एक मार्च 2016 से एक एक मार्च 2017 तक -क्या खोया क्या पाया Hva har du oppnådd og hva har du mistet i fjord? (Fra 1. marst 2016 til 1. mars 2017) - Suresh Chandra Shukla
Vi savner Obama som president
og Hilary Clinton som aktivist.
Troumf spiller som en skulk
i USAS politiske skuespill.
पिछले साल ने
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे
(एक कविता निर्धन-विकासशील देशों की स्थिति पर )
(चित्र में मैं महात्मा गांधी जी की पोती इला गांधी जी को वैश्विकता का अंक दे रहा हूँ.)
अमेरिका में राष्ट्रपति का पद,
ओबामा के बिना कुछ रीता-रीता लगता है.
बेशक ट्रम्प ही राजनैतिक नाटक के कलाकार हैं,
जो हर तरह के किरदार निभाते हैं.
चुनाव से पहले बहलाते हैं अपने वायदों से,
चुनाव के बाद,
आप सब जानते हैं ?
आप जनता है,
धनियों के समाचार पत्र नहीं,
जो पहले पेज पर विज्ञापन छापते हैं,
और जनता को किनारे लगा देते हैं.
अमेरिका में ट्रम्प महोदय
और भारत में नोट बंदी?
कार्पोरेटर भी कितने निर्दयी हैं,
जिन्होंने बिना कतार में खड़े हुए,
जिन्होंने बैंक से उधार नोट दिये,
कितने बेगैरत हैं ये
नोटबंदी में उन्होंने बैंक की कतार में
मरे १२० से अधिक मरे लोगों को श्रद्धांजलि
और मुआवजा भी नहीं दिया।
जो जनता देती है क्या वह हमेशा मरेगी?
काश हम (गरीब जनता) सभी साक्षर होते,
परिश्रमी होते
हिम्मत वाले होते
राजनीति का पाठ पढ़ते और पढ़ाते।
अपनी समस्याओं को लाल कार्ड देते,
और खुद बनाते सड़क और घर.
जिससे मिले सभी बेघरों को घर,
जिसके वह भले ही मालिक न होते,
पर देश के घरों में रहते और बिना मालिक बने ही
खाली खेतों में किसानी करते?
जब हम अपने भाई-बहन पर शक करते हैं?
तभी हम राजनीति में बंटते हैं.
जैसे बहनों को जायजाद में उनका हक़ नहीं देते
और आजीवन एकतरफा वात्सल्य और प्रेम में
जीवन बिता देते हैं.
जब हम लड़ते हैं?
कारपोरेट राजनीतिज्ञों को अपना मोहरा बनाते हैं
और जनता को मुर्गा?
अपनी ही मुर्गी के समूचे अंडे हम नहीं खा पाते
कर्ज उतारने के लिए हम उनको खिलाते हैं
जो हमको अक्सर हमारे भोलेपन से
फुसलाकर बहलाकर हमारा अँगूठा लगाकर
हमारा सब हथिया लेते हैं और
हमको हमारी जमीन पर किराए पर रहने भी नहीं देते
और हमेशा के लिए अनूठा दिखा देते हैं.
इस नोटबंदी में क़तर में
Vi savner Obama som president
og Hilary Clinton som aktivist.
Troumf spiller som en skulk
i USAS politiske skuespill.
पिछले साल ने
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे
(एक कविता निर्धन-विकासशील देशों की स्थिति पर )
(चित्र में मैं महात्मा गांधी जी की पोती इला गांधी जी को वैश्विकता का अंक दे रहा हूँ.)
अमेरिका में राष्ट्रपति का पद,
ओबामा के बिना कुछ रीता-रीता लगता है.
बेशक ट्रम्प ही राजनैतिक नाटक के कलाकार हैं,
जो हर तरह के किरदार निभाते हैं.
चुनाव से पहले बहलाते हैं अपने वायदों से,
चुनाव के बाद,
आप सब जानते हैं ?
आप जनता है,
धनियों के समाचार पत्र नहीं,
जो पहले पेज पर विज्ञापन छापते हैं,
और जनता को किनारे लगा देते हैं.
अमेरिका में ट्रम्प महोदय
और भारत में नोट बंदी?
कार्पोरेटर भी कितने निर्दयी हैं,
जिन्होंने बिना कतार में खड़े हुए,
जिन्होंने बैंक से उधार नोट दिये,
कितने बेगैरत हैं ये
नोटबंदी में उन्होंने बैंक की कतार में
मरे १२० से अधिक मरे लोगों को श्रद्धांजलि
और मुआवजा भी नहीं दिया।
जो जनता देती है क्या वह हमेशा मरेगी?
काश हम (गरीब जनता) सभी साक्षर होते,
परिश्रमी होते
हिम्मत वाले होते
राजनीति का पाठ पढ़ते और पढ़ाते।
अपनी समस्याओं को लाल कार्ड देते,
और खुद बनाते सड़क और घर.
जिससे मिले सभी बेघरों को घर,
जिसके वह भले ही मालिक न होते,
पर देश के घरों में रहते और बिना मालिक बने ही
खाली खेतों में किसानी करते?
जब हम अपने भाई-बहन पर शक करते हैं?
तभी हम राजनीति में बंटते हैं.
जैसे बहनों को जायजाद में उनका हक़ नहीं देते
और आजीवन एकतरफा वात्सल्य और प्रेम में
जीवन बिता देते हैं.
जब हम लड़ते हैं?
कारपोरेट राजनीतिज्ञों को अपना मोहरा बनाते हैं
और जनता को मुर्गा?
अपनी ही मुर्गी के समूचे अंडे हम नहीं खा पाते
कर्ज उतारने के लिए हम उनको खिलाते हैं
जो हमको अक्सर हमारे भोलेपन से
फुसलाकर बहलाकर हमारा अँगूठा लगाकर
हमारा सब हथिया लेते हैं और
हमको हमारी जमीन पर किराए पर रहने भी नहीं देते
और हमेशा के लिए अनूठा दिखा देते हैं.
इस नोटबंदी में क़तर में
Du i et år (i fjor) mistet det. Hva har du oppnådd, hva gjorde.
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