नार्वे में जन्माष्टमी पर अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन सम्पन्न
कार्यक्रम का आयोजन भारतीय-नार्वे जीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया।
मुख्य अतिथि प्रो. निर्मला एस. मौर्य, विशिष्ट अतिथि थे प्रो. हरनेक सिंह गिल और प्रो. के पंकज और अध्यक्षता की सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ तथा सभी ने जन्माष्टमी पर शुभकामनायें दीं।
अपने वक्तव्य में कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थी पूर्व कुलपति निर्मला एस. मौर्य वाराणसी ने शुभकामनायें दीं और कहा भक्ति और आसक्ति से तो यशोदा और राधा ने उन्हें बांधा। सूरदास, नन्ददास, मीरा बाई और अब्दुल रहीम खानखाना 'रसखान' जैसे अनेक रचनाकारों ने कृष्ण लीला और भक्ति से अपना साहित्य अजर अमर बना लिया।
अध्यक्षता करते हुए संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ ने कहा कि कृष्ण लोकनायक हैं। राधे-राधे जपो तो कृष्ण चले आयेंगे। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध समालोचक प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा के अनुसार कृष्ण ने सहस्रों वर्षों पूर्व लोकतंत्र की स्थापना की। कृष्ण की प्रत्येक लीला में मर्म और आशय है। अंधकार में प्रकाश लाते हैं कृष्ण।
डॉ. आकांक्षा मिश्रा रायपुर ने अपनी स्वरचित सद्य प्रकाशित पुस्तक काफी की महक का परिचय दिया और रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त किए।
अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन:
कवि सम्मेलन की शुरुआत निराला जी की स्वरस्वती वंदना से सस्वर प्रस्तुत किया प्रमिला कौशिक ने।
विदेश से
सर्वश्री प्रो. हरनेक सिंह गिल लंदन एवं डॉ. जय वर्मा नाटिंघम ब्रिटेन, डॉ. राम बाबू गौतम न्यू जर्सी अमेरिका, नीरजा शुक्ला कनाडा और गुरु शर्मा एवं सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ नार्वे थे।
भारत से
सर्वप्रथम स्व. विप्लव जी की कविता का और अपनी रचनाओं का पाठ किया डॉ. सुषमा सौम्या लखनऊ, प्रो. नमिता आर्य पुणे, डॉ. ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी कबीर नगर, शशि पाराशर एवं प्रमिला कौशिक दिल्ली, पर्यावरणविद् डॉ. अर्जुन पाण्डेय अमेठी, जलयोद्धा आर्य शेखर प्रयागराज, डॉ. आकांक्षा मिश्रा रायपुर, प्रो. के. पंकज पूर्णिया ने।
जन्माष्टमी देश - विदेश में मनायी जाती है और यह सद्भाव का त्योहार है। दुनिया में जहाँ -जहाँ भारतीय हैं वहाँ -वहाँ मनाया जाता है। घरों और मंदिरों में झाँकियाँ सजाई जाती है।
कीर्तन, भजन और कवि सम्मेलन आदि आयोजित किए जाते हैं। जन्माष्टमी देश - विदेश में मनायी जाती है और यह सद्भाव का त्योहार है।
गीता का संदेश और कृष्ण लीला की कथायें पूरी दुनिया में मशहूर है।
- माया भारती, ओस्लो नार्वे से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें