शिवमंगल सिंह सुमन एक अच्छे मित्र और रचनाकार - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
बायें से शिवमंगल सिंह सुमन, सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' और बेकल उत्साही।
लखनऊ में मुलाकात
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ जी से मेरी मुलाक़ात लखनऊ में अनेक बार हुई उत्तर प्रदेश हिंदी संसथान और लिटरेरी हाउस में शिव शंकर मिश्र जी के साथ. शिवशंकर मिश्र राजेंद्र नगर, लखनऊ में रहते थे. मैंने उनके साथ लन्दन और मैनचेस्टर में कविसम्मेलनों में साथ-साथ कविता पाठ किया था. वह मुझे बहुत मानते थे और मेरी हिंदी सेवा से बहुत प्रसन्न थे.
5 अगस्त को उन्नाव
ज़िले के झगरपुर
ग्राम में जन्मे
शिवमंगल सिंह ‘सुमन’
हिन्दी गीत के सशक्त हस्ताक्षर
हैं। बनारस हिन्दू
विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर
तथा डॉक्टरेट की
उपाधि प्राप्त करने
वाले ‘सुमन’ जी
ने अनेक अध्ययन
संस्थाओं, विश्वविद्यालयों तथा हिन्दी
संस्थान के उच्चतम
पदों पर कार्य
किया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित
सन् 1974 में आपकी
कृति ‘मिट्टी की
बारात’ पर आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार
मिला। इसी वर्ष
में आपको भारत
सरकार का पद्म श्री अलंकरण
भी प्राप्त हुआ।
इसके अतिरिक्त भी
अनेक पुरस्कारों व
सम्मानों से सम्मानित
‘सुमन’ जी ने अनेक देशों
में हिन्दी कविता
का परचम लहराया।
‘हिल्लोल’, ‘जीवन के गान’, ‘युग का मोल’, ‘प्रलय सृजन’, ‘विश्व बदलता ही गया’, ‘विंध्य हिमालय ‘, ‘मिट्टी की बारात’, ‘वाणी की व्यथा’ और ‘कटे अंगूठों की वंदनवारें’ आपके काव्य संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त ‘महादेवी की काव्य साधना’ नाम से आपने आलोचना साहित्य भी लिखा है। ‘उद्यम और विकास’ शीर्षक से आपका गीति काव्य भी प्रकाशित हुआ और ‘प्रकृति पुरुष कालिदास’ नामक नाटक भी आपने लिखा।
हिन्दी कविता की वाचिक परंपरा आपकी लोकप्रियता की साक्षी है। देश भर के काव्य-प्रेमियों को अपने गीतों की रवानी से अचंभित कर देने वाले सुमन जी 27 नवंबर सन् 2002 को मौन हो गए।
‘हिल्लोल’, ‘जीवन के गान’, ‘युग का मोल’, ‘प्रलय सृजन’, ‘विश्व बदलता ही गया’, ‘विंध्य हिमालय ‘, ‘मिट्टी की बारात’, ‘वाणी की व्यथा’ और ‘कटे अंगूठों की वंदनवारें’ आपके काव्य संग्रह हैं। इसके अतिरिक्त ‘महादेवी की काव्य साधना’ नाम से आपने आलोचना साहित्य भी लिखा है। ‘उद्यम और विकास’ शीर्षक से आपका गीति काव्य भी प्रकाशित हुआ और ‘प्रकृति पुरुष कालिदास’ नामक नाटक भी आपने लिखा।
हिन्दी कविता की वाचिक परंपरा आपकी लोकप्रियता की साक्षी है। देश भर के काव्य-प्रेमियों को अपने गीतों की रवानी से अचंभित कर देने वाले सुमन जी 27 नवंबर सन् 2002 को मौन हो गए।
बायें से बेकल उत्साही, सुरेन्द्र अरोड़ा (हिंदी अधिकारी , भारतीय है कमीशन लन्दन) और शिवमंगल सिंह सुमन, लन्दन, यू के में.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें