंद किये जा रहे हैं कि स्कूलों में बच्चे कम हैं. सरकार ट्रांसपोर्ट का प्रबंध करेगी और जहाँ स्कूल बंद होंगे वहां से बच्चों को बसों से लाया जायेगा? पर कैसे? जब जहाँ सड़क नहीं है, लोग अपने गाँव में भी स्कूल नहीं जा पाते क्योकि अध्यापकों और स्कूल इमारतों की कमी है. स्कूल में श्यामपट नहीं है.
सूखा पीड़ित राज्य महारास्त्र जैसी समस्या झेल रहे हैं.
और तो और जनता का पैसा यह कहकर बर्बाद किया जाता रहा है कि सरकार टेंडर द्वारा बादलों पर गुब्बारे द्वारा टेंडर देगी विदेशी कम्पनी को और पानी बरसेगा। क्या आप इस पर विश्वास कर रहे हैं. यदि नहीं तो आवाज क्यों नहीं उठाते हैं.
माँ भी बच्चे को अक्सर दूध तभी देती है जब बच्चा रोता और चिल्लाता है.
आप और हम जागरूक हो इस विचार से कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं कृपया जागिये और अपने और समाज के लिए कुछ करिये। मेरी कविता प्रस्तुत है. धन्यवाद।
हिम्मत हो तो आगे आओ.
जीवन में कुछ तो कर जाओ..
कन्दमूल फल कुंद हो रहे।
सरकारी स्कूल बंद हो रहे।।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कन्दमूल फल कुंद हो रहे।
सरकारी स्कूल बंद हो रहे।।
महाराष्ट्र में सरकारों ने फिर
शिक्षा को क्यों दास बनाया?
दूर-तलक तक स्कूल जहाँ है,
उनको फिर क्यों बंद कराया।।
कहाँ चुनाव-चन्दे का ब्योरा?
चुनाव जीतकर ताल ठोकते।
आप के एम एल ए पर क्यों,
भ्रष्टाचार का घड़ा फोड़ते।।
संसद की तिथि बढ़वाकर
अपने दल का प्रचार कर रहे.
सरकारी मशीन दुरूपयोग से
जनता पर अभियोग ठोकते।।
दोहरे मापदण्ड नफ़ा हो रहे.
सच्चाई से क्यों खफा हो रहे..
भारत के प्रधानमंत्री का
जिसने मारने का जाल बिछाया!
उसी देश के शासक को तुमने,
क्यों फिर तुमने गले लगाया?
लेकर मशीनगन ताल ठोक रहे,
निहत्थे पर इलजाम ठोक रहे?
बिन बुलाये मेहमान हो रहे,
क्या राष्ट्रवादी रेसिस्ट हो रहे?
घमण्ड से क्यों इतना इतराते,
स्थाई राज नहीं रह पाते।
लघु उद्योग दम तोड़ रहे,
गरीब और गरीब हो रहे..
जमा पैसे पर टैक्स ले रहे।
अपने गैरों की जेब भर रहे।।
सुप्रीम कोर्ट जहाँ न्याय ढूँढ़ते,
अनपढ़ डिजिटल कोड ढूंढते।
शिक्षा के बेसिक स्कूल पर
सरकारी ताले चाभी ढूढ़ते।।
जनता की लाचारी का
जनता जिम्मेदार जहाँ है?
बिना प्रदर्शन हाथ जोड़कर,
जनता का सत्कार कहाँ है?
धर्म -जाति के नाम हमेशा,
हम कैसे लड़ाये जायेंगे?
अपनी सोच पर गर्व करें यदि,
घर के दुश्मन ढह जाएंगे।।
नहीं सहेंगे-नहीं सहेंगे।
जुल्म और हम नहीं सहेंगे।।
संसद जन-प्रतिनिधि पहुंचेंगे,
हम सही तरह मतदान करेंगे।।
नेता की न भीड़ बनेंगे,
प्रजातंत्र की रीढ़ बनेंगे।।
जब तक भूखा देश जगत में,
आराम नहीं, श्रमदान करेंगे।
हिन्दू मुस्लिम बहुत बने हैं?
अब केवल इन्सान बनेंगे।।
नहीं चाहिये एटमबम हमको,
बुलेट ट्रेन भी नहीं चाहिए।।
गरीबी पर नियंत्रण हो
ऐसा हमको राज्य चाहिये।।
विदेशी निवेश नहीं चाहिए।
हमको अपना देश चाहिए?
जन-प्रतिनिधि श्रमजीवी होगा,
साधू और न रोगी होगा।
भूख मिटे, रोजगार सभी को,
शिष्टाचार-अनुशासन होगा।।
चुनाव प्रचार पर रोक लगे जब,
पैसा पानी सा नहीं बहेगा।
न्यायपालिका नहीं बिकेगी,
ईमानदारी का हल्ला होगा।।
आओ मिलकर मार्ग बनायें,
सड़कों के गड्ढे भर आएं..
अनुशासन ट्राफिक में होगा,
सड़क हादसा भी कम होगा।।
अपने घर से मुहिम चलायें।
फिर विस - संसद में जायें।।
देश का बचपन भूखा सोया,
फ़ुटपातों पर यहाँ वहां है?
आकड़ों में प्रगति का खोखा,
मेरा भारत देश वहाँ है.
झूठ-फरेब की भाषा बोलें,
जनता का विश्वास ठगा है?
झूठे वायदों में खोये हैं,
दीमक सा क्यों देश चटा है?
जब अपराधी नेता बन जायें,
देश को बोलो कौन बचाये।
जनता के इस लोकतंत्र में,
शिष्ट आचरण कैसे लाये?
प्रजातंत्र का शेर सो रहा.
नवयुग भारत में खड़ा रो रहा.
कट्टरवादी राज्य करेंगे,
पंडित -मुल्ला भाषण देंगे।
न और पाकिस्तान बनायें,
नेता कुछ तो शर्म करेंगे?
भ्रष्टाचारी फलहार कर रहे,
भूखे बच्चे काम कर रहे?
हम किस पर फक्र करेंगे,
हम भारत पर गर्व कर रहे.