लन्दन-बर्मिंघम की यादें दिल्ली प्रेस क्लब में -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
प्रेस क्लब दिल्ली में लगातार दो दिन गया. पहले दिन अपने देशबंधु अखबार के जाने-माने राजनैतिक सम्पादक शेष नारायण सिंह के आमंत्रण पर उनके साथ 27 मार्च को दिल्ली प्रेसक्लब में लांच किया था.
और और दूसरे दिन 28 मार्च 2018 को कवि मित्र शिव कुमार बिलगीरामी ने उन्होंने बताया कि लन्दन के के बी एल सक्सेना जी आये हुए हैं और वह भी आ रहे हैं, आप भी आइये। अतः मैं वहां समय से पहुँच गया था.
शिव कुमार बिलगीरामी जी अभी कुछ वर्षों से गजल लेखन में अद्भुत नाम कमाया है.
शेष नारायण सिंह हिन्दी उर्दू में कालम लिखते हैं और देशबन्धु अखबार में राजनैतिक सम्पादक हैं. वह एन डी टी वी के अलावा अब अनेक टी वी चैनलों में राजनैतिक विशेषज्ञ के रूप में बुलाये जाते रहे हैं.
प्रेस क्लब, नयी दिल्ली में लन्दन श्री के बी एल सक्सेना जी ने बताया कि गत 15-20 वर्षों से लन्दन नहीं गया हूँ. यह सही है जहाँ तक मुझे स्मरण है कि विश्व हिंदी सम्मलेन (1999) के बाद मेरा लन्दन जाना कम हुआ है. परन्तु इस बीच मैं एक बार तेजेन्द्र शर्मा जी से मिलने गया था जब सूरज प्रकाश जी लन्दन आये थे. पिछले वर्ष लन्दन पुस्तक मेले और इन्टरनेशनल राइटर फोरम की बैठक में गया था.
दिल्ली प्रेसक्लब में मेरा आना-जाना बहुत पहले शुरू हो गया था.
अपने समय के कादम्बिनी और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक और प्रसिद्द लेखक राजेंद्र अवस्थी जी के साथ. उसके बाद गीतकार धनंजय सिंह और राजेश चेतन जी के साथ आया हूँ. पर जब से मैंने देशबन्धु में यूरोपीय सम्पादक की हैसियत से लिखना शुरू किया है अक्सर शेषनारायण जी के साथ यहाँ आता हूँ.
सक्सेना जी को देखकर मुझे लन्दन और मैनचेस्टर के पुराने दिन याद आ गये. उन दिनों मैं भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में अधिक छपता था और विदेशी मंचों पर कवितापाठ भी ज्यादा करता था. उस समय अधिकतर लन्दन और मैनचेस्टर की साहित्यिक ख़बरें मेरी कलम से लिखी होती थीं. कादम्बिनी, नवनीत और लखनऊ का स्वतन्त्र भारत लन्दन के इंडिया न्यूज, अमरदीप में तथा नार्वे की परिचय और स्पाइल-दर्पण में और अन्य पत्रों में.
जैसे जैसे लन्दन में साहित्यिक गतिविधियों का विकास होता गया मेरा जाना भी कम हो गया हालांकि इस संयोग का मेरे आने-जाने से सीधा सम्बन्ध नहीं है.
उस समय मेरे दो साक्षात्कार एशिया टी वी में और दो बार कविसम्मेलनों का प्रसारण जिसमें मैं भी सम्मिलित था. जी टी वी के कार्यक्रम में भी मुझे अपनी कविता पाठ करने का मौक़ा मिला।
बी बी सी हिंदी का तो कोई जवाब नहीं।
श्री विष्णु शर्मा, श्री जगदीश मित्र कौशल (सम्पादक, अमरदीप साप्ताहिक), मेयर और सांसद श्री वीरेंद्र शर्मा व सत्येंद्र श्रीवास्तव जी को भुलाना आसान नहीं है.
मैनचेस्टर के चिकित्सक और समाजसेवी पाठक दम्पति (डॉ सतीश और डॉ लता पाठक), डॉ रणजीत सुमरा, श्री राम पाण्डेय, श्यामा कुमार आदि मेरे स्मरणों में हमेशा रहेंगे।
लन्दन में सरिता सबरवाल और रवि शर्मा जैसों ने भी अकेले मीडिया और संस्कृति में अनेक ऊँचाइयाँ छुई हैं.
उपरोक्त चित्र प्रेसक्लब नयी दिल्ली में 28 मार्च 2018 खींची गयी है.
यू के ने मुझे एक कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया जहाँ मुझे अनेक
कवियों, मित्रों और विशेषकर डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी का सानिध्य
मिला। जबकि कादम्बिनी पत्रिका दिल्ली से मुझे कहानीकार के रूप में
प्रतिष्ठित किया।
1999 के बाद मैं मैनचेस्टर और बर्मिंघम तीन बार गया हूँ डॉ कृष्ण कुमार जी के आमंत्रण पर. दो साल पहले बर्मिंघम के मेयर आफिस में खींची तस्वीर.
बर्मिंघम में डॉ कृष्ण कुमार, शैल अग्रवाल, तीक्षिता शाह, चंचल जैन और स्वर्ण तलवार जैसे कर्मठ और व्यवहारशील रचनाकारों से हिंदी की शक्ति का आभास होता है.
प्रेस क्लब दिल्ली में लगातार दो दिन गया. पहले दिन अपने देशबंधु अखबार के जाने-माने राजनैतिक सम्पादक शेष नारायण सिंह के आमंत्रण पर उनके साथ 27 मार्च को दिल्ली प्रेसक्लब में लांच किया था.
और और दूसरे दिन 28 मार्च 2018 को कवि मित्र शिव कुमार बिलगीरामी ने उन्होंने बताया कि लन्दन के के बी एल सक्सेना जी आये हुए हैं और वह भी आ रहे हैं, आप भी आइये। अतः मैं वहां समय से पहुँच गया था.
शिव कुमार बिलगीरामी जी अभी कुछ वर्षों से गजल लेखन में अद्भुत नाम कमाया है.
शेष नारायण सिंह हिन्दी उर्दू में कालम लिखते हैं और देशबन्धु अखबार में राजनैतिक सम्पादक हैं. वह एन डी टी वी के अलावा अब अनेक टी वी चैनलों में राजनैतिक विशेषज्ञ के रूप में बुलाये जाते रहे हैं.
प्रेस क्लब, नयी दिल्ली में लन्दन श्री के बी एल सक्सेना जी ने बताया कि गत 15-20 वर्षों से लन्दन नहीं गया हूँ. यह सही है जहाँ तक मुझे स्मरण है कि विश्व हिंदी सम्मलेन (1999) के बाद मेरा लन्दन जाना कम हुआ है. परन्तु इस बीच मैं एक बार तेजेन्द्र शर्मा जी से मिलने गया था जब सूरज प्रकाश जी लन्दन आये थे. पिछले वर्ष लन्दन पुस्तक मेले और इन्टरनेशनल राइटर फोरम की बैठक में गया था.
दिल्ली प्रेसक्लब में मेरा आना-जाना बहुत पहले शुरू हो गया था.
अपने समय के कादम्बिनी और साप्ताहिक हिन्दुस्तान के सम्पादक और प्रसिद्द लेखक राजेंद्र अवस्थी जी के साथ. उसके बाद गीतकार धनंजय सिंह और राजेश चेतन जी के साथ आया हूँ. पर जब से मैंने देशबन्धु में यूरोपीय सम्पादक की हैसियत से लिखना शुरू किया है अक्सर शेषनारायण जी के साथ यहाँ आता हूँ.
सक्सेना जी को देखकर मुझे लन्दन और मैनचेस्टर के पुराने दिन याद आ गये. उन दिनों मैं भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में अधिक छपता था और विदेशी मंचों पर कवितापाठ भी ज्यादा करता था. उस समय अधिकतर लन्दन और मैनचेस्टर की साहित्यिक ख़बरें मेरी कलम से लिखी होती थीं. कादम्बिनी, नवनीत और लखनऊ का स्वतन्त्र भारत लन्दन के इंडिया न्यूज, अमरदीप में तथा नार्वे की परिचय और स्पाइल-दर्पण में और अन्य पत्रों में.
जैसे जैसे लन्दन में साहित्यिक गतिविधियों का विकास होता गया मेरा जाना भी कम हो गया हालांकि इस संयोग का मेरे आने-जाने से सीधा सम्बन्ध नहीं है.
उस समय मेरे दो साक्षात्कार एशिया टी वी में और दो बार कविसम्मेलनों का प्रसारण जिसमें मैं भी सम्मिलित था. जी टी वी के कार्यक्रम में भी मुझे अपनी कविता पाठ करने का मौक़ा मिला।
बी बी सी हिंदी का तो कोई जवाब नहीं।
श्री विष्णु शर्मा, श्री जगदीश मित्र कौशल (सम्पादक, अमरदीप साप्ताहिक), मेयर और सांसद श्री वीरेंद्र शर्मा व सत्येंद्र श्रीवास्तव जी को भुलाना आसान नहीं है.
मैनचेस्टर के चिकित्सक और समाजसेवी पाठक दम्पति (डॉ सतीश और डॉ लता पाठक), डॉ रणजीