महामारी में असफल: अनफिट प्रधानमंत्री हटें या सबको साथ लेकर चलें
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
"लोग मर रहे हैं / हम अपनी आत्ममुग्धता में जुटे हैं / देश में महामारी का संकट है/ प्रधानमंत्री रैलियां कर रहे हैं / संक्रमण कानूनों की धज्जियां उड़ा रहे थे / अस्पताल चरमरा रहे थे / राम मंदिर का चन्दा एकत्र करा रहे थे / शंराचार्य का काम है भजन-पूजन / उनको नकार रहे हैं/ विरोध करने पर /लोकतंत्र में बुद्धिजीवियों को जेल में दाल रहे हैं/ जनता के पैसों से जहाज और हेलीकाप्टर में मजे उदा रहे हैं/ आक्सीजन बिना जनता मर रही है / अभी भी नेता के चित्रों के साथ क्यों / सरकारी विज्ञापन छाप रहे हैं? विपक्षी पार्टियों के विरोध की खिल्ली उदा रहे हैं? तत्कालीन प्रदेश सरकार के विरोध के बावजूद / पश्चिम बंगाल में 8 चरणों में अलोकतांत्रिक तरीके से / चुनाव कमीशन से चुनाव करा रहे हैं/ संक्रमण फैलाकर कहाँ का किला गिराया / नेकर नहीं संभल रही क्यों देश संभाल रहे हैं? जनता हिसाब लेगी?/ इतिहास हिसाब लेगा जब तुम्हारे उद्घाटन पत्थर सूने पड़े होंगे और उसपर रोज कौए बीट कर रहे होंगे?
आक्सीजन से अनगिनत लोग मर रहे. लगता है भेदभाव और चीजों और सुविधाओं की कमी से चरमरा और भरभरा गया गया है देश का प्रशासन?
अभी भी अपने प्रचार और आत्ममुग्धता में लिप्त हैं देश के शीर्षस्थ मंत्री और प्रधानमंत्री।
उदाहरण हैं भारत में आज के समाचार पत्र और रेडियों में आज की बात.
महामारी रोकने विभाग को पूरी जिम्मेदारी मिले और प्रधानमंत्री अलग हों नेतृत्व से वरना देश बर्बादी की तरफ जैसे उनके नेतृत्व में जा रहा है और भी जाता रहेगा. बर्बादी बढ़ती ही जाएगी। जैसे टूटा नल को ठीक न करने पर पानी बर्बाद हो जाता है?
आज विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी ने भी कहा है.
पिछले वर्ष गोरखपुर में 40 बच्चे अस्पताल में मरे थे और तब से आजतक खोखले वायदे पूरे क्यों नहीं किये गए.
सितम्बर 2020 में मध्यप्रदेश में 9 आक्सीजन प्लान्ट पर अंतिम आदेश और निर्माण कार्य शुरू होने की बात की
उसे क्यों नहीं पूरा किया गया?
आज प्रधानमंत्री पूरे विपक्ष के साथ एक हों. आत्ममुघ्ता से दूर हों. जिसका काम है उसी से कराएं और तुरंत, एक सप्ताह महीने साल, ५ साल और २० साल की प्लानिंग करें पर उनका प्रचार न हो वायदों से दूर हों.
नहीं तो शायद उनके पदच्युत होने पर उनके नाम से बने स्टेडियम के नाम कहीं नए आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री अपने नाम न करा लें.
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का भी वही हाल है उनके बयां और कार्यशैली लोकतांत्रिक नहीं लगती?
असफल लोगों द्वारा आत्ममुग्ध और आत्मश्लाघा की राजनीति के कारण आज भी हम पी आर यानि अपने प्रचार में लगे हैं. यही सबसे बड़ा कारण है कि हमारे देश में आक्सीजन और लोकतंत्र की कमी हुई है. जनता के विरोध के बावजूद जबरदस्ती रैलियाँ करना कहाँ की मानवता थी.
यदि शीर्ष नेता स्तीफा दें तो नए लोग संभालें बागडोर।
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