Gratulerer med valget i fem delstater i India.
चुनाव में जीत के लिए सभी दलों के जीते सदस्यों को बधाई। बहुमत से
जीते राजनैतिक दलों को विशेष बधाई।
यह प्रजातंत्र की जीत है. भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है. अनेकशः बधाई।
विपक्ष और विरोध बिना लोकतंत्र गूँगा है. भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए बधाई, कांग्रेस को पंजाब में जीत के लिये और जनता को बधाई कि शान्ति बनाये रखा.
1-
अब केंद्र साकार को चाहिये कि सभी सांसदों को राजनैतिक शिक्षा की अनिवार्य कक्षायें लगवाये जिसमें आचार व्यवहार और
कैसे और क्या सार्वजनिक बोलना है उसे सिखाये। सभी राजनैतिक पार्टियों को साथ लेकर कार्य किया जाये क्योंकि यह प्रजातंत्र के लिये बहुत जरूरी है. विपक्षी दलों के योग्य व्यक्तियों को भी सरकारी और संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण जगह दें तभी भारत में हम अपनी योग्यता और देश के लिए अच्छे कार्यकर्ताओं का सहयोग ले सकेंगे।
2-
विदेशों से सीखें। जो अधिकतर नेता भारत से विदेशों में राजनैतिक प्रणाली सीखने आते हैं वह खरीददारी में लगकर रह जाते हैं और उन मीटिंगों में नहीं जाते जहाँ उन्हें सीखने के लिए भेजा जाता है. प्रजातंत्र को बेहतर और सुदृढ़ बनायें।
3-
नेताओं को अपने कर्तव्यों का सही ध्यान नहीं रहता। यदि कोई पुजारी है और सांसद है तो उसे पता होना चाहिए कि धर्म से पहले राष्ट्रधर्म है जबकि चुनाव में बहुत जगह सत्ता का और प्रजातंत्र का सभी दलों के नेताओं ने मनमानी बयान देकर लोगों को भड़काकर मजाक उड़ाया।
इसके लिए भारत में साक्षरता शतप्रतिशत करने की जरूरत है तभी जनसँख्या में सुधार होगा और अधिक से अधिक लोग राजनैतिक और सामजिक कार्यों में सहयोग दे सकेंगे।
4-
सही आलोचक को प्रोत्साहन दें: निंदक नियरे राखिये, इससे अनहोनी होने से रुक जाएगी।
मैंने अपने अनुभवों से देखा है कि पत्रकारिता और हिंदी सेवा के कारण मैंने अपनी पत्रिका में सभी को जगह दी जिसके लिए अपनों और गैरों दोनों से आलोचना सही पर किसी को गलत नहीं करने दिया पर आलोचना नहीं की, न ही गड़े मुर्दे उखाड़े।उसके बाद सभी को अपनी पत्रिका में स्पेस दिया जबकि कोई पत्रिका (अधिकाँश पत्रिकायें) ऐसा करती मुझे नजर नहीं आती.
चाहे वह सन १९८२-८४ में पंजाब समस्या हो. इसी तरह अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं. जिसके लिए मुझे सम्पादन के लिए धर्मवीर भारती, राजेन्द्र अवस्थी, गिरिजाशंकर त्रिवेदी, वचनेश त्रिपाठी, कन्हैया लाल नन्दन, रघुवीर सहाय, विलायत जाफरी,
आदि की प्रशंसा उनकी पत्रिकाओं और पत्रों से प्राप्त हुई.
5-
इसलिए जरूरी है जब केंद्र और राज्य सरकारें कोई प्रोमोशन और प्रोत्साहन की योजना बनाएं तो अपनी पार्टी के लोगों के साथ-साथ उनका ध्यान भी दें जिन्होंने सभी के साथ समन्वय करके सभी के अच्छे कार्यों का साथ दिया। जिन्होंने विदेशों में अपने देश का नाम किया और वहां भी पुरस्कार और ख्याति-प्रतिष्ठा पायी जिससे केवल भारत का ही नाम हुआ.
चुनाव में जीत के लिए सभी दलों के जीते सदस्यों को बधाई। बहुमत से
जीते राजनैतिक दलों को विशेष बधाई।
यह प्रजातंत्र की जीत है. भारत जैसे सबसे बड़े लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है. अनेकशः बधाई।
विपक्ष और विरोध बिना लोकतंत्र गूँगा है. भाजपा को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के लिए बधाई, कांग्रेस को पंजाब में जीत के लिये और जनता को बधाई कि शान्ति बनाये रखा.
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अब केंद्र साकार को चाहिये कि सभी सांसदों को राजनैतिक शिक्षा की अनिवार्य कक्षायें लगवाये जिसमें आचार व्यवहार और
कैसे और क्या सार्वजनिक बोलना है उसे सिखाये। सभी राजनैतिक पार्टियों को साथ लेकर कार्य किया जाये क्योंकि यह प्रजातंत्र के लिये बहुत जरूरी है. विपक्षी दलों के योग्य व्यक्तियों को भी सरकारी और संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण जगह दें तभी भारत में हम अपनी योग्यता और देश के लिए अच्छे कार्यकर्ताओं का सहयोग ले सकेंगे।
2-
विदेशों से सीखें। जो अधिकतर नेता भारत से विदेशों में राजनैतिक प्रणाली सीखने आते हैं वह खरीददारी में लगकर रह जाते हैं और उन मीटिंगों में नहीं जाते जहाँ उन्हें सीखने के लिए भेजा जाता है. प्रजातंत्र को बेहतर और सुदृढ़ बनायें।
3-
नेताओं को अपने कर्तव्यों का सही ध्यान नहीं रहता। यदि कोई पुजारी है और सांसद है तो उसे पता होना चाहिए कि धर्म से पहले राष्ट्रधर्म है जबकि चुनाव में बहुत जगह सत्ता का और प्रजातंत्र का सभी दलों के नेताओं ने मनमानी बयान देकर लोगों को भड़काकर मजाक उड़ाया।
इसके लिए भारत में साक्षरता शतप्रतिशत करने की जरूरत है तभी जनसँख्या में सुधार होगा और अधिक से अधिक लोग राजनैतिक और सामजिक कार्यों में सहयोग दे सकेंगे।
4-
सही आलोचक को प्रोत्साहन दें: निंदक नियरे राखिये, इससे अनहोनी होने से रुक जाएगी।
मैंने अपने अनुभवों से देखा है कि पत्रकारिता और हिंदी सेवा के कारण मैंने अपनी पत्रिका में सभी को जगह दी जिसके लिए अपनों और गैरों दोनों से आलोचना सही पर किसी को गलत नहीं करने दिया पर आलोचना नहीं की, न ही गड़े मुर्दे उखाड़े।उसके बाद सभी को अपनी पत्रिका में स्पेस दिया जबकि कोई पत्रिका (अधिकाँश पत्रिकायें) ऐसा करती मुझे नजर नहीं आती.
चाहे वह सन १९८२-८४ में पंजाब समस्या हो. इसी तरह अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं. जिसके लिए मुझे सम्पादन के लिए धर्मवीर भारती, राजेन्द्र अवस्थी, गिरिजाशंकर त्रिवेदी, वचनेश त्रिपाठी, कन्हैया लाल नन्दन, रघुवीर सहाय, विलायत जाफरी,
आदि की प्रशंसा उनकी पत्रिकाओं और पत्रों से प्राप्त हुई.
5-
इसलिए जरूरी है जब केंद्र और राज्य सरकारें कोई प्रोमोशन और प्रोत्साहन की योजना बनाएं तो अपनी पार्टी के लोगों के साथ-साथ उनका ध्यान भी दें जिन्होंने सभी के साथ समन्वय करके सभी के अच्छे कार्यों का साथ दिया। जिन्होंने विदेशों में अपने देश का नाम किया और वहां भी पुरस्कार और ख्याति-प्रतिष्ठा पायी जिससे केवल भारत का ही नाम हुआ.
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