गुरुवार, 17 मई 2012

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस 17 May पर बधाई

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस,  बधाई 




















आज प्रातः काल सात बजे सोकर उठा। आज नार्वे का राष्ट्रीय दिवस 17 मई है। अतःस्नानादि से निवृत्त होकर
वाइतवेत स्कूल गया और ध्वजारोरोहण कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ।  पहले भारत में भी भारत का स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त बहुत धूमधाम से मनाता था।  नार्वे में भी पंदह पंद्रह 
अगस्त धूम धाम से मनाता हूँ। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह और भारतीय नार्वेजीय लेखक 
सेमिनार प्रमुख है।

सत्रह मई
आइद्स्वोल यह नगर ऐतिहासिक  है। १७ मई १८१४ को इसी नगर आइद्स्वोल में नार्वे का संविधान बना था। इस संविधान के तहत यह घोषणा की गयी थी कि भविष्य में नार्वे एक अलग स्वतन्त्र राष्ट्र का अस्तित्व रखेगा।
आज अपने घर के पास वाइतवेत स्कूल जहाँ मेरी निकीता और अलक्सन्देर अरुण भी जाते हैं। कुछ चित्र प्रस्तुत है उनके स्कूल के जहाँ प्रातः राष्ट्रीय दिवस पर धवाजरोहन हुआ मार्चपास्ट निकाला और वाइतवेत मैट्रो स्टेशन पर से मैट्रो लेकर बीच नगर में राजा के प्रसाद के सामने मार्चपास्ट करने गया। जहाँ बच्चों, बैंड बाजों और ध्वजों को लेकर राज परिवार को सलामी देते हुए हुर्रा, हुर्रा शब्द का उच्चारण करते हुए राजमहल के सामने से निकालते हैं और बाद में आइसक्रीम और चाकलेट आदि खाते हैं मौज मनाते हैं बच्चे और बड़े।
मैंने परसों १७ मई पर एक कविता लिखी जिसे आज एक कार्यक्रम में पढ़ना है जो नार्वेजीय भाषा में लिखी है।

Flagheising på Veitvet skole i Oslo 
वाइतवेत,  ओस्लो में सत्रह मई पर धवजारोहण    
पड़ोस में वाइतवेत स्कूल में गया जहाँ मैं एक दशक से अधिक समय से लगातार जाता रहा हूँ।
वाईतवेत स्कूल, ओस्लो में मेरी बेटी बेटी संगीता की बेटी निकीता पढती है।
स्कूल से सम्बद्ध 
इसी स्कूल में मैं अविभावकों का अध्यक्ष/प्रतिनिधि  रहा हूँ और लगभग सात वर्षों तक स्कूल की
प्रबंध समिति में अर्बाइदर पार्टी (लेबर पार्टी) सोशलिस्ट पार्टी की और से  सदस्य रहा हूँ।
मैंने एक कविता नार्वेजीय भाषा में लिखी है उसे आप के साथ आगे चलकर साझा करूंगा।  आपने मेरे ब्लॉग में  इस स्कूल के चित्र देखे होंगे।
सत्रह मई की विशेषता और हमारी प्रतिबद्धता 
यह सत्रह मई बहुत ही विशेष है क्योकि अभी 22 जुलाई 2011 को नार्वे में एक क्रूर  नार्वेजीय आतंकवादी ने   प्रजातंत्र और  नार्वे के  राजनैतिक नेतृत्व पर हमला किया था।  उसके बाद यह पहली सत्रह मई है। बहुसांस्कृतिक समाज वाले नार्वे में मिलजुलकर रहने और साथ मिलकर हर समस्या का मुकाबला करने से हर समस्या का समाधान हो सकता है। हमको अपने हक़ अपने आप नहीं मिलते।  उसके लिए हमको कार्य भी करना होता है।
श्रमदान 
उसके लिए हम सभी को जागरूक होकर समाज और राष्ट्र के सभी कार्यों: आसपास,स्कूल और पार्कों की सफाई 
श्रमदान द्वारा.  पूरे परिवार के साथ सफाई में सहयोग. नार्वेवासियों से हमको बेहिचक श्रमदान करना
और समानता और सहयोग भावना सीखनी चाहिए।  चाहे पार्क और मार्ग निर्माण हो अथवा पास
पड़ोस की सफाई श्रमदान द्वारा मिलजुलकर किया जाता है।

