सिनेमा के बाल गीतों का बालमन पर प्रभाव पर डिजिटल गोष्ठी
08.09.24 कल शाम इस विषय पर एक आनलाइन संगोष्ठी जूम मीट पर आयोजित हुई और इसमें भाग लेने का अवसर मुझे भी मिला।
भोपाल से लता अग्रवाल जी ने लोरी गीतों पर बहुत ही सुंदर बातें कही और वो तो पुराणों तक से लोरी ढूँढ लायी। उन्हें सुनकर मैं चमत्कृत हो गई। कितना गहन शोध किया था उन्होंने।
कार्यक्रम की संचालक विमला भंडारी जी ने भी प्रदीप और आनंद बख्शी साहब के गीतों पर बात की और कई बार वो भाव विह्वल भी हुई। ख़ासकर "ए मेरे वतन के लोगों" गीत का ज़िक्र करते हुए वो बहुत भावुक थीं।
अपनी बात क्या कहूँ! मैं वहाँ सबसे छोटी थी तो सबने बहुत स्नेह दिया। मैंने एनीमेशन फ़िल्मों पर उनके गीतों की बात की।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डा. संजीव कुमार ने बहुत से गीतों का ज़िक्र किया और कुछ गीत गाये भी। साथ ही फिल्मी बाल गीतों के संकलन को प्रकाशित करने का निर्णय लिया उन्होंने। उनका मत था कि गीतों और साहित्य के बीच लक्ष्मण रेखा नहीं खींची होनी चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में कई विद्वानों ने अपने विचार साझा किए। एक विचार जो साझा हुआ वो ये कि साहित्य को फ़िल्मी गीतों से दूरी नहीं बनानी चाहिए। ये भी प्रश्न उठा कि क्या गीत साहित्यिक नहीं होते हैं? सभी सुधीजन इतने उत्साहित थे कि ऐसे कई बिंदु कार्यक्रम में शामिल हो गये।
नॉर्वे से शरद आलोक जी का उत्साह संक्रामक है
नॉर्वे से सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' जी ने पूरे उत्साह से अपनी अगली भारत यात्रा में एक बैठक बना कर कुछ बाल गीतों पर टेली फ़िल्म बनाने की योजना भी बना डाली। उनका उत्साह संक्रामक है।
कुल मिलाकर, गोष्ठी बहुत ही सुंदर और ज्ञानवर्धक रही। मुझे इसका हिस्सा बनाने के लिए बहुत आभार विमला जी। (वामा)
- हेमा बिष्ट
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