'सांसद मौन, मजदूर परेशान?
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कोई आसमान तो नहीं फटा?
बस जीवन ही बचा.
जैसे सरकार को
अपनी अंगुली में नचा रहा?
जाने-अनजाने बता दिया
जीवन/स्वास्थ/व्यवस्था को धता.
कोरोना से उपजी महामारी,
सत्ता के भूख से उपजा दलबदल
जैसे मौत की परवाह न करके
कोरोना से मरे लोगों के जेब से पैसे
और अंगुली से अंगूंठी निकालते हैं
आज और कल?
कितने प्रतिशत की सरकार
उसमें कहाँ है आज के मजदूर की आवाज?
विपक्ष और मजदूरों से कितनी दूर,
किस घमण्ड में चूर?
अभी भी देशवासी मर रहे रास्ते में
मौन हम असंवेदनशील,
अमीर डिफाल्टरों के उधार माफकर,
उन्हीं को फिर उधार दे रहे।
मजदूर भूखे हैं मार्ग में।
सरकार है किस गुमान में?
पता करो कितने सांसद गूंगे
और मजदूर देश की आवाज बन रहे।
हिम्मत है तो सारे सांसद जो चुप हैं,
त्यागपत्र देकर सड़क पर आयें,
आज मजदूरों के खिलाफ
चुनाव लड़कर दिखायें।
मजदूर 48 दिनों बाद भी,
घर पैदल जाने को मजबूर,
जिम्मेदार सरकार का, नेताओं का
गरीबी और अमीरी में बांटने का,
एक दिन टूटेगा राष्ट्रीय गुरुर।
प्रदेश की सीमायें
अव्यवस्था में अंतराष्ट्रीय सीमा क्यों बना रहे?
जिम्मेदार सरकार पल्ला झाड़े तो कैसे
सड़कों पर भूख और दुर्घटनाओं को अनदेखी कर
कहीं बन न जायें नेता कभी चुनाव हारकर
स्वदेशी मजदूर की तरह शरणार्थी?
हर बार कोरोना नहीं आयेगा
तुम्हें बचाने?
एक दिन कैसे बचायेगा मेमना शेर से
अपने बच्चों को।
जैसे भविष्य में कहीं बन गयी
मजदूरों की सरकार?
तब नेता हो जायेंगे बेरोजगार?
एक दिन कोरोना जायेगा,
पर बिना मज़दूरों और
महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी बिना
देश में सच्चा लोकतंत्र कैसे आयेगा?
सच बोलने वाले को बोलने नहीं दिया जाता
24 जुलाई 2019 का लोकसभा टीवी देखना।
सब समझ जाओगे।
जय हिन्द।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, 15.05.2020
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