सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से
1
मुझे राजनीति नहीं करनी, हम्हें घर चलाना है,
मुझे राजा नहीं बनना, समाज की रीढ़ बनना है।
शांतिपूर्ण प्रदर्शन है लोकतंत्र की खूबसूरती,
मुझे किसी भी हालात में इसे बहाल रखना है।"
2
लोकतंत्र में माना, कोई तानाशाह नहीं होता है।
सभी दलों के साथ मिल देश चलाना होता है।
फूल सी ये पार्टियाँ राजनैतिक गुलदस्ता हैं,
अनेकता में एकता से लोकतंत्र कायम होता है।
3
तुम कह रहे थे वोट दूँगा मैदान में आओ तो,
मैंने अभी किसी पार्टी का परचम नहीं थामा।
तुम विचार में मेरे खिलाफ हो तो क्या हुआ,
तूफान के बाद तो मिलकर आबाद करना है।"
तूफान के बाद तो मिलकर आबाद करना है।"
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