समाज के विकास के लिए समानता और ईमानदारी जरूरी
समाज के लिए ईमानदारी से कार्य करना तथा सबसे जरूरी है कि अपने परिवार में स्वतंत्रता, समानता के
अधिकार को कायम करना वर्ना हम दूसरों के सामने भी असमानता को सहन करेंगे तथा बच्चों को भी वही दब्बू और दोहरे आचरण की शिक्षा देंगे। जैसे घर में घर के क़ानून यानी बड़ों
की तानाशाही और बहार समानता का व्यवहार । जीतो, यानी सभी को प्रजातान्त्रिक तरीके से जीतो.  मेरे दादा श्री मन्नालाल जी कहते थे की यदि आपको बाहर समाज में  नेता बनना है तो पहले घर में  नेता बनो और प्रजातान्त्रिक तरीके से सभी का दिल जीतो और बहुमत प्राप्त करो।
वह कहते थे कि सुधार  और भ्रष्टाचार घर से आरम्भ होता है यह विचार सभी पश्चिमी देशों के लोग का एक मत से मानते  ही नहीं उसका पालन भी करना है।
कुछ दिनों पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ अबुल कलाम  ने भी कहा था कि घर से ही भ्रष्टाचार के  निवारण की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। 

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस सत्रह मई राष्ट्रीय दिवस
नार्वे का राष्ट्रीय दिवस सत्रह मई राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।  विशेषकर यहाँ बच्चों के लिए विशेष महत्त्व होता है। कोई सैनिक परेड नहीं। न  ही  रह सैनिक शस्त्रों का प्रदर्शन। बस स्कूल अपने बच्चों के साथ चुने हुए स्कूल बैंड बाजे के साथ हिस्सा लेते हैं। इन बैंड बाजों में आम तौर पर स्थानीय बैंड या किसी संगठन का बैंड इनका साथ दे रहा होता है। एक दिन पहले 16 मई को यहाँ बच्चों की परेड निकलती है जिस मोहल्ले में स्कूल अथवा बालवाड़ी  (किंडर गार्डेन)  होता है  उसके बच्चे आसपास के संस्थानों और मोहल्ले  में फेरी लगते हैं।
17 मई के दिन प्रातःकाल 8:00 बजे स्कूल में ध्वजारोहण, राष्ट्रीय संगीत, बच्चों की अपील/सन्देश। कभी-कभी प्रधानाचार्य या आमंत्रित व्यक्ति का संछिप्त  भाषण या सन्देश कार्यक्रम का हिस्सा होता है।
नार्वे का राष्ट्रीय झंडा  भी तिरंगा होता है
 नार्वे का राष्ट्रीय झंडा  भी तिरंगा होता है।  बस नार्वे के तिरंगे   झंडे में लाल, सफ़ेद और नीला रंग होता है  जबकि भारतीय तिरंगे ध्वज का रंग केसरिया,  सफ़ेद और हरा होता है।
ओस्लो में साढ़े दस बजे से सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन और अन्य पास की जगहों से बच्चों की टोली अपने स्कूल के
बैनर,झंडे और बैंड के साथ परेड शुरू करती हैं या यूं कहें बिना अनुशासन की परेड शुरू होती है और वह कार्ल
युहान सड़क पर पार्लियामेंट और नेशनल थिएटर होते हुए  राजा के प्रसाद में होती हुई राजमहल
के सामने से गुजरती हुए होती है और राजपरिवार को सलामी देती है। राजमहल के सामने बहुत बड़ा हुजूम लगा होता है। लाखों लोग सड़क के किनारे जहाँ -जहाँ से बच्चे परेड करते गुजरते हैं वहां खड़े होकर हाथ में पकडे झंडे हिला-हिलाकर और हुर्रा, हुर्रा, हुर्रा शब्द का उच्चारण करते हैं।

 17 मई को नार्वे के हरेकृष्णा समुदाय पार्लियामेंट मेट्रो स्टेशन के बाहर कीर्तन करते हुए 

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