शुक्रवार, 31 मार्च 2017

Jan Gan Man and Vande Mataram have equal status-राष्ट्र 'जन गण मन' और राष्ट्रीय गीत 'वनडे मातरम् ' को संसद में समान महत्व' का-Suresh Chandra Shukla


क्या आपको पता है कि हमारे  राष्ट्र 'जन गण मन' और राष्ट्रीय गीत 'वनडे मातरम् ' को हमारे पहले राष्ट्रपति जी माननीय राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी ने दोनों को  संसद में समान महत्व का कहा था

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"Do you know that Jan Gan Man and Vande Mataram have equal status and was to be honoured equally. Read this statement of the president of our Constituent Assembly, Dr Rajendra Prasad.
"The composition consisting of the words and music known as Jana Gana Mana is the National Anthem of India, subject to such alterations in the words as the Government may authorise as occasion arises; and the song Vande Mataram, which has played a historic part in the struggle for Indian freedom, shall be honoured equally with Jana Gana Mana and shall have equal status with it. (Applause). I hope this will satisfy the Members."
Dr Rajendra Prasad statement in Constituent Assembly 24 Jan 1950"

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गुरुवार, 30 मार्च 2017

Writer हृदय नारायण दीक्षित Hriday Narayan Dikshit became Speaker in U P State-Assembly- Congratulation-Suresh Chandra Shukla

दो दर्जन पुस्तकों के लेखक  हृदय नारायण दीक्षित 

चुने गए  यूपी में विधानसभा अध्यक्ष-ढेरों बधाई।

यूपी में बीजेपी के सीनियर लीडर हृदय नारायण दीक्षित को विधानसभा का अध्यक्ष चुना गया है. बुधवार को उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया. इस मौके पर उनके साथ सीएम योगी आदित्यनाथ के अलावा कई विधायक भी मौजूद रहे.
उन्नाव जिले के भगवंतनगर से विधायक बने हैं हृदय नारायण दीक्षित. उन्होंने बसपा के शशांक शेखर सिंह को 53,366 वोटों से हराया. इतने वोट तो शशांक को मिले भी नहीं. शशांक को 50,332 वोट मिले. और तीसरे नंबर पर कांग्रेस के अंकित परिहार रहे थे. जब सीएम योगी ने शपथ ली थी तो उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया था, तभी से ये कयास लगाए जा रहे थे कि सीनियर नेता हैं. हो सकता है कि उन्हें यूपी विधानसभा का स्पीकर बनाया जाए.
हृदय नारायण दीक्षित उन्नाव में पुरवा तहसील के लउवा गांव के रहने वाले हैं. पहली बार 1985 में चुनाव में उतरे. निर्दलीय चुनाव लड़कर विधायक बन गए. इसके बाद 1989 में वो जनता दल के टिकट पर विधायक बने. जब जनता दल को छोड़ा तो सपा के दामन को थाम लिया और 1993 में चुनाव लड़कर तीसरी बार विधायक चुने गए. 1995 में सपा-बसपा गठबंधन की सरकार थी तब ये संसदीय कार्य मंत्री और पंचायती राज मंत्री रहे. इसके बाद वो 2010 से 2016 तक भाजपा के विधानपरिषद सदस्य और दल नेता भी रहे. इस बार भगवंतनगर सीट से बीजेपी के टिकट पर जीतकर चौथी बार विधायक बन गए.

इमरजेंसी के दौरान रहे थे जेल में हृदय नारायण दीक्षित का इमरजेंसी पर कहना है, ‘1975 में इमरजेंसी लगा कर कांग्रेस ने संविधान का गलत इस्तेमाल किया था. न्यायपालिका की ताकत कमजोर की गई थी और पूरे देश को तहखाना बना दिया गया था. सारे लोकतांत्रिक अधिकारों पर रोक थी. इन हालातों से निपटने के लिए लोकतंत्र के रक्षकों ने संघर्ष किया. यह बात अलग रही कि जिसने संघर्ष किया, उसे जेल में डाला गया और प्रताड़ित किया गया.’
26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक देश में इमरजेंसी लगा दी गई थी. इस दौरान कई नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. तब हृदय नारायण दीक्षित भी जेल गए थे. उन्हें 19 महीने जेल में रखा गया.

हृदय नारायण दीक्षित साहित्यकार और लेखक भी हैं. उनकी कई किताबें भी छपीं. अख़बारों में उनके लेख भी छपते रहे हैं. - पंडित असगर का आभार लेख के लिए  

चुनाव के चंदे में पारदर्शिता और गायकवाड़ अपराध करके क्यों खुले घूम रहे हैं. -सुरेशचंद्र शुक्ल

चुनाव के चंदे में पारदर्शिता और गायकवाड़ अपराध करके क्यों खुले घूम रहे हैं. -सुरेशचंद्र शुक्ल 

बन्धुवर, नमस्कार मैं आपको दो पत्र को दोबारा प्रस्तुत कर रहा  हूँ जिसे मेरे मित्रों ने फेसबुक में लिखा है
यह सामयिक और रुचिकर है इसलिए लिख रहा हूँ. धन्यवाद।

पारदर्शिता
पारदर्शिता के बारे में प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि देश में भृष्टाचार का मुख्य कारण है कि पिछले 70 वर्ष में राजनीतिक पार्टियों में चंदा लेने में पारदर्षिता रखी। उस समय लगा था है कि यह सरकार राजनीतिक पार्टियों की चंदा वसूली पर कुछ अंकुश लगाएगी। पारदर्शी बनाएगी। जबकि नेहरू अपने कार्यकाल में सदा चेक से पार्टी के लिए चंदे का चेक लेते थे। नए नियमों के अनुसार कोई भी कार्पोरेट अपने लाभ का 7.5 प्रतिशत चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकता है। चूँकि उसका इंदराज कंपनी के बहीखाते में नहीं होगा तो वह उससे अधिक भी दे सकता है। वह बांड्स केद्वारा दिया जाएगा। उसका भी शायद कहीं हिसाब नहीं रखा जाएगा। अभी नियम बन रहे हैं। पहले जो प्रधानमंत्री के नाम पर सहारा और बिरला के यहाँ कई किश्तों में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में धन देने की बात इंदराज में थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बिना जांच के ख़ारिज कर दिया था, अब उस झूठ की गुंजायश नहीं रहेगी। इससे जुड़ा सवाल है कि वे कंपनियाँ अपने आई टी रिटर्न में कैसे दिखाएंगी। या पैसा चाहे जितना भी दिया गया हो कंपनियों को 7.5 प्रतिशत पर ही छूट मिलेगी। उसकी एवज़ में सरकारें कार्पेरेट के हिसाब से बनेंगी। काँग्रेस के ज़माने में भी कहा जाता था बिरला और टाटा ही सरकार बनवाते हैं। दूसरा सवाल है कि जो चंदा पार्टीज़ को दिया जाता है वह बोर्ड आफ़ डाइरेक्टर्स और जनरल बाडी की स्वीकृति से दिया जाता है। जब बहीखाते में इंदराज नहीं रखा जाएगा तो शेयर होल्डर्स का पैसा बिना उनका मंज़ूरी के चंदेमें कैसे दिया जा सकता है। एक और ख़तरा है कि मौखिक रुप से या चेयरमैंन कोअधिकृत करके बिना एजेंडे पर लाए पैसा दिया जाता तो अ्धिकृत व्यक्ति उसमें से एक अंश स्वयं ले सकता है। कोई सवाल भी नहीं उठाया जा सकता। शब्दों के अर्थ समय के साथ बदलते रहते हैं। पारदर्शिता के अर्थ भी हो सकता है बदल गए हों। विरोधी जो हर बात पर सवाल उठाते हैं वे भी इस नए परिवर्तन को नए अर्थोों में ले रहे हों।
-    Giriraj Kishore
An open question to Delhi police cmmissioner- which law stops you from arresting Gayakawad.
In 1978 I was S.S.P. Bareilly. One M. L.A. had abused and overturned the chair of a doctor on duty. I had got the M.L.A. arrested immediately and later informed the Speaker and the C.M. The matter was raised in the Assembly, but no action was taken against me.

-Mahesh Dwevedi, Ret. IPS