माइकेल जैकसन की विदाई पर
उन्हें प्रेम समर्पित जो मेरा प्रेम नहीं पाये
कुछ मजबूरी होगी जो कह न पाये - शरद आलोक
संगीत यंत्रों के तार, मुक्त हुए हैं
ज्यों शरीर से मुक्त आत्मा,
वेदों की वाणी कहती ही
जग को अपना बना सकते हो,
कला एक अपनाकर।
संगीत-गीत जग के मन को मोह रहे हैं,
अनजान बना अपना हो जाता
केवल आँचल फैलाकर देखो
द्वार खड़ा जो द्वार ह्रदय के
राह देखता, आस लगाये
तुम क्यों उससे दूर खड़े हो?
प्रेम अन्तर में नहीं जगा तो
तुम क्या मुझसे प्रेम प्रेम करोगे ?
दूजों को खुश रखना आए
प्यासे की जो प्यासा बुझाये
प्यासा नत मस्तक हो जाए,
सेवा -पूजा दो पट सिक्के के
देतें हैं हमको शीतलता
वह दुनिया को देता जो कुछ
वह कोई धन धान्य नहीं है
केवल वह तो शान्ति बीज है
आओ हम भी कुछ प्रेम बिखेरें
दो अश्रु बहायें
भेदभाव के पात्र बने जो
उनको हम सब गले लगाएं।
विश्व के बने हम महान नागरिक
केवल मानव धर्म हमारा।
हाथ तुम्हारा चूम रहा हूँ
पालिश जूतों में करते जो
उनके जूतों को सहलाऊं
खाना लाते बैरों के संग
कुछ कौर निवाले खाना
बस अपना मन बहलाना।
कितने धनी, कितने बड़े हैं
यदि दूजों के लिए नहीं बने हैं
अपने घर के द्वार.
ऐसा ह्रदय नहीं ही जग में
जहाँ नहीं है प्यार।
मुख से बोल नहीं फूटे तो
नहीं बोल सकते हैं जो
नहीं कभी सुन सकते हैं जो
नहीं देख सकते हैं जो
उनसे जितना प्रेम कहाँ हैं ?
हमारे -तुम्हारे मन मन्दिर का प्यार ।
अहम् बहुत है पूरेपन पर
कितने आज अधूरे हो तुम
अगर साथ नहीं चल सकते उनके
जिनके मन में प्यार।
नही उठाया जाता शीश
बिखरे छ्णों को बटोर कर
जो कभी विश्व मंच पर,
मन के मनके रहे बिखेरते
जैक्सन जैसे कितने लोग?
जो दूजों का दुःख harte हैं
संसार उन्हें देता सम्मान ।
टूट गए हों ,
गूँज-गूँज कहकहे लगाते
थिरकते पावों के घुंघुरुओं से तुम !
जीवन की आपा धापी में
कुछ समय मिला, कुछ मधुर स्मृति
अपने मन का बोझ बड़ा है
शान्ति भाव से sheesh navaate
उनको श्रद्धा सुमन chaDhate.
' शरद आलोक '
माइकेल जैक्सन के अन्तिम संस्कार पर श्रद्धांजलि ०७-०७-०९ ओस्लो , नार्वे
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