हे पथिक न निराश हो
हे पथिक न निराश हो, अँधेरा छटने वाला है.
दीप कुछ देर और जल, तम न रहने वाला है।
शाख से गिरे पात - पात, नयी कोपलें निकल रहीं,
यह ऋतुओं का खेल है, नया मौसम आने वाला है।
दर्द की कैसी बयार है, विजय समीप, न हार मान,
ठहर गए दुःख मेघ क्यों, बरस-बरस न कर गुमान।
बेटी - बेटे कुछ और ठहर, तूफ़ान जाने वाला है,
हे, पथिक! न निराश हो, अँधेरा छटने वाला है।
ओस्लो, 19.04.21
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