स्लेम्मेस्ताद सनातन मंदिर में सोने की चूड़ी - सुरेशचन्द्र शुक्ल
19 मई, स्लेम्मेस्ताद पंडित जी ने माइक पर सूचना दी कि एक सोने की चूड़ी जिसमें हीरे के नग जड़े प्रतीत
होते हैं वह मुझे मिली है जिस किसी की हो उसे मुझसे प्राप्त करने की कृपा करें। 'खोयी सोने की चूड़ी सोना पहन कर कौन आता है वर्ना कोई ऐसे कोई कैसे भूलता।' टिप्पणी करना अपना हक़ समझने वाले एक दूसरे व्यक्ति ने अपने दोनों हाथ मलते हुए कहा कि, पीतल -शीतल की चूड़ी रही होगी। लंगर में खाने के लिए कतार में बैठे लोगों का ध्यान इस चर्चा पर गया जो रह-रहकर मुस्करा देते थे। बिना देखे ही सोने की चूड़ी
और जड़े हीरे पर टिप्पणी हो रही थी। चर्चा में कोई विषय तो होना चाहिए। पंडित जी ने एक अलग संस्मरण एक सोने के कुंडल का सुनाया. यह संस्मरण स्वीडेन का था जब वह वहां पुजारी थे। उनको एक खोया कुंडल मिला जिसके बारे में उन्होंने सभी मंदिर के पदाधिकारियों और
जो आता उसे पूछते की किसी का कुंडल/बाला तो नहीं खोया है? एक सप्ताह बीतने के बाद उसे किसी ने नकली करार दे दिया। तो किसी ने कोई अंदाजा लगाया तो किसीने कोई अंदाजा। । वह सोने का कुंडल पंडित जी के कमरे में एक गैर जरूरी आम चीज की तरह
कभी मेज पर तो कभी जमीन के कोने में और कभी खिड़की पर। इसी तरह तीन सप्ताह बीत गए तब एक महिला ने बताया की तीन सप्ताह पहले उसका एक कुंडल (बाला) खो गया था, जब पंडित जी ने उन्हें दिया
तो वह बहुत प्रसन्न हुईं और बहुत सी दुआएं देकर चली गयीं।
कृष्णा का अठारहवां जन्मदिन
नार्वे में अब अक्सर जन्मदिन मनाने के लिए लोगों ने मंदिर को चुनना शुरू किया है। एक भारतीय युवती कृष्णा कौशिक के जन्मदिन में हम भी अपने परिवार के साथ कुछ देर से पहुंचे। यहाँ बहुत पहले अपने आराम्भिक वर्षों में हिन्दी के अध्यापक रहे अशोक शर्मा, मंदिर में सक्रिय रहे मंगत राय शर्मा, और वी एच पी में सक्रिय रहे राज नरूला से मुलाकात हुई. श्री कौशिक
परिवार को शुभकामनाएं दीं. मायाजी मेरे साथ आयी थीं। तथा मेरी बेटी संगीता अपने परिवार के
साथ आयी थी। यहाँ मंदिर, हिन्दी लेखन और नार्वे से एकमात्र पत्रिका स्पाइल-दर्पण आदि कविता-
कहानी पर चर्चा हुई।
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