सोमवार, 2 सितंबर 2024

कुहासा छट रहा है - सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

 कुहासा छट रहा है 

 सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘ शरद आलोक’

कुहासा छट रहा है 
रोशनी बढ़ रही है
 
जंगल की आग में 
सब कुछ जल गया है।
घोंसले जल गए हैं,
चूजे जल गए हैं।
 
मणिपुर में तबाही 
सैकड़ों चर्च जला दिए हैं।
खंडहरों में राख में 
कुछ चिंगारियां बच गयी हैं।

देश है जिसके हवाले,
वह बिक गया है।
लोकतंत्र से उसका 
भरोसा उठ गया है।

फासीवादी ताकतें 
सत्ता में आ गयी हैं।
जहाँ -तहाँ देखो  
मॉब लिंचिंग हो रही है।

जिन्हें जेल में होना चाहिए 
वह सत्ता चला रहे हैं।
घर के दीपकों से 
अपना घर जला रहे हैं।

सुनसान जलते जंगल में 
कुछ इंसान बच गए हैं। 
ईमान जल रहा है, 
उसको बुझा रहे हैं।

गाजा में नरसंहार?
अस्पताल जल रहे है।
बच्चों के स्कूल जल रहे,
शरणार्थी शिविर जल रहे हैं। 

इजराइल में सेना क्यों 
अपना घर जला रही है?
पलिस्तीनी को कहते भाई,
उन्हीं को मिटा रही हैं।

युद्ध-जुल्म से जिनकी 
दुकानें चल रही हैं।
खतरनाक शस्त्रों की,
मिसाइलें चल रही हैं।

युद्ध में दोनों ओर से,
गोलियाँ चल रही हैं।
गाँधी की सोच वालों की 
शांति वार्तायें चल रही हैं।

मानवता बड़ा मजहब,
मानवता जहाँ है घायल।
मानवता बड़ा मजहब, 
शांति की बड़ी कायल।

मणिपुर से कश्मीर तक 
शांति के लिए दीपक जला रहे हैं।
कुहासा कभी छटेगा? 
शांति बहाल होगी।
02.09.24

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