दुःख के बादल छटने वाले हैं
ये दुःख के बादल छटने वाले हैं,
फिर नया सबेरा आने वाला है।
रो- रोकर साँझ अब विदा हो रही,
सुबह भँवरा गुंजन करने वाला है।
तुलसी पर दीप जलाकर कमला,
घर आँगन में दाने बिखेर रही है।
जैसे प्रकृति में यौवन वासंती का,
जैसे गौना आने वाला है।
संक्रमण में हमने चिर-परिचित खोये हैं।
अस्पतालों और शमशानों में भरे पड़े हैं।
गौरैया के बच्चों की किलकारी गूँजी है,
दुःख के दिन गये, सुख के दिन आने वाले हैं।
देखो दुःख के बादल छटने वाले हैं
फिर नया सबेरा आने वाला है।
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
20 अप्रैल 2021
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