मेरे शहर का नाम हाय बदनाम हो गया है.
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020
मेरे शहर का नाम बदनाम हो गया है - सुरेशचन्द्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla
शनिवार, 19 दिसंबर 2020
जनता का सैलाब है किसान आन्दोलन - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
सोमवार, 14 दिसंबर 2020
'अगर तुम आज सोये हो- भारत में किसान आंदोलन को समर्पित - -सुरेश चन्द्र शुक्ल
अगर तुम आज सोये हो,कभी न जाग पाओगे।
A poem dedicated Farmar movement 2020 in India. 'अगर तुम आज सोये हो , कभी न जाग पाओगे।' यह कविता भारत में किसान आंदोलन को समर्पित है तथा काव्य संग्रह 'सड़क पर देवदूत' में संकलित है। -सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 14 दिसम्बर 2020।.
रविवार, 13 दिसंबर 2020
भारत में किसान आन्दोलन: भारत में सांसद मौन विदेशों के सांसद ध्यानाकर्षण करा रहे हैं
भारत में किसान आन्दोलन: भारत में सांसद मौन क्यों
भारत में किसान आन्दोलन: भारत में सांसद मौन विदेशों के सांसद ध्यानाकर्षण करा रहे हैं. फिर भी भारतीय सांसदों के कान में जूँ नहीं रेंग रही है. विदेश में रह रहे भारत के लिए लॉबी करने वाले लोगों कर जब भारतीय सरकार मीडिया के माध्यम से अपना निजी मामला और हस्तक्षेप कहती है तो बहुत दुःख होता है.
भारत के साथ विदेशों के साथ सम्बन्ध मजबूत करने में पूर्ववर्ती भारतीय सरकारों का ज्यादा मजबूत सम्बन्ध रहा है. यह ध्यान देने की जरूरत है. भारतीय सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियों को भी इस बारे में ध्यान देते हुए भारतीय मंत्रियों के विदेशी कनेक्शन और भारत में किन कारणों से भारत में अव्यवस्था हो रही है, लोकतंत्र को ताख पर रख कर कार्य किया जा रहा है ध्यान दिया जाना चाहिए।
अरबों डालकर खर्च करके भी वह भारत के लिए वर्तमान भारत सरकार लॉबी नहीं कर सकती , जो अनेक दशकों से भारत के पक्ष में विदेशों में भारत प्रेमियों द्वारा लॉबी की जा रही है. उसे भारत सरकार ने पिछले दो बार कहा कि यह उनका जातीय मामला है, दूसरे देश के नेता यदि किसानों के बारें में बोलते हैं तो दो देशों के रिश्तों पर असर पडेगा?
यह गंभीर बात है यह भारतीय जनता को गंभीरता से सोचना चाहिए की कौन भारत में ऐसा है कि जिसके कारण भारत में कृषि कानून को सरकार रद्द नहीं कर रही और किसके कहने और किसके फायदे के लिए ये तीनों कृषि कानून बनाये गए.
कहीं ऐसा न हो लोग असमंजस में अपना नुकसान कर लें। किसी की सरकार परमानेंट नहीं होती। अनैतिक तरीके से राज्यों की पार्टियों को तोड़ने, दूसरे प्रदेशों में चुनाव में सरकार मशीनरी के साथ नेताओं का महामारी के कानून की धज्जी उड़ाते हुए अपनी राजनैतिक पार्टियों का चुनाव कराना भविष्य में देश के लोकतंत्र के लिए गले की हड्डी बन सकता है.
एक उदहारण भारतीय मीडिया से पता चलता है और ऐसे अनेक उदहारण आप खोजिये या भारत की सुरक्षा जांच एजेंसियां मंत्रियों के फोन और आने -जाने वालों के बारे में जानकार पता कर सकती हैं.
यहाँ केवल सुशील मोदी की बात का उदाहरण काफी है जो कहते हैं कि किसानों के आंदोलन का सम्बन्ध पाकिस्तान से है. मेरा ख्याल है कि इस बयान की कड़ी तरीके से जांच कराकर सुरक्षा एजेंसियों को सच सामने लाना चाहिए कि हो न हो सुशील मोदी का किसी पाकिस्तानी एजेंसी से संपर्क हो, या उन्हें सरकारी एजेंसी ने बतायी हो या उनकी पार्टी के आई टी सेल से मिली है? भगवान् जानें? या वह स्वयं जानें जो सच नहीं बोल रहे ऐसा लगता है.
सुशील मोदी की जांच इस लिए भी जरूरी हो जाती है कि उनके पूर्व बयानों को जो उन्होंने बिहार चुनाव में अनेक बार दिए हैं वे झूठ पर आधारित हो सकते हैं, लालू प्रसाद यादव से उन्हें और उनकी पार्टी से खतरा था जो उन्हीं की सरकार की जेल में हैं आदि -आदि. ऐसे नेताओं को कभी भी संसद या विधान सभा में नहीं होना चाहिए पर यह कार्य उनकी पार्टी का है यह उनकी पार्टी ही निर्णय करे और जानें।
किसान एक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय है जो धर्म और देश से अलग है.
शुक्रवार, 22 मई 2020
शांतिपूर्ण प्रदर्शन है लोकतंत्र की खूबसूरती - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
तूफान के बाद तो मिलकर आबाद करना है।"
संक्रमण से बड़ी है मजदूरों की समस्या - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कोरोना संकट जारी है
संक्रमण के प्रकोप से बड़ा है
श्रमिकों का संकट।
नौकरी चली गयी,
किराए का घर गया.
न कोई विश्रामघर न कोई भोजनालय।
अपने ही देश में श्रमिक हो गये प्रवासी,
नेता जैसे मुर्गियां दर के मारे
अपने-अपने दरबे में घुस गये
जिन्हे स्तीफा देना चाहिये
वे राज्य कर रहे हैं
श्रमिकों के अपने संगठन नहीं है?
उनकी आवाज उठाने वाले कम हैं
जो आवाज उठाता है
उसे नहीं सुना जाता है?
समझ में नहीं आ रहा क्या हो रहा है?
कौन है जवाबदेह
गांधी के देश में आदर्शों का अकाल?
1
एक महिला का पति मर गया,
स्मृति के समक्ष रो-रोकर हो रही बेहाल
कोई सुनने वाला नहीं उसका हाल?
मुंबई में फंस गयी है?
लोकतंत्र के माया जाल में
फंस गयी है?
न बस न रेल?
यह कैसी राजनीति का खेल?
2
सड़क हादसे में मारे गए
बेटे का शव लेने आया पिता।
पर शव का नहीं कोई पता
वह कभी इधर कभी उधर भेजा जा रहा है
शासन की नाकामी
इंसानी रिश्तों पर पद रही भारी।
3
अपने पिता को बैठाये बेटी
अपने बच्चों को बैठाये
रिक्शा खींचती एक युवती,
इक्कीसवीं शताब्दी की कह रही कथा.
शासन मौन, भवनों में कर रहे आराम।
कौन सुनेगा मजदूरों की व्यथा?
4
रेल की पटरियों पर
कहीं दुर्घटना में मृत
लाशों के बीच
बिखरी रोटियाँ हैं.
कहीं मृत मजदूरों के झोलों में रोटियॉँ
5
मायूस लोगों की भीड़ है
वित्तमंत्री की निर्जीव घोषणा
पैकेज और लाखों रोजगार देने का शोर
और मजदूर भूखे रहने को मजबूर।
सत्ता नचा रही है
हम नांच रहे हैं.
सवाल नहीं उठाकर
खुद को गिरवी रख रहे हैं.
6
शहर के फुटपाथों और झुग्गियों से
मजदूर नंगे पाँव लौट रहे हैं
जरूरत है कि उनके घाव
सत्ताच्युत होने पर उन्हें दिखयेंगे
ताकि दुबारा सत्ता तक न आ पायें।
रविवार, 17 मई 2020
देश की रक्षा सबकी जिम्मेदारी सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',ओस्लो, 17 मई , 2020.
शुक्रवार, 15 मई 2020
'सांसद मौन, मजदूर परेशान' - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
'सांसद मौन, मजदूर परेशान?
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कोई आसमान तो नहीं फटा?
बस जीवन ही बचा.
जैसे सरकार को
अपनी अंगुली में नचा रहा?
जाने-अनजाने बता दिया
जीवन/स्वास्थ/व्यवस्था को धता.
कोरोना से उपजी महामारी,
सत्ता के भूख से उपजा दलबदल
जैसे मौत की परवाह न करके
कोरोना से मरे लोगों के जेब से पैसे
और अंगुली से अंगूंठी निकालते हैं
आज और कल?
कितने प्रतिशत की सरकार
उसमें कहाँ है आज के मजदूर की आवाज?
विपक्ष और मजदूरों से कितनी दूर,
किस घमण्ड में चूर?
अभी भी देशवासी मर रहे रास्ते में
मौन हम असंवेदनशील,
अमीर डिफाल्टरों के उधार माफकर,
उन्हीं को फिर उधार दे रहे।
मजदूर भूखे हैं मार्ग में।
सरकार है किस गुमान में?
पता करो कितने सांसद गूंगे
और मजदूर देश की आवाज बन रहे।
हिम्मत है तो सारे सांसद जो चुप हैं,
त्यागपत्र देकर सड़क पर आयें,
आज मजदूरों के खिलाफ
चुनाव लड़कर दिखायें।
मजदूर 48 दिनों बाद भी,
घर पैदल जाने को मजबूर,
जिम्मेदार सरकार का, नेताओं का
गरीबी और अमीरी में बांटने का,
एक दिन टूटेगा राष्ट्रीय गुरुर।
प्रदेश की सीमायें
अव्यवस्था में अंतराष्ट्रीय सीमा क्यों बना रहे?
जिम्मेदार सरकार पल्ला झाड़े तो कैसे
सड़कों पर भूख और दुर्घटनाओं को अनदेखी कर
कहीं बन न जायें नेता कभी चुनाव हारकर
स्वदेशी मजदूर की तरह शरणार्थी?
हर बार कोरोना नहीं आयेगा
तुम्हें बचाने?
एक दिन कैसे बचायेगा मेमना शेर से
अपने बच्चों को।
जैसे भविष्य में कहीं बन गयी
मजदूरों की सरकार?
तब नेता हो जायेंगे बेरोजगार?
एक दिन कोरोना जायेगा,
पर बिना मज़दूरों और
महिलाओं की 50 प्रतिशत भागीदारी बिना
देश में सच्चा लोकतंत्र कैसे आयेगा?
सच बोलने वाले को बोलने नहीं दिया जाता
24 जुलाई 2019 का लोकसभा टीवी देखना।
सब समझ जाओगे।
जय हिन्द।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo, 15.05.2020
मंगलवार, 12 मई 2020
मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो, हम तुम्हारे साथ खड़े हैं - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla, Oslo
मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो, हम तुम्हारे साथ खड़े हैं
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
विपदाओं की कारा तोड़ो
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
साथ जियेंगे साथ मरेंगे,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
एक दूजे का साथ निभायें
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं
वापस आ गाँव को जोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
कार्पोरेटर दूर भगाओ,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं
माटी तुमको ज़िंदा रखेगी,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं,
मजदूरों तुम गाँव न छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं,
पापी शहरों के मुर्दा छोड़ो,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
घर में सम्मान की मौत मरोगे
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
घर की सूखी रोटी खाना,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं
लावारिश बन शहर न जाना,
हम तुम्हारे साथ खड़े हैं.
२
महानगर को खूब चमकाया।
आप मिलकर गाँव सँवारे।
खून पसीना बहुत बहाया
आओ अपना गाँव सँवारे।
धनियों को भी धनी बनाया,
आओ मिलकर गाँव सवांरें।
वह तो हमसे दूर खड़े हैं.
आओ मिलकर गाँव सँवारें।
3
आज आपदा जब आयी है,
मजदूरी भी बहुत दबाई है.
देश-हमारा वक्त बुरा है,
कार्पोरेटर की बन आयी है.
प्रधान हमारा मिला हुआ है,
श्रमिकों के खिलाफ खड़ा है.
रेल खड़ी है, वक्त दौड़ता
बुरे वक्त में कौन खड़ा है..
जहाज से बस अमीर उड़े हैं,
किराए से बस रेल दौड़ती।
जो भी भेज पाए थे गाँव में,
उससे खेती बारी होती है,
मेरे उसके बेटे बेटी की,
संताने दूध-दूध चिल्लाती हैं?
भूखी -प्यासी उनकी मातायें,
दूध न निकले कह रोती हैं.
अपने को मालिक कहते हैं,
उनसे उम्मीद नहीं होती है.
लॉक डाउन की घोषणा,
जब साँसों को हर लेती है.
आजादी के बाद अभी तक,
नेता मजदूरों से दूर खड़े हैं
आज हौंसले की बारी थी
चुल्लू भर जल में डूब मरे हैं..
विकास के मिले पैसों से,
अपने ऐश आराम किये हैं,
मजदूर वैसे के वैसे हैं
अपनी हिम्मत लिए खड़े हैं.
3
जब हम पैदल चल रहे हैं,
पाँवों के छाले हंस रहे हैं
छिप-छिपकर हम जाते
सब हमको ठग रहे हैं। .
गाँव में आमदनी नहीं है ,
हम लघु उद्योग चालायेंगे।
प्लास्टिक नहीं छुएंगे
हम फिर कुल्हड़ बनाएंगे
(मौसम है आशिकाना)
दर्दनाक द्वंद्वों से लड़ेंगे
आमदनी हम बढ़ायेंगे।
बस ईज्जत ही बच जाये,
नया रास्ता हम बनायेंगे
(मौसम है आशिकाना)
4
आज फ्लोरेंस नाइटेंगल का जन्मदिन है. 200वीं वर्ष गाँठ पर बहुत बधाई।
विचलित कर रही हैं ,
दहला रही हैं हमको
बिना मास्क लड़ रही हैं
नाइटेंगल आज देखो
नेता महल में बैठे
हुकुम चला रहे हैं
नर्सें हमारी देवियाँ
जीवन बचा रही हैं
प्रिय राम-राम तुमको,
सौ-सौ सलाम तुमको
दुनिया की रात्रिदेवी (नाइटेंगेल)
कोटि-कोटि प्रणाम तुमको।
रविवार, 10 मई 2020
लॉकडाउन में माँ - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक
लॉकडाउन में माँ
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 10 मई 2020
850 किलोमीटर की दूरी को
सड़क पर
पैदल चलकर तय कर रही माँ।
ब्रिटेन में कोरोना से पीड़ित माँ
जन्म देकर खुद चल बसी।
भारत में जन्म देकर कोरोना पीड़ित माँ
अपनी संतान से वीडियो पर
कर रही संवाद।
घास खिलाने पर थाने में पेश होती माँ।
कश्मीर में महीनों कर्फ्यू में खिड़की से
अपने बच्चे को दुनिया दिखाती माँ।
अपने बच्चे को दूध पिलाती
दुनिया की अनेक जेलों में बन्द,
कोरोना से बचाने के लिए
हाथ-सिलाई मशीन से
मास्क सिलती माँ।
महिलाओं की आधी आबादी होने,
फिर भी संसद तक
आधा प्रतिनिधित्व नहीं ले सकी औरत,
अब बच्चों को पालना छोड़कर
राजनीति में उतरने की सोंच रही औरत,
शायद कुछ समय तक
औरत नहीं बनेगी माँ?
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 10 मई 2020
10 जनवरी 1857 को पहली आजादी की क्रांति हुई थी.
शनिवार, 2 मई 2020
श्रमिक किसानों को हक़ उनका दिलाना - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
पहली मई को तुम, यह कसम खाना,
श्रमिकों के लिए, रेन बसेरा बनाना।
श्रमिकों के बच्चों को (भी) स्कूल जाना,
श्रमदान करके भैया उनको पढ़ाना।
श्रमिकों किसानों जागो, तुम्हें आगे आना,
जगह-जगह अपने तुम संगठन बनाना।
श्रमिकों के लिए तुम श्रमदान करना,
श्रमिकों से आयेगा, एक नया ज़माना।
बस्ती-बस्ती गाँव-गाँव श्रमिक संघ बनाना,
सब जगह विश्रामघर-भोजनालय बनाना।
दुनिया में कहर लायी, कोरोना महामारी,
मरे भूख से 70 करोड़, आपदा भारी।
करोड़ों को दस्तक देती, भुखमरी -बीमारी,
दुनिया में कहर लाई कोरोना महामारी।
कसम इंसानियत की, गरीबों को उठाना,
श्रमिक-किसानों को, उनका हक़ दिलाना।
मंगलवार, 28 अप्रैल 2020
सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक' की कहानी 'रौब' 'Raub', A short story by Suresh Chandra Shukla
सुरेशचन्द्र शुक्ल की कहानी 'रौब'
"प्रवासी साहित्य पर देश विदेश में जो साहित्यकार कार्य कर रहे हैं को यह कहानी पढ़नी चाहिये। दोनों सुधी अध्यापक गण और प्रतिभाशाली शोधार्थियों की कमी महसूस कर रहा हूँ. उन तक सन्देश पहुंचे तो अच्छा है. इन कथाओं के लिए उनसे संवाद भी हो सकता है. आने वाले दिनों की प्रतीक्षा नहीं करें और निसंकोच जुड़ें. सीधे संवाद करें सन्देश बॉक्स में या ई मेल पर भी स्वागत है.
सुरेशचन्द्र शुक्ल जैसे साहित्यकार जो चालीस सालों से विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य पर जानने के लिए ज्यादा लोग नहीं मिलेंगे। समय को मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश करें और सहयोग लें. " - vaishvika.page
गुड्डी ने कहा, " मम्मी! पापा आ गये."
"क्या बात है. दाल में कुछ काला लग रहा है. मैं सोचने लगी आखिर वह शर्मा जी के घर पार्टी में गये थे. और ये पार्टी से देर रात तक आते हैं. आज इतनी जल्दी। मैंने आगे पूछा ,
"मैंने कहा क्या बात हो गयी, आज आप पार्टी से जल्दी क्यों आ गये . उलटे पैर क्यों लौट आये हो."
"अरे कुछ नहीं बेगम, शराब की दूकान ने 500 के और हजार के नोट लेने जो बंद कर दिये।"
"अरे तुम्हें कौन पैसे देने थे वह तो शर्मा जी के यहाँ पार्टी है उन्होंने कोई इंतजाम नहीं किया।" मैंने पूछा।
"हाँ-हाँ, मैं शर्मा जी की पार्टी की ही बात कर रहा हूँ. भला हो शर्मा जी की बीवी का जो उन्होंने शर्मा जी की आँख से बचाकर पांच सौ-और हजार के इतने नोट जमा किये कि लखपति हो गयीं। पर भगवान् को और ही मंजूर था. जब से पता चला कि पुराने नोट बंद हो गये हैं, शर्मा जी की बीवी बीमार हो गयीं। उन्हें सदमा लग गया. पोल खुलने से उनकी ईमानदारी पर शर्मा जी शक करने लगे हैं."
"बैंक वाले ढाई लाख रूपये तक पुराने नोट जमा कर रहे हैं." मैंने अपने पतिदेव से कहा.
"अरे भाई, दहेज़ का सारा रुपया भी तो उनके घर में रखा है. शर्मा जी कहते थे बेटे मनीष की शादी में लिया दहेज़ बेटी पिंकी की शादी जब होगी तब दे देंगे।"
"हाँ बात तो गंभीर है. पर अपनी माँ और पिता के नाम भी ढाई-ढाई लाख जमा कर सकते हैं."
"बहुत खूब कहती हो भाग्यवान! मिसेज शर्मा तो अपनी सास को देखे मुंह तो सुहाती नहीं हैं और अब उनके नाम से लाखों रुपया जमा करना पड़ेगा। यही तो बीमारी की जड़ है." मेरे पति ने मेरी ओर देखकर आगे पूछा, "अरे भाग्यवान तुमने कितने पाँच सौ और हजार के नोट बचा रखे हैं?"
"क्या बात कर रहे हो? तुम मुझे देते ही कितने थे?" मैंने सच्चाई बताते हुए अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी।
"अरे भाग्यवान, कुछ तो बताओ?
"कसम से मेरे पास केवल तीन हजार बचाये थे सो बैंक से बदलकर ले आयी हूँ. घर में कितना खर्च होता है. जानते हो मैंने बैंक के एकाउंटेंट से कहा बेटा! तुम तो ऐसे काम कर रहे हो जैसे सीमा पर सैनिक कर रहे हैं। " मैंने सफाई दी और मैं सोचती रही. जब लोंगो को पता चलेगा मैंने तीन हजार ही बचाये तो मोहल्ले में नाक कट जायेगी।
"सुनो जी, पड़ोस के सभी लोग सुना रहे हैं कि किसी ने चार लाख रूपये बचाये किसी ने दस लाख रूपये एकत्र किये। और मैंने केवल तीन हजार।" मैंने रद्दी के नोटनुमा गड्डियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, इस बोरे (थैले) को आग लगाकर गली के बाहर छोड़ना है." मैंने कहा.
"इसमें क्या है? " उन्होंने पूछा।
" इस थैले में रद्दी की नोटनुमा गड्डियां है. अरे भाई हमारी नाक कट जायेगी जब लोगों को पता चलेगा कि हमारे पास नोट नहीं हैं. इसी लिए मैंने रद्दी काटकर पूरे दिन भर की मेहनत के बाद नोटनुमा गड्डियाँ बनायी हैं. ताकि इज्जत रह जाये। ताकि लोग समझें कि हमारे पास इतने नोट थे कि आग लगाने की नौबत आ गयी."
उन्होंने बोरी देखी और फिर मेरी ओर आश्चर्य से देखा। कुछ ठहर कर बोले,
"तुम हो तो बुद्धिमान। चलो इसे आग लगाकर आता हूँ." वह कहकर घर से बोरी लेकर गली से निकले। सभी की नजर मेरे पति के हाथ में पकडे हुए बोरे पर लगी थी. एक कह रहा था,
" सर्दी आ गयी है ये नोट अब आग तापने के काम आयेंगे।" लोग इधर -उधर देखते रहे पर कोई पास नहीं आया. बुरे वक्त के लिए लोगों ने नोट छिपा कर रखे थे अब पुराने नोटों का ही बुरा समय आ गया।
जैसे ही मेरे पति बोरी को जलाकर आये हैं. लोग कहने लगे, मुरारी बाबू और मेरा नाम लेकर उनकी पत्नी (विमला) ने गृहस्ती अच्छी संभाली थी. कितने संपन्न हैं ये लोग.
मुझे लगा कि समाज में रौब बढ़ गया है। इतने नोट थे कि इन्हें जलाने पड़े।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल
"आज सूचना प्राप्त करने के लिए सीधे शोध और संपर्क के लिए प्रयास करना चाहिये। एक बात का और ध्यान रखें कि साहित्यकार और आलोचक की भूमिका निभाते समय अपने साहित्यकार को अलग रख कर सोंचे जो योग्य, उचित और जरूरी साहित्य है उसे अनदेखा न करें वरना आपकी आलोचना उतनी मान्य नहीं होगी जैसी की सुप्रसिद्ध आलोचकों की आलोचना और पुस्तक।" - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' (लेखक)
गुरुवार, 23 अप्रैल 2020
पत्रकारिता के पाँच मुख्य सिद्धांत - - सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla
Anniken Huitfeldt og Suresh Chandra Shukla foran slottet i Oslo
नार्वे की वर्तमान विदेश समिति और रक्षा समिति की अध्यक्ष आनिके ह्यूतवेत और लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल (लेखक)
पत्रकारिता के पाँच मुख्य सिद्धांत
1. सत्य और सटीकता
पत्रकार हमेशा 'सत्य' की गारंटी नहीं दे सकते, लेकिन तथ्यों को सही साबित करना पत्रकारिता का
कार्डिनल सिद्धांत है। हमें हमेशा सटीकता के लिए प्रयास करना चाहिए, हमारे पास मौजूद सभी
प्रासंगिक तथ्य दें और सुनिश्चित करें कि उन्हें जाँच लिया गया है। जब हम जानकारी को पुष्टि
नहीं कर सकते तो हमें ऐसा कहना चाहिए।
2. स्वतंत्रता
पत्रकारों को स्वतंत्र आवाज़ होना चाहिए; हमें राजनीतिक, कॉर्पोरेट या सांस्कृतिक विशेष
हितों की ओर से औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से कार्य नहीं करना चाहिए। हमें
अपने संपादकों - या दर्शकों - हमारे किसी भी राजनीतिक संबद्धता, वित्तीय व्यवस्था या
अन्य व्यक्तिगत जानकारी की घोषणा करनी चाहिए जो हितों के टकराव का कारण बन सकती है।
3. निष्पक्षता और निष्पक्षता
अधिकांश कहानियों में कम से कम दो पक्ष होते हैं। जबकि हर पक्ष में हर पक्ष को पेश करने
की कोई बाध्यता नहीं है, कहानियों को संतुलित होना चाहिए और संदर्भ जोड़ना चाहिए।
निष्पक्षता हमेशा संभव नहीं है, और हमेशा वांछनीय (क्रूरता या अमानवीयता के उदाहरण के
लिए चेहरे पर) नहीं हो सकती है, लेकिन निष्पक्ष रिपोर्टिंग विश्वास और आत्मविश्वास का
निर्माण करती है।
4. मानवता
पत्रकारों को कोई नुकसान नहीं करना चाहिए। हम जो प्रकाशित करते हैं या प्रसारित करते हैं
वह दुखद हो सकता है, लेकिन हमें दूसरों के जीवन पर हमारे शब्दों और चित्रों के प्रभाव के
बारे में पता होना चाहिए।
5. जवाबदेही
व्यावसायिकता और जिम्मेदार पत्रकारिता का एक निश्चित संकेत खुद को जवाबदेह रखने
की क्षमता है। जब हम त्रुटियां करते हैं तो हमें उन्हें सुधारना चाहिए और अफसोस की हमारी
अभिव्यक्तियों को गंभीर नहीं होना चाहिए। हम अपने दर्शकों की चिंताओं को सुनते हैं।
हम यह नहीं बदल सकते हैं कि पाठक क्या लिखते हैं या कहते हैं लेकिन जब हम अनुचित
होंगे तो हम हमेशा उपचार प्रदान करेंगे।
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
पत्रकारिता अपराध नहीं है- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक , Suresh Chandra Shukla
वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 के मुताबिक़, साल 2019 में भारत में किसी पत्रकार की हत्या नहीं हुई जबकि साल 2018 में पत्रकारों की हत्या के छह मामले सामने आए थे. ऐसे में भारत में मीडियाकर्मियों की सुरक्षा को लेकर स्थिति में सुधार नज़र आता है.
हालांकि रिपोर्ट इस बात का भी ज़िक्र करती है कि 2019 में इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर कश्मीर के इतिहास का सबसे लंबा कर्फ्यू भी लगाया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगातार प्रेस की आज़ादी का उल्लंघन हुआ, यहां पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस ने भी हिंसात्मक कार्रवाई की, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमले हुए और साथ ही आपराधिक समूहों-भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा विद्रोह भड़काने का काम किया गया.
रिपोर्ट ने दो पायदान की गिरावट का कारण हिंदू राष्ट्रवादी सरकार का मीडिया पर बनाया गया दबाव बताया है. सोशल मीडिया पर उन पत्रकारों के ख़िलाफ़ सुनियोजित तरीक़े से घृणा फैलाई गई, जिन्होंने कुछ ऐसा लिखा या बोला था जो हिंदुत्व समर्थकों को नागवार गुज़रा.
पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रन्टियर्स (आरएसएफ़) यानी रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक नॉन-प्रॉफ़िट संगठन है जो दुनियाभर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों को डॉक्यूमेंट करने और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का काम करता है.
आमतौर पर दक्षिण एशिया इस सूचकांक में बुरे स्तर पर ही रहा है. एक ओर जहां भारत दो पायदान खिसककर 142वें नंबर पर पहुंच गया है वहीं पाकिस्तान तीन पायदान नीचे पहुंच गया है. तीन स्थान के नुक़सान के साथ ही पाकिस्तान 145वें स्थान पर आ गया है. बांग्लादेश को भी एक स्थान का नुक़सान हुआ है और बांग्लादेश सूची में 151वें स्थान पर है.