रविवार, 21 जनवरी 2018

नोट-धर्म-जाति पर कभी न वोट देना, वफ़ा के नाम पर कुत्तों से मारे जायेंगे। - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' लेखक/रचनाकार, २१. ०१. २०१८ , ओस्लो
















भारत रत्न और नोबलपुरस्कार विजेता अमृत्य सेन के साथ लेखक 
 सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक'

नोट-धर्म-जाति पर कभी न वोट देना,
वफ़ा के नाम पर कुत्तों से मारे जायेंगे।। 

सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' 
लेखक/रचनाकार, २१. ०१. २०१८ , ओस्लो

हर तरफ जब प्रेम का गागर मिला
समझ लेना शहद का छत्ता मिला।
नेह का निमत्रण लेकर काट लेंगे,
समझ लेना प्रेम को आदर मिला।।

धर्म का नाम लेकर भेदभाव करें।
अपने-भाई को भी ये बदनाम करें।
सहिष्णुता के नाम पर करें राजनीति,
पंडित और मौलवी को बदनाम करें।

बदल देना चुनाव में तुम अंकगणित,
चुनाव से पहले होना पड़ेगा संगठित।
रोजी-रोटी की सरकार हम लायेंगे,
जब बच्चे हमारे निशुल्क स्कूल जायेंगे।।

उठो, संघ-रंग-जंग से तुम दूर रहो,
निर्दलीय प्रतिनिधि तुम मजबूत करो।
आज जहर घर-घर में जो फ़ैला रहे,
घर के भी हो तो उनको सदा दूर करो।।

अगर हम राजनैतिक जागरूक नहीं,
भेड़ों की तरह, फिर से हाँके जायेंगे।
नोट-धर्म-जाति पर कभी न वोट देना,
वफ़ा के नाम पर कुत्तों से मारे जायेंगे।।

गाँधी हमारे नायक हैं शताब्दी पुरुष,
शिक्षा और उद्योग घर-घर में लायेंगे,
बोतल का पानी का करेंगे बाहिष्कार,
जनता को साफ़ पानी हम पिलायेंगे।।
 
बाबा बनकर कभी मंदिर में बैठे,
योग के नाम पर जो व्यापार करें।
यदि नेता उनको हम बनाएंगे
तो असली प्रतिनिधि कहाँ जाएंगे?

जो आजादी के सबसे बड़े नेता थे,
वही देशभक्त हमारे अभिनेता थे.
फांसी पर झूल गए देश के खातिर,
उनके विरोधी अब देश को चलाएँगे?

आस्तीन में बैठे नेता प्रतिनिधियों को
कहो! और द्वार जा बाबा माफ करो!
कभी बताना नहीं वोट किसको दिया,
प्रजातंत्र का वसूल है इन्साफ करो..

विस्फोटकों से लैस ये नेतृत्व कैसा?
विस-संसद में तुम सच्चे काम करो.
क्यों याचना के पत्र में तुम बम समेटे,
माँ की गोद को मत यूँ बदनाम करो..

 आज बहुत से चुने हुए नेता संसद और विधानसभा को अपने बचने और अपने भ्रस्ट लोगों को बचाने का अड्डा बनाते  जा रहे हैं.
जनता आवाज न उठा सके उसके लिए अक्सर क़ानून बनाने की कोशिश अभी राजस्थान में असफल रही. चुनाव में खर्च चंदे को लेकर 
संसद ने सरकारी और बड़ी पार्टी के पक्ष में क़ानून पास कर लिया। दिल्ली में जंतर मंतर पर रजनैतिक और निजी प्रदर्शन का एक प्रजातांत्रिक  स्थान था उसे सरकार द्वारा कानून व्यवस्था के नाम पर बंद कर दिया गया. 
एक देश  ने हमारे प्रधानमंत्री को कभी मारने के कोशिश की  थी उसे आज नेता गले लगा रहे हैं , यह खतरनाक है. इसे  जांच एजेंसी द्वारा नॉट किया जाना चाहिए। 
कहीं यही इन नेताओं और उनकी पार्टियों के लिए  भविष्य में यदि भारी पड़ा तो आश्चर्य की बात न होगी। देश के विचारकों और सभी पार्टियों की राय न लेने से अक्सर मनमानी का अवसर मिलता है जो जनता और उसके लोकतंत्र के लिए ख़तरा है. यदि जनता ने आवाज न उठाई तो अक्सर देखा गया है कि प्रजातंत्र में तानाशाही नेता व्यापारी और विदेशी आर्थिक शक्तियों के साथ मिलकर समाज और देश में कुछ भी मनमानी कर सकेंगे।  क्या  ईस्ट इंडिया कंपनी का नाम  सुना है आपने।  
- सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' लेखक/रचनाकार, २१. ०१. २०१८ , ओस्लो

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