प्रदीप राय जी ओस्लो में 12 दिसंबर 1982 को ओस्लो आये थे आज वह अपनी पत्नी शविन्दर कौर और पुत्र शिवजीत (18 वर्ष) के साथ वेस्टली मोहल्ले, ओस्लो में रह रहे हैं। आज जब इनके घर आ रहा था अपनी पत्नी माया भारती जी के साथ तो रास्ते में मेरी मुलाकात पुराने परिचित और मौस नगर में उर्दू की पत्रिका निकलने वाले मंसूर अहमद से हुई जिनका बेटा भी प्रदीप जी के मोहल्ले में रहता है.
मंसूर अहमद ने उन दिनों, बहुत वर्ष पहले, उनहोंने मशहूर शायर मोहम्मद इकबाल के पोते से मुलाकात कराई थी । मैंने भी उन्हें करीब से देखा और सुना। हाँ जी आपका अंदाजा सही है मैं 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तान हमारा' के गीतकार मोहम्मद इकबाल के पोते की बात कर रहा हूँ जो जज थे। मजे की बात है कि इकबाल जी के पोते और यहाँ एक मौलवी साहब से बहस हो गयी थी। इकबाल जी के जज पोते का कहना था कि सभी नौजवानों को शिक्षा हर तरह की लेनी चाहिए जिससे ज्ञान मिलता हो। जबकि मौलवी साहेब केवल इस्लाम धर्म की शिक्षा लेने को ही बात कर रहे थे. ज्ञान की शिक्षा आदमी को उदार बनता है जबकि मौलवी साहब केवल अपने धर्म की शिक्षा को सर्वश्रेष्ठ बताने में जुटे हुए थे। खैर यह बात पुराणी हो गयी और आयी गयी हो गयी है, बात प्रदीप जी और श्रीमती शविंदर जी की बात कर रहा था।
प्रदीप जी और उनका परिवार उदार है इन्होने बहुत से भारतीयों की सहायता की है। इनकी बेटी उपमा जिन्होने भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के सांस्कृतिक कार्यक्रम का सञ्चालन भी किया था जिन्होंने विवाह के बाद अपना नाम बदल लिया है और उपमा जी अब रिया राय शाह से जानी जाती हैं। इनकी शादी गुजरात प्रान्त के प्रतिष्ठित परिवार के युवक मितुल शाह से हुई है जो आजकल लिएर, द्रामिन, नार्वे में रहते हैं.
आज जब शिवजीत ने अपना वीडियो दिखाया जिसमें उन्होंने एक छोटे हवाई जहाज से अपने इंस्ट्रक्टर के साथ चेकोस्लोवाकिया में पैराशूट (हवाई छतरी ) के संग कूदे थे। देखकर बहुत रोमांचक लगा। कितना रोमांचक और
खतरे से खाली नहींरही होगी उनकी यह कूद जब दो सौ किलोमीटर की रफ़्तार से गिरते थे जब तक हवाई छतरी नहीं खुलती थी।
यह अब नए ज़माने का खेल है जिसे करने का मेरा भी मन करता है ताकि मैं भी जवानों में अपनी गिनती करा सकूँ। कहा जाता है जवानी सोंच से होती है। आप कैसा मसूस करते हैं उसपर निर्भर करता है।
खतरे से खाली नहींरही होगी उनकी यह कूद जब दो सौ किलोमीटर की रफ़्तार से गिरते थे जब तक हवाई छतरी नहीं खुलती थी।
यह अब नए ज़माने का खेल है जिसे करने का मेरा भी मन करता है ताकि मैं भी जवानों में अपनी गिनती करा सकूँ। कहा जाता है जवानी सोंच से होती है। आप कैसा मसूस करते हैं उसपर निर्भर करता है।
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