शनिवार, 5 मई 2012

Oslo, 05.05.12 ओस्लो में मौसम का बदलना आम बात है।

 ओस्लो में मौसम का बदलना आम बात है।
आज 5 मई को सुबह बरफ गिरते देखकर बहुत हैरानी नहीं हुई. अब जब नार्वे में सुबह के नौ बज रहे हैं, अभी भी बरफ धीमी रफ़्तार से गिर रही है। 15 अप्रैल से विधिवत गर्मी की  ऋतू  का आगमन हो  जाता है. पहली और दूसरी मई को ओस्लो पूरे दिन में धूप निकली रही. पर शीतल हवा के झोके आते-जाते रहे,पर नार्वे में रहने वालों के लिए ये धूप भरा दिन बहुत खुशी का दिन होता
 है। यहाँ मौसम के बारे में सभी जागरूक होते है।  अपनी छुट्टियों से लेकर शनिवार और रविवार को साप्ताहिक अवकाश तक की व्यवस्था में  मौसम का ध्यान रखकर ही अधिकाँश लोग अपने कार्यक्रम तय करते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर जैसे काम पर जाना, यात्रा करना या किसी उत्सव अथवा बैठक  में सम्मिलित होना होता है तो मौसम आड़े हाथ नहीं आता है।

मुझे स्मरण है मेरी भांजी सरिता ने मुझे बताया था कि उसने एक 'बच्चों की फुलवारी' / बालवाडी (शिशुओं और बच्चों के स्कूल)
 शुरू करने के पहले देखभाल के लिए आरम्भ कर रही है और अभी उनके पास  एक बच्चा है और दो शिक्षिका या केयरटेकर हैं।  यह कार्य उन्होंने वातानुकूलित जगह पर शुरू किया है।
भारत में व्यावसायिक  स्तर पर भी अनेकों जगह प्रायोगिक शिक्षा नहीं दी जाती है।  जगह-जगह बच्चों की देखभाल के लिए बालबाडी आदि हैं. बच्चों के माता -पिता को बहुत सी जानकारियाँ नहीं होती हैं। और यदि कहीं उन्हें सही और उपयुक्त जानकारी मिलती भी है तो उसेअपनाने में  हिचकते हैं। शायद इसका कारण आत्म विशवास  की कमी और आस पड़ोस में व्याप्त पूर्वाग्रह या असमंजस में रहने की स्थिति होना हो सकता है. इसी   लिए बहुत से स्कूल मनमाना पैसा  शुल्क  के रूप में लेकर भी आधा-अधुरा ज्ञान  ज्ञान ही बच्चों को देते हैं।

बच्चे को दो घंटे  दिन में मौसम के हिसाब से रखना जरूरी।  
आम तौर पर  हर बच्चे को जिस देश में भी रहता हो और मौसम क्यों न मुश्किल हो, उसे वहां की स्थिति में ढालना जरूरी है।  स्कूलों और बालवाडी केलिए तो अति आवश्यक है।  स्कूल के अन्दर  चाहे जैसा साधन (कूलर, खुली खिड़की या एयर कंडीशन) हो पर  बच्चे को चाहे पानी बरसे या ठण्ड पड़े या गर्मी हो उसे बाहर  खेलने भेजना चाहिए। तभी उसका सही विकास होगा और उसे अपने देश के हिसाब से मौसम की आदत पड़ेगी।  पर यह ध्यान रहे की बच्चे के पास उचित कपडे और संस्थाओं और माता-पिता बच्चों के सवास्थ के लिए बहुत जागरूक हों।
मेरी हिम्मत नहीं हुई अपनी भांजी को अच्छी राय देने की।

अच्छी राय बिना पूछे नहीं देनी चाहिए?
मेरे एक अच्छे मित्र हैं। उन्होंने मुझे राय दी की मुझे किसी को भी अच्छी राय बिना पूछे नहीं देनी चाहिए।  किसी का कार्य बिना उचित परिश्रम और कम प्रयास से चल रहा हो तो वह आलसी बन जाता है तथा राय देने वाले शुभचिंतक को स्वयं भोला-     व्यक्त करता है और अपने को बहुत बहुत उस्ताद।  मुझे इसकी  भली भांति जानकारी है खासकर अपने अनुभवों को लेकर।  पर फिर भी मन करता है की ज्ञान यदि थोडा बहुत मेरे पास दूसरों से आता है, इसके अलावा बहुत सी जानकारी इंटरनेट, पुस्तकों और विद्वानों की पुस्तकों में है उसे अपने लोगों में बांटनी चाहिए।
मेरे मन में सदा विचार आता है यदि मुझे बहुत अच्छी - अच्छी जानकारियाँ अपने राजनैतिक, सामजिक सेमिनारों में जाकर और स्वयं यहाँ का हिस्सा होकर मिलती है तो क्यों न मैं उन सभी के साथ साझा
करूँ वह ज्ञान और सूचनाएं  जिनके पास पहुँच कम हो वैसे सभी तक बात पहुंचे यह भी विचार रहता है।
एयरकंडीशन में रहकर यदि तरक्की की जा सकती तो सभी वातानुकूल घरों के बच्चे पढाई में अच्छे होते, और  वातानुकूल कमरों में रहकर कोई भी अच्छा लेखक, कलाकार और खिलाड़ी कैसे हो सकता है जबतक उसे सभी तरह के वातावरण में रहने की आदत न हो, यह हमें लचीला भी बनाती है जो बहुत जरूरी है।
मुझे याद है जब मैं युवा था  और छात्रनेता था तब पास पड़ोस के लोग मुझे अहमियत नहीं देते थे पर अधिकारी वर्ग, मीडिया: जैसे रेडियो, अखबार  और बहुत पढ़ा लिखा वर्ग मेरी बातों पर ध्यान देता था वरन हमसे सहानुभूति भी रखता था क्योंकि मैं अपने व्यस्त समय से कुछ समय निकलकर समाज सेवा में खर्च करता था। जब मैं बहुत लोगों से पूछता तो उसमें से अधिकाँश लोगों का रवैया टालने वाला और ध्यान न देने वाला होता था।   जको लोग मेरा विरोध करते थे वे थे स्थानीय नेता और एम् एल इ जो अपने को बहुत बड़ा टॉप समझाते थे न की जनता के सेवक।बुजुर्गों में यदि किसी के विचार मुझे सबसे अच्छे लागते थे तो वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लगते थे। उनमें उस समय भी जोश, हिम्मत और आशा होती थी।  जिसमें मैं  दुर्गा भाभी जो उस समय लखनऊ  मांटेसरी स्कूल की प्रिंसपल/ प्रबंधक थीं।  शचीन्द्र नाथ बक्शी, रामकृष्ण खत्री और गंगाधर गुप्ता अधिक आयु के बावजूद मुझसे मित्रवत व्यवहार करते थे।
 अपने मोहल्ले के कार्यक्रमों में मैं इन्हीं लोगों को सम्माननीय अतिथियों के रूप में बुलाता था। जिसमें मंत्री चरण सिंह और जगदीश गांधी एम् एल ए भी हमारे कार्यक्रमों में आये थे।

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