शुक्रवार, 22 मई 2020

शांतिपूर्ण प्रदर्शन है लोकतंत्र की खूबसूरती - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


शांतिपूर्ण प्रदर्शन है लोकतंत्र की खूबसूरती
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से

1
मुझे राजनीति नहीं  करनी, हम्हें घर चलाना है,
मुझे राजा नहीं बनना, समाज की रीढ़ बनना है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन है लोकतंत्र की खूबसूरती,
मुझे किसी भी हालात में इसे बहाल रखना है।"
2
लोकतंत्र में माना, कोई तानाशाह नहीं होता है।
सभी दलों के साथ मिल देश चलाना होता है।
फूल सी ये  पार्टियाँ राजनैतिक गुलदस्ता हैं,
अनेकता में एकता से लोकतंत्र कायम होता है।
3
तुम कह रहे थे वोट दूँगा मैदान में आओ तो,
मैंने अभी किसी पार्टी का परचम नहीं थामा।
तुम विचार में मेरे खिलाफ हो तो क्या हुआ,
तूफान के बाद तो मिलकर आबाद करना है।"

संक्रमण से बड़ी है मजदूरों की समस्या - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

संक्रमण से बड़ी है मजदूरों की समस्या - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

कोरोना संकट जारी है 
संक्रमण के  प्रकोप से बड़ा है 
श्रमिकों का संकट। 

नौकरी चली गयी,
किराए का घर गया.
न कोई विश्रामघर न कोई भोजनालय।
अपने ही देश में श्रमिक हो गये प्रवासी,
नेता जैसे मुर्गियां दर के मारे 
अपने-अपने दरबे में घुस गये 

जिन्हे स्तीफा देना चाहिये 
वे राज्य कर रहे हैं 
श्रमिकों के अपने संगठन नहीं है?
उनकी आवाज उठाने वाले कम हैं 

जो आवाज उठाता है 
उसे नहीं सुना जाता है?
समझ में नहीं आ रहा क्या हो रहा है?
कौन है जवाबदेह 
गांधी के देश में आदर्शों का अकाल?
1
एक महिला का पति मर गया,
स्मृति के समक्ष रो-रोकर हो रही बेहाल 
कोई सुनने वाला नहीं उसका हाल?
मुंबई में फंस गयी है?
लोकतंत्र के माया जाल में 
फंस गयी है?
न बस न रेल?
यह कैसी राजनीति का खेल?


सड़क हादसे में मारे गए 
बेटे का शव लेने आया पिता।
पर शव का नहीं कोई पता
वह कभी इधर कभी उधर भेजा जा रहा है 
शासन की नाकामी 
इंसानी रिश्तों पर पद रही भारी।


 अपने पिता को बैठाये बेटी 
अपने बच्चों को बैठाये 
रिक्शा खींचती एक युवती,
इक्कीसवीं शताब्दी की कह रही कथा.
शासन मौन, भवनों में कर रहे आराम।
कौन सुनेगा मजदूरों की व्यथा?


 रेल की पटरियों पर 
कहीं दुर्घटना में मृत
लाशों के बीच 
बिखरी रोटियाँ हैं.
कहीं मृत मजदूरों के झोलों में रोटियॉँ 

5
मायूस लोगों की भीड़ है

वित्तमंत्री की निर्जीव घोषणा
पैकेज और लाखों रोजगार देने का शोर
और मजदूर भूखे रहने को मजबूर।
सत्ता नचा रही है 
हम नांच रहे हैं.
सवाल नहीं उठाकर 
खुद को गिरवी रख रहे हैं.


शहर के फुटपाथों और झुग्गियों से 
मजदूर नंगे पाँव लौट रहे हैं 
जरूरत है कि उनके घाव 
सत्ताच्युत होने पर उन्हें दिखयेंगे 
ताकि दुबारा सत्ता तक न आ पायें।

 

रविवार, 17 मई 2020

देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',

देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
जीने की चिन्ता कभी न की,

मरने की चिन्ता क्या करना।

जब आदर्शों का पोल भरा

ढोल की चिन्ता क्या करना।


बस जंगल में ही आग लगी,

पशु-पक्षी की चिंता क्या करना?

हम पिंजरे में बन्द कोरोना से,

भूकम्प की चिन्ता क्या करना।


जनता के प्रतिनिधि सहमें-सहमे,

अपने कष्टों पर उपहासी होना।

यदि संकट से बाहर लड़ने आते,

निसंदेह संकट का  कम होना।


जब जनप्रतिनिधि घर में घुसे हुए,

तब मजदूरों का कौन  सुने रोना

सड़क पर नंगे पाँव मजदूर चलें,
तब दीप जलाकर खुश होना।

ये आँसू, विज्ञापन में दिखते हैं,
फिर आँसू बहाकर क्या करना?
जब ट्यूटर टीवी पर तो दिखते हैं,
उन मजदूरों के संग क्या चलना?

बिना देश की जनता से पूछे-समझे,
देसी सम्पत्ति पे नज़र नहीं रखना
हवाई- स्टेशन-बन्दरगाह आदि को,
वह बाप भले हो, पर नहीं देना।।
भुखमरी कोरोना से दुखी जनता,
कृपया मनमानी तुम नहीं करना।
कोरोना बाद, देश पटरी पर ला,
राष्ट्र संपत्ति राष्ट्रीयकरण कराना।
सरकार-विपक्ष और सभी स्वयं सेवी,
मिलकर सलाहकर सब नीति बनाना।
किसी का देश पर एकाधिकार नहीं है,
जनता की दुखती-नस नहीं  दबाना ।
यह जनता की चुप्पी, हाँ कभी नहीं,
बस सूचना अभाव और असमंजस है।
यह पारदर्शिता बिना घबरायी है,
हमारे नेता क्यों लगते हैं डरे-दबे।  
सब पुरुष-महिला को सैनिक शिक्षा,
देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी हो।
किसी फर्म और किराए के सैनिक से,
भारत देश की नहीं  पहरेदारी हो


-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',ओस्लो, 17 मई , 2020. 
नार्वे के राष्ट्रीय दिवस पर. भारत के लिए कविता प्रस्तुत है. 

शुक्रवार, 15 मई 2020

'सांसद मौन, मजदूर परेशान' - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'














'सांसद मौन, मजदूर परेशान?

 - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

कोई आसमान तो नहीं फटा?
बस जीवन ही बचा.
जैसे सरकार को
अपनी अंगुली में नचा रहा?
जाने-अनजाने बता दिया
जीवन/स्वास्थ/व्यवस्था को धता.

कोरोना से उपजी महामारी,
सत्ता के भूख से उपजा दलबदल
जैसे मौत की परवाह न करके
कोरोना से मरे लोगों के जेब से पैसे
और अंगुली से अंगूंठी निकालते हैं
आज और कल? 

कितने प्रतिशत की सरकार
उसमें कहाँ है आज के मजदूर की आवाज?
विपक्ष और मजदूरों से कितनी दूर,
किस घमण्ड में चूर?

अभी भी देशवासी मर रहे रास्ते में
मौन हम असंवेदनशील,
अमीर डिफाल्टरों के उधार माफकर,
उन्हीं को फिर उधार दे रहे।
मजदूर भूखे हैं मार्ग में।
सरकार है किस गुमान में?

पता करो कितने सांसद गूंगे
और मजदूर देश की आवाज बन रहे।
हिम्मत है तो सारे सांसद जो चुप हैं,
त्यागपत्र देकर सड़क पर आयें,
आज मजदूरों के खिलाफ
चुनाव लड़कर दिखायें।

मजदूर 48 दिनों बाद भी,
घर  पैदल जाने को मजबूर,
जिम्मेदार सरकार का, नेताओं का
गरीबी और अमीरी में बांटने का,
एक दिन टूटेगा राष्ट्रीय गुरुर।

प्रदेश की सीमायें
अव्यवस्था में अंतराष्ट्रीय सीमा क्यों बना रहे?
जिम्मेदार सरकार पल्ला झाड़े तो कैसे
सड़कों पर भूख और दुर्घटनाओं को अनदेखी कर
कहीं बन न जायें नेता कभी चुनाव हारकर
स्वदेशी मजदूर की तरह शरणार्थी?

हर बार कोरोना नहीं आयेगा
तुम्हें बचाने?
एक दिन कैसे बचायेगा मेमना शेर से
अपने बच्चों को।
जैसे भविष्य में कहीं बन गयी
मजदूरों की सरकार?
तब नेता हो जायेंगे बेरोजगार?

एक दिन कोरोना जायेगा,
पर बिना मज़दूरों और
महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी बिना
देश में सच्चा लोकतंत्र कैसे आयेगा?
सच बोलने वाले को बोलने नहीं दिया जाता
24 जुलाई 2019 का लोकसभा टीवी देखना।
सब समझ जाओगे।
जय हिन्द।

    - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, 15.05.2020

मंगलवार, 12 मई 2020

मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो, हम तुम्हारे साथ खड़े हैं - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, Oslo
















मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो, हम तुम्हारे साथ खड़े हैं 

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
विपदाओं की कारा तोड़ो
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.

साथ जियेंगे साथ मरेंगे,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
एक दूजे का साथ निभायें 
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं 

वापस आ गाँव को जोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
कार्पोरेटर  दूर भगाओ,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं 

माटी तुमको ज़िंदा रखेगी,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं,
मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं,


पापी शहरों के मुर्दा छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
घर में सम्मान की मौत मरोगे
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.

घर की सूखी रोटी खाना,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं
लावारिश बन शहर न जाना,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.


महानगर को खूब चमकाया
आप मिलकर गाँव सँवारे।
खून पसीना बहुत बहाया 
आओ अपना गाँव सँवारे।

धनियों  को भी धनी बनाया,
आओ मिलकर गाँव सवांरें।
वह तो हमसे दूर खड़े हैं.
आओ मिलकर गाँव सँवारें।

 3
आज आपदा जब आयी है,
मजदूरी भी  बहुत दबाई है.
देश-हमारा वक्त बुरा है,
कार्पोरेटर की बन आयी है.

प्रधान हमारा मिला हुआ है,
श्रमिकों के खिलाफ खड़ा है.
रेल खड़ी है, वक्त दौड़ता
बुरे वक्त में कौन खड़ा है..

 जहाज से बस अमीर उड़े हैं,
किराए से बस रेल दौड़ती।
 जो भी भेज पाए थे गाँव में,
उससे खेती बारी होती है,

मेरे उसके बेटे बेटी की,
संताने दूध-दूध चिल्लाती हैं?
भूखी -प्यासी  उनकी मातायें,
दूध न निकले कह रोती हैं.

अपने को मालिक कहते हैं,
उनसे उम्मीद नहीं होती है.
लॉक डाउन की घोषणा,
जब साँसों को हर लेती है.

आजादी के बाद अभी तक,
नेता मजदूरों से दूर खड़े हैं 
आज हौंसले की बारी थी 
चुल्लू भर जल में डूब मरे हैं.. 

विकास के मिले पैसों से,
अपने ऐश आराम किये हैं,
मजदूर वैसे के वैसे हैं 
अपनी हिम्मत लिए खड़े हैं.

 3
जब हम पैदल चल रहे हैं,
पाँवों के छाले हंस रहे हैं 
छिप-छिपकर हम जाते 
सब हमको ठग रहे हैं। .

गाँव में आमदनी नहीं है ,
हम लघु उद्योग चालायेंगे।
प्लास्टिक नहीं छुएंगे 
हम फिर कुल्हड़ बनाएंगे 
(मौसम है आशिकाना)

दर्दनाक द्वंद्वों से लड़ेंगे 
आमदनी हम बढ़ायेंगे।
बस ईज्जत ही बच जाये,
नया रास्ता हम बनायेंगे
(मौसम है आशिकाना)

 4 
आज फ्लोरेंस नाइटेंगल का जन्मदिन है.  200वीं  वर्ष गाँठ पर बहुत बधाई।
 
विचलित कर रही हैं ,
दहला रही हैं हमको 
बिना मास्क लड़ रही हैं 
नाइटेंगल आज देखो 

नेता महल में बैठे 
हुकुम चला रहे हैं 
नर्सें हमारी देवियाँ 
जीवन बचा रही हैं

प्रिय राम-राम तुमको,
सौ-सौ सलाम तुमको 
दुनिया की रात्रिदेवी (नाइटेंगेल)
कोटि-कोटि प्रणाम तुमको।










रविवार, 10 मई 2020

लॉकडाउन में माँ - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक






















लॉकडाउन में माँ 
 सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 10 मई 2020

850 किलोमीटर की दूरी को
सड़क पर
पैदल चलकर तय कर रही माँ।
ब्रिटेन में कोरोना से पीड़ित माँ
जन्म देकर खुद चल बसी।
भारत में जन्म देकर कोरोना पीड़ित माँ
अपनी संतान से वीडियो पर
कर रही संवाद।


वाराणसी, उत्तर प्रदेश में अपने बच्चों को
घास खिलाने पर थाने में पेश होती माँ।
कश्मीर में महीनों कर्फ्यू में खिड़की से
अपने बच्चे को दुनिया दिखाती माँ।


अपने बच्चे को दूध पिलाती
दुनिया की अनेक जेलों में बन्द,
कोरोना से बचाने के लिए
हाथ-सिलाई मशीन से
मास्क सिलती माँ।


महिलाओं की आधी आबादी होने,
फिर भी संसद तक
आधा प्रतिनिधित्व नहीं ले सकी औरत,
अब बच्चों को पालना छोड़कर
राजनीति में उतरने की सोंच रही औरत,
शायद कुछ समय तक
औरत नहीं बनेगी माँ?

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 10 मई 2020
10 जनवरी 1857 को पहली आजादी की क्रांति हुई थी.

शनिवार, 2 मई 2020

श्रमिक किसानों को हक़ उनका दिलाना - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 श्रमिक किसानों को हक़ उनका दिलाना 
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

पहली मई को तुम, यह कसम खाना, 
श्रमिकों के लिए, रेन बसेरा बनाना।

श्रमिकों के बच्चों को (भी) स्कूल जाना,
श्रमदान करके भैया उनको पढ़ाना। 

श्रमिकों किसानों जागो, तुम्हें आगे आना,
जगह-जगह अपने तुम संगठन बनाना। 

श्रमिकों के लिए तुम श्रमदान करना,
श्रमिकों से आयेगा, एक नया ज़माना। 

बस्ती-बस्ती गाँव-गाँव श्रमिक संघ बनाना,
सब जगह  विश्रामघर-भोजनालय बनाना।

दुनिया में कहर लायी, कोरोना महामारी,
मरे भूख से 70 करोड़, आपदा भारी।

करोड़ों को दस्तक देती, भुखमरी -बीमारी,
दुनिया में कहर लाई कोरोना महामारी।

कसम इंसानियत की, गरीबों को उठाना,
श्रमिक-किसानों को, उनका हक़ दिलाना।