देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
जीने की चिन्ता कभी न की,
मरने की चिन्ता क्या करना।
जब आदर्शों का पोल भरा
ढोल की चिन्ता क्या करना।
बस जंगल में ही आग लगी,
पशु-पक्षी की चिंता क्या करना?
हम पिंजरे में बन्द कोरोना से,
भूकम्प की चिन्ता क्या करना।
जनता के प्रतिनिधि सहमें-सहमे,
अपने कष्टों पर उपहासी होना।
यदि संकट से बाहर लड़ने आते,
निसंदेह संकट का कम होना।
जब जनप्रतिनिधि घर में घुसे हुए,
तब मजदूरों का कौन सुने रोना
सड़क पर नंगे पाँव मजदूर चलें,
तब दीप जलाकर खुश होना।
ये आँसू, विज्ञापन में दिखते हैं,
फिर आँसू बहाकर क्या करना?
जब ट्यूटर टीवी पर तो दिखते हैं,
उन मजदूरों के संग क्या चलना?
बिना देश की जनता से पूछे-समझे,
देसी सम्पत्ति पे नज़र नहीं रखना
हवाई- स्टेशन-बन्दरगाह आदि को,
वह बाप भले हो, पर नहीं देना।।
भुखमरी कोरोना से दुखी जनता,
कृपया मनमानी तुम नहीं करना।
कोरोना बाद, देश पटरी पर ला,
राष्ट्र संपत्ति राष्ट्रीयकरण कराना।
सरकार-विपक्ष और सभी स्वयं सेवी,
मिलकर सलाहकर सब नीति बनाना।
किसी का देश पर एकाधिकार नहीं है,
जनता की दुखती-नस नहीं दबाना ।
यह जनता की चुप्पी, हाँ कभी नहीं,
बस सूचना अभाव और असमंजस है।
यह पारदर्शिता बिना घबरायी है,
हमारे नेता क्यों लगते हैं डरे-दबे।
सब पुरुष-महिला को सैनिक शिक्षा,
देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी हो।
किसी फर्म और किराए के सैनिक से,
भारत देश की नहीं पहरेदारी हो
-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',ओस्लो, 17 मई , 2020.
नार्वे के राष्ट्रीय दिवस पर. भारत के लिए कविता प्रस्तुत है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें