समय पर आये न ऋतुराज?
पलाश के फूलों में मकरंद,
आँगन में दाने चुनती चिरई।
द्वार के मुंडेर पर बैठे काक
चिढ़ाती पेड़ पर गिलहरी।
पक्षी चहचहाते करें मजाक।।
समय पर आये न ऋतुराज?
छिप-छिप वृक्ष के पीछे,
बहेलिये सा नयनों का जाल,
बिछाकर अंतस में कितने फूल.
लुटाने को थे बेताब।
बरसती रही गगन से धार.
समय पर आये न ऋतुराज?
भ्रमर न रहने देते शांत बौर
कब बन जाते फूल
पता क्या कोयल को है पता?
पथिक जब रस्ता जाते भूल.
प्रतीक्षा टिटहरी सी है कठिन,
आसमान उठाने को आतुर,
बाट जोहते है पपीहे युगल,
बन रहा रही का परिहास।
अंधियारे में जुगनू की आस.
समय पर आये न ऋतुराज?
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
Oslo, 21.05.2021
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