बुधवार, 1 अगस्त 2012

आज संगीता की शादी की वर्षगाँठ।

आज 1 अगस्त है। आज संगीता की शादी की वर्षगाँठ। बहुत-बहुत बधायी।   हम लोगों ने इस अवसर पर केक काटकर इसकी शुरुआत की, जो यहाँ पश्चिम की रीति है. संगीता और दामाद रोई थेरये  को संयुक्त रूप से फूलों के गुलदस्ते  भेंट किये गए गये।
14 वर्षों पूर्व ओस्लो, नार्वे में 1 अगस्त 1998 को मेरी बेटी संगीता का विवाह हुआ था। मेरी माताजी भारत से शादी में सम्मिलित होने  आयीं थी।  वह बहुत खुश थीं। मेरे बड़े भतीजे जय प्रकाश को भी आना था उसके टिकट और वीजा के लिए अग्रिम कार्यवाही भी हो गयी थी पर वह पता नहीं क्यों नहीं आया। मेरे मित्र डॉ सत्येन्द्र सेठी कहते हैं कि जय प्रकाश ने
एक बहुत बड़ा अवसर खोया।   विदेशों में रहने वाले लोग अपने सबसे चहेते व्यक्ति को अपनी शादी-जन्मदिन आदि में भारत से बुलाते हैं।   कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति स्वयं सही निर्णय ले नहीं पाता .  जय प्रकाश क्यों नहीं राजी हुआ आज तक उस बात का मुझे पता नहीं चल पाया।   खैर शादी से परिवार के सभी लोग प्रसन्न थे। मुझे स्मरण है की मेरे पिताजी लखनऊ में जब संगीता बहुत छोटी थी उसे बहुत चाहते थे। वैसे   कहा भी गया है कि मूल से अधिक ब्याज प्यारा होता है।
जब संगीता की शादी हुई थे तब  भारत में भी परिवार में इस अवसर पर केक काटकर और लड्डू बाँटकर ख़ुशी मनाई गयी थी।
आजकल ओस्लो में फ़ुटबाल का अंतर्राष्ट्रीय कप 'नार्वे कप'  की चहल -पहल है. वैसे तो लन्दन में ग्रीष्मकालीन ओलम्पिक खेल हो रहे हैं।  आज छोटे  बेटे अर्जुन का फ़ुटबाल मैच था. सभी उसका मैच देखने गए थे एकेबर्ग, ओस्लो में।
समय कितनी तेजी से बीत रहा है।जब हम पुरानी घटनाओं को याद करते हैं तब बीते हुए समय का अहसास अधिक
होता है।
समय पंख लगाकर संग उड़ा रहा है. हम उड़े चले जा रहे हैं, किसी को साथ लेकर और किसी को छोड़ते हुये. मुझे स्मरण है मेरे एक मित्र कृष्ण कुमार अवस्थी जी, जो तेलीबाग लखनऊ में रहते हैं, वह कुछ वर्ष पहले अपनी धर्म पत्नी और अपने कुछ डेनमार्क के मित्रों के साथ मेरे ओस्लो निवास पर आये थे। तब उन्होंने  शंख बजाया था उसकी गूँज आज भी मुझे याद है।  जिस तरह शंख की गूँज कुछ समय तक अपना अस्तित्व का बोध कराती है ठीक उसी तरह  हमारा जीवन इस संसार में रहकर लुप्त हो जाता है।
आज एक घटना ने मेरा मन कुछ दुखी किया जब टीवी पर देखा सूना कि पूना में चार जगह बम विस्फोट हुआ है। अभी दो तीन दिन के बिजली संकट  (ब्लैक आउट) से  उबरे ही थे कि  दूसरे संकट दस्तक देते हैं। चलो जान-माल का नुकसान नहीं हुआ।  

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