मजदूर की आह
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक
“जिस मार्ग पर चलाते थे रिक्शा,
वह मार्ग आज क्यों बन्द है।
छीनकर भूमि हमारी
बड़ी चौड़ी सड़कें बनाकर
हमसे ही टोल/ टैक्स ले रहे हैं,
कोविड-19 महामारी के चलते
जब सारे रोज़गार बन्द हो गये हैं।
जब सरकार ने बनाये थे हवाई अड्डे,
हम भी आये थे साथ,
उन हवाई अड्डों को
क्यों अमीरों/ कारपोरेटरों के पास
गिरवी / लीज पर (किराये) पर
दे दिया हैं।
जनता के प्रतिनिधि नेता ने
बिना जनता से पूछे
राष्ट्रीय सम्पत्ति को
हवाई अड्डे को, रक्षा उद्योग को
पहले कर्मचारियों को मालिक बनाकर
सरकार ने समाधान क्यों नहीं खोजा?
हमारा कोआपरेटिव (सहकारिता) बनाकर जनता को
क्यों नहीं सौंप दिया।
हाय हम क्या कर रहे हैं?
किसान मजदूरों को सही मुआवज़ा दे न सके
जबरदस्ती धमका, फुसला और बहकाकर
लाभार्थी कहकर अपने किये पर
हम मिट्टी डाल रहे हैं।
क्या आये दिन यदि एयरपोर्ट बनेंगे
कारपोरेटरों को देने के लिए?
चुनाव -चन्दा जनता से छिपाकर,
आज के धृतराष्ट्र सत्यवादी बने
क्या आखेट के पीछे छिपे हैं?
जिस छोटी सी सड़क पर,
गाँव को बिना टैक्स के जोड़ती थी,
गाँव वालों से पूछे बिना,
आज क्यों चौड़ा कर रहे हैं।
जब जमाख़ोरी को मिल रही छूट,
हमारे उगाये टमाटर आदि
हमको ही आज महँगे दामों पर
बेच रहे हैं।
राष्ट्र की सम्पत्ति
बिना जनता के बीच बहस के,
मनमाने ढंग से बिक रही है,
बिना चर्चा के दशकों से बने
हमारे मकानों को
सरकारी बुलडोज़र गिरा रहे हैं?
जनता सब चुपचाप तमाशा
देख रही है।
बेरोजगार युवकों को
अभिभावक क्यों आत्मनिर्भर बनने से
रोक रहे हैं?
अपनी आवाज उठाने से
क्यों युवाओं को रोक रहे हैं।
क्या वे अपने बच्चे को
बिना लाटरी खरीदे उन्हें
निकली लाटरी समझ रहे हैं?
जैसे हर माँ का अपना बेटा/बेटी
किस्मत वाले लगते हैं?
पर क्या एयरकंडीशन में रहने वाले
सड़क और खेत पर मजूरी करते हैं?
क्या हम सड़कों पर संघर्ष करके
लोकतन्त्र को बचा नहीं सकते?
किसानों की तरह युवा और श्रमिक
रोज़गार, भ्रष्टाचार, महंगाई और लोकतन्त्र पर
बात नहीं कर सकते?
प्रदर्शन नहीं कर सकते?
जो सत्ताधारी सत्ताधारी सांसद जनता द्वारा चुने गये,
अपने घरों में चूहों की तरह दुबक कर
बैठ गये हैं?
क्या जनता उन्हें
लोकतन्त्र की चूहेदानी से पकड़कर
संसद से बाहर नहीं कर सकती?
26.11.21
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