संसद में बहस बंद है, क्या लोकतंत्र पर खतरा है?
संसद में बहस बंद है, क्या लोकतंत्र पर खतरा है?
देश में लोकतंत्र
क्यों कमजोर हो रहा है?
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
महामारी बनी हुई हुई है
लोकतंत्र कमजोर हो रहा है.
सरकार घिर गयी है,
न जाने कब गिरेगी?
सरकार किसके इशारे पर
देश-धन लुटा रही है.
किसानों और मजदूरों के हक़
छीन रही है.
लोकतंत्र ख़तम हुआ है,
संवाद कम हुआ है.
किसान आंदोलन ने
सोते को जगा दिया है.
किसान जब सड़क पर,
श्रमिक भी आ रहे हैं.
हर गाँव और शहर में,
जन आंदोलन से जुड़ रहे हैं.
बिना युद्ध के क्यों,
किसान शहीद किये हैं?
विदेशी शक्ति के बस में
क्या सरकार फंस गयी है?
संसद में यदि चर्चा नहीं,
तो लोकतंत्र पर खतरा?
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
संसद में यदि चर्चा नहीं, तो लोकतंत्र पर खतरा?
29 नवम्बर को भारत में दोनों सदनों (लोकसभा)
शीतकालीन सत्र की शुरुआत,
सरकार की मनमानी
तीन घोर काले कृषि कानून की वापसी।
सरकार इन कानून के पक्ष की प्रशंसा में जुटी।
सरकार की प्रतिष्ठा गिरी, देश की प्रतिष्ठा दाँव
विदेश में भी गिरी?
सरकार ख़ुशी मन रही?
जब काला कृषि कानून वापसी पर
लगायेंगे राष्ट्रपति;
यदि राष्ट्रपति भी करें मनमानी,
और करें देश के साथ न्याय
तो क्या राष्ट्रपति उद्योगप्रेमी सरकार को
कर सकती है बर्खास्त?
सरकार ने संसद में विपक्ष को नहीं करने दी चर्चा
भारत देश का लोकतंत्र शर्मसार हो गया.
सबसे बड़ी लोकतंत्र संस्था में
अभिव्यक्ति की आजादी की हो गयी हत्या।
सत्ताधीश सांसदो ने देश की आस्था को क्यों दिया धक्का।
चर्चा क्यों डरी है सरकार।
किसान को सड़क पर कुचला गया।
राज्यसभा में 12 सांसदों को निलंबित किया गया,
जिसका इरादा करना है राज्य सभा में मनमानी।
तानाशाह बन गयी सरकार।
क्या बहादुर किसानों की तरह
देश का हर वर्ग आयेगा सड़क पर,
और समय से पहले करे सकेगी
अपदस्थ केंद्रीय सरकार।
सात सौ किसानों का बलिदान।
संसद में सरकार को कर गयी बौना।
अपने ही देश में अपनी सरकार
लोकतंत्र के लिए कर रही है कार्य घिनौना?
29.11.21
संविधान दिवस लोकतन्त्र में आस्था का दिन है आज का दिन,
(26 नवम्बर 2021 किसान आन्दोलन का एक वर्ष लोकतन्त्र में आस्था का दिन है आज का दिन.)
सुरेशचन्द्र शुक्ल
मजदूर की आह
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक
“जिस मार्ग पर चलाते थे रिक्शा,
वह मार्ग आज क्यों बन्द है।
छीनकर भूमि हमारी
बड़ी चौड़ी सड़कें बनाकर
हमसे ही टोल/ टैक्स ले रहे हैं,
कोविड-19 महामारी के चलते
जब सारे रोज़गार बन्द हो गये हैं।
जब सरकार ने बनाये थे हवाई अड्डे,
हम भी आये थे साथ,
उन हवाई अड्डों को
क्यों अमीरों/ कारपोरेटरों के पास
गिरवी / लीज पर (किराये) पर
दे दिया हैं।
जनता के प्रतिनिधि नेता ने
बिना जनता से पूछे
राष्ट्रीय सम्पत्ति को
हवाई अड्डे को, रक्षा उद्योग को
पहले कर्मचारियों को मालिक बनाकर
सरकार ने समाधान क्यों नहीं खोजा?
हमारा कोआपरेटिव (सहकारिता) बनाकर जनता को
क्यों नहीं सौंप दिया।
हाय हम क्या कर रहे हैं?
किसान मजदूरों को सही मुआवज़ा दे न सके
जबरदस्ती धमका, फुसला और बहकाकर
लाभार्थी कहकर अपने किये पर
हम मिट्टी डाल रहे हैं।
क्या आये दिन यदि एयरपोर्ट बनेंगे
कारपोरेटरों को देने के लिए?
चुनाव -चन्दा जनता से छिपाकर,
आज के धृतराष्ट्र सत्यवादी बने
क्या आखेट के पीछे छिपे हैं?
जिस छोटी सी सड़क पर,
गाँव को बिना टैक्स के जोड़ती थी,
गाँव वालों से पूछे बिना,
आज क्यों चौड़ा कर रहे हैं।
जब जमाख़ोरी को मिल रही छूट,
हमारे उगाये टमाटर आदि
हमको ही आज महँगे दामों पर
बेच रहे हैं।
राष्ट्र की सम्पत्ति
बिना जनता के बीच बहस के,
मनमाने ढंग से बिक रही है,
बिना चर्चा के दशकों से बने
हमारे मकानों को
सरकारी बुलडोज़र गिरा रहे हैं?
जनता सब चुपचाप तमाशा
देख रही है।
बेरोजगार युवकों को
अभिभावक क्यों आत्मनिर्भर बनने से
रोक रहे हैं?
अपनी आवाज उठाने से
क्यों युवाओं को रोक रहे हैं।
क्या वे अपने बच्चे को
बिना लाटरी खरीदे उन्हें
निकली लाटरी समझ रहे हैं?
जैसे हर माँ का अपना बेटा/बेटी
किस्मत वाले लगते हैं?
पर क्या एयरकंडीशन में रहने वाले
सड़क और खेत पर मजूरी करते हैं?
क्या हम सड़कों पर संघर्ष करके
लोकतन्त्र को बचा नहीं सकते?
किसानों की तरह युवा और श्रमिक
रोज़गार, भ्रष्टाचार, महंगाई और लोकतन्त्र पर
बात नहीं कर सकते?
प्रदर्शन नहीं कर सकते?
जो सत्ताधारी सत्ताधारी सांसद जनता द्वारा चुने गये,
अपने घरों में चूहों की तरह दुबक कर
बैठ गये हैं?
क्या जनता उन्हें
लोकतन्त्र की चूहेदानी से पकड़कर
संसद से बाहर नहीं कर सकती?
26.11.21