गुरुवार, 9 अगस्त 2018

दलाई लामा शरणार्थी है, नेहरू जी पर गलतबयानी से बयानी से आएं

आज अखबारों दलाई लामा का एक बयान छपा है . फरमाते हैं कि अगर नेहरू ने जिन्ना को प्रधानमंत्री बनने दिया होता तो देश का बँटवारा नहीं होता. दलाई लामा इस देश में एक शरणार्थी हैं  .जिस देश ने उनको शरण दी है उसके आतंरिक मामलों के बारे में उनको गैर ज़िम्मेदार बयान नहीं देना चाहिए . समझ में नहीं आ रहा है कि उनका जिन्ना प्रेम क्यों जागा है .
मुहम्मद अली जिन्ना को प्रधानमंत्री क्या ,देश उनको कोई भी ज़िम्मेदारी देने को तैयार  नहीं था. जिन्ना के डाइरेक्ट  एक्शन के आवाहन के बाद ही बंगाल और पंजाब में खून खराबा शुरू हुआ  था . इस तरह से जिन्ना के सर पर १९४७ में मारे गए दस लाख लोगों के खून का ज़िम्मा है. दुनिया के हर  समझदार आदमी को मालूम था कि जिन्ना ने अगर डाइरेक्ट एक्शन की  कॉल न दी होती तो इतने बड़े पैमाने पर दंगे न होते.  जवाहरलाल ही नहीं पूरी कांग्रेस और पूरा देश जिन्ना को कोई ज़िम्मेदारी देने को तैयार नहीं  था. जब सरदार पटेल के प्रस्ताव पर जवाहरलाल नेहरू को अंतरिम सरकार का प्रमुख नियुक्त किया गया तो  जिन्ना पगलाय गए . उन्होंने उल जलूल हरकतें करना शुरू कर दिया . डाइरेक्ट  एक्शन  का आवाहन उसी तरह का कृत्य है.  अंतरिम सरकार में उनके ख़ास चेला , लियाक़त अली को  वित्त सदस्य बनाया गया था, आर्थिक मंजूरी के सारे पावर उनके पास थे . उन्होंने अंतरिम सरकार के हर काम में अडंगा लगया . उनको वायसराय का समर्थन था इसलिए यह सारी हरकतें कर रहे थे . पंजाब बाउंड्री   फ़ोर्स के गठन तक में उन्होंने मुसीबतें पेश की. नतीजा यह हुआ  कि शरणार्थियों की सुरक्षा में भारी बाधा आई . जिन्ना हर हाल में मुसीबत  खड़ी करना चाहते थे . इसलिए सरदार पटेल समेत भारत का कोई भी जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाने को  तैयार नहीं था. ठीक ही हुआ क्योंकि बंटवारे के बाद जिस देश का  ज़िम्मा  जिन्ना और लियाक़त अली ने संभाला  ,उसका हाल आज दुनिया देख रही है . पकिस्तान एक " फेल्ड स्टेट" है . अगर जिन्ना-लियाक़त की टोली को ज़िम्मा दिया गया होता , तो हमारा भी हाल बहुत  अच्छा न होता. दलाई लामा कहते हैं कि गांधी जी जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाना  चाहते थे. यह  अर्धसत्य है . महात्मा जी ने केवल इतना कहा था कि इस आदमी के खूंखार मंसूबों को रोकने के लिए इसको कुछ काम से लगा देना चाहिए लेकिन  सरदार को वह भी मंज़ूर नहीं था. दलाई लामा से गुजारिश है कि वे  अर्धसत्य का सहारा  लेकर इस देश के महापुरुषों के  सम्मान को नीचा  दिखाने की कोशिश  करने से बाज आयें .
एक बात और ,जवाहरलाल नेहरू ने जीवन में जो थोड़ी  बहुत  गलतियाँ की हैं  ,उनमे दलाई लामा को भारत में  शरण देना शामिल हैं .अगर इन श्रीमान जी को  नेहरू ने शरण न दी होती तो चीन से सामान्य सम्बन्ध बनाने की  जो कोशिश आज की जा रही  है , उसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ती  क्योंकि जवाहरलाल ने तो १९५४-५५ में हिंदी-चीनी  भाई भाई का कार्यक्रम चला दिया था . चीन हमारा दोस्त था . वह सम्बन्ध  दलाई लामा को शरण देने के कारण ही  बिगड़ा .उसी बिगाड़ के कारण भारत-चीन युद्ध हुआ और हमारी उस वक़्त की कमज़ोर अर्थव्यवस्था  का भारी नुक्सान हुआ. आज भी चीन से हमारे रिश्ते इनके कारण  ही खराब  हैं . चीन ने  पाकिस्तान से हाथ मिला लिया   है  और हमारी सरहदों पर सुरक्षा बलों को ज्यादा चौकस रहना  पड़ता है . इस सब के बाद जब आज यह दलाई लामा जी ,चबा चबा कर ज्ञान बघारते  हैं तो  कष्ट होता है .

-  शेष नारायण सिंह जी के लेख से साभार 

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