ज्वलंत प्रश्न
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
इतिहास में उलझा हुआ यह प्रश्न है
भुखमरी देश में, राज्य में ये जश्न है?
आक्सीजन से मरे सरयू में लाशें तैरती,
नौ लाख दीपों से हँस रहे क्या दंश है?
राष्ट्र की सम्पत्ति, पूछे बिना क्यों बेचते?
समाधानों को क्यों मिलजुल नहीं सोंचते।
क्या राष्ट्र कार्पोरेटरों- प्रधान के बाप की,
इसके पीछे ग़ुलामी का आह्वाहन तो नहीं।
उठो जागो कमर कसकर मैदान में आओ,
साक्षरता, श्कौशल विकास को बढ़ाओ।
देश में महिलाओं की सरकार लाओ।
भ्रष्ट को रोक दो, जब जहाँ देखो सुनो,
न्यायालय-सुरक्षा गुप्तचर क्या सो रहे हैं?
संसद-भवन बहस बिना क्यों बिक रहे हैं?
देश की सरकार में विदेश के एजेंट घुसे हैं,
इसीलिये वे धनवान पलायन कर रहे हैं?
विरोध का हड़ताल का अधिकार छीना,
देशभक्त जेल में क्यों भेजे जा रहे हैं?
चुनाव में लगा धन किसने जुटाया,
क्या उसी को राष्ट्र सम्पत्ति बेच वादा निभाया?
नींव का पत्थर ना हिलाओ न आजमाओ?
गाँधी-बुद्ध-नानक का न मज़ाक़ बनाओ।
बेसुमार श्रमिक-किसान सड़क पर आ गये
आत्महत्या कर रहे परिजन को न सताओ!
सावधान! कवि को क्यों तूफ़ान दिखता?
मौसम राजनीति विशेषज्ञों को लगाओ?
अति धनी का भारत में पौरुष कम हुआ,
मजबूर समग्र क्रान्ति को ना ललकारो?
पड़ोस से सीखा, आज़ाद हमसे बाद हुआ,
लोकतन्त्र के गाँधी देश को तुम बचाओ।
ऐसा न हो, दबकर देश-नींव धंस न जाये,
प्रलय से देश कहीं पुनः घिर न जाये?
वो बचेंगे, जिनके पास अपने जहाज़ है?
हम जंगल के पशुपक्षी, देशभक्त बाझ हैं।
जंगल-आग से जो अग्निपक्षी बच जायेंगे ?
क्या कायर भागे हुए लोगों के घर जलायेंगे।
ओस्लो, 05.11.21
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