जनता हैं हम, नहीं भेंड़ बनेंगे: सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक',
बन्धुवर, कैसा हो मेरे सपनों का भारत, कविता पढ़िये।
जनता हैं हम, नहीं भेंड़ बनेंगे:
गरीबी से आजादी माँगो,
साक्षरता घर- घर फैलाओ।
जीवन से जो हार चुके हों,
उनके मन में जोश जगाओ।
बन्धुवर, कैसा हो मेरे सपनों का भारत, कविता पढ़िये।
जनता हैं हम, नहीं भेंड़ बनेंगे:
गरीबी से आजादी माँगो,
साक्षरता घर- घर फैलाओ।
जीवन से जो हार चुके हों,
उनके मन में जोश जगाओ।
दुनिया में जितने किसान है,
अन्नदाता बनते महान हैं।
गाँधी के सपनों की दुनिया,
गाँवों में सबके विहान हैं।।
साक्षरता बिन पिंजरे के पंछी,
नारी बिना ये समता कैसी?
समाज अभी भी पुरुष प्रधान हैं,
नारी बिना साझेदारी कैसी?
नदी- तालाबों पर कब्जे से,
जनता माँग रही हैं आजादी।
लघु उद्योगों की करो वापसी,
भ्रष्ट पूंजीपतियों से आजादी।।
साँस भी लेना दूभर भैया- बहना,
प्रदूषण से लेंगे हम आजादी।
साइकिल से भर जायें सड़कें,
लेंगे हम मोटर- गाड़ी से आजादी।।
कहाँ गये वे मैदान जहाँ थे,
कब्जे में जो- जो शामिल थे।
नालों- नहरों अवरोध जहाँ पर,
अवैध कब्जे से चाहें आजादी।।
सूत कात कपड़े पुनः बनायें,
कृषि को हम लघु उद्योग बनायें।
हो हर जगह नारी आन्दोलन,
नारी को समान भागीदार बनायें।।
दिव्यागों को मिले सहूलियत,
देश प्रगति में सब साथ निभायें।
नहीं चाहिये अब मन्दिर- मस्जिद,
स्कूल-लघु उद्योग केन्द्र बनायें।।
शान्ति पूर्ण आन्दोलन होंगे।
गरीब मांगे दंगो से पूरी आजादी।
हम पैसे से मुक्त चुनाव करेंगे,
अशिक्षित नेताओं से आजादी।।
भारत तो भाई बेमिसाल है,
अपने देश का हम नाम करेंगे।
साधू सन्यासी अब काम करेंगे।
अब और नहीं आराम करेंगे।
यहाँ न अब कोहराम मचेंगे,
सब हाथों को काम मिलेंगे।
उल्लू बहुत बने हैं भाई-बहना,
जनता हैं हम, नहीं भेड़ बनेंगे।।
अंत में
मेरा दिल कहता है कि नार्वे के बच्चों की तरह भारत में भी बच्चों को समान निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ सेवा और भोजन मिले। इसी से प्रेरित होकर सपना देखता हूँ कि भारत में सभी के पास काम, अपनी भाषा में शिक्षा और सभी महिलाओं की देश के विकास में और राजनीति में पचास प्रतिशत भागीदारी हो।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 01.03.2020
अन्नदाता बनते महान हैं।
गाँधी के सपनों की दुनिया,
गाँवों में सबके विहान हैं।।
साक्षरता बिन पिंजरे के पंछी,
नारी बिना ये समता कैसी?
समाज अभी भी पुरुष प्रधान हैं,
नारी बिना साझेदारी कैसी?
नदी- तालाबों पर कब्जे से,
जनता माँग रही हैं आजादी।
लघु उद्योगों की करो वापसी,
भ्रष्ट पूंजीपतियों से आजादी।।
साँस भी लेना दूभर भैया- बहना,
प्रदूषण से लेंगे हम आजादी।
साइकिल से भर जायें सड़कें,
लेंगे हम मोटर- गाड़ी से आजादी।।
कहाँ गये वे मैदान जहाँ थे,
कब्जे में जो- जो शामिल थे।
नालों- नहरों अवरोध जहाँ पर,
अवैध कब्जे से चाहें आजादी।।
सूत कात कपड़े पुनः बनायें,
कृषि को हम लघु उद्योग बनायें।
हो हर जगह नारी आन्दोलन,
नारी को समान भागीदार बनायें।।
दिव्यागों को मिले सहूलियत,
देश प्रगति में सब साथ निभायें।
नहीं चाहिये अब मन्दिर- मस्जिद,
स्कूल-लघु उद्योग केन्द्र बनायें।।
शान्ति पूर्ण आन्दोलन होंगे।
गरीब मांगे दंगो से पूरी आजादी।
हम पैसे से मुक्त चुनाव करेंगे,
अशिक्षित नेताओं से आजादी।।
भारत तो भाई बेमिसाल है,
अपने देश का हम नाम करेंगे।
साधू सन्यासी अब काम करेंगे।
अब और नहीं आराम करेंगे।
यहाँ न अब कोहराम मचेंगे,
सब हाथों को काम मिलेंगे।
उल्लू बहुत बने हैं भाई-बहना,
जनता हैं हम, नहीं भेड़ बनेंगे।।
अंत में
मेरा दिल कहता है कि नार्वे के बच्चों की तरह भारत में भी बच्चों को समान निशुल्क शिक्षा, स्वास्थ सेवा और भोजन मिले। इसी से प्रेरित होकर सपना देखता हूँ कि भारत में सभी के पास काम, अपनी भाषा में शिक्षा और सभी महिलाओं की देश के विकास में और राजनीति में पचास प्रतिशत भागीदारी हो।
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 01.03.2020
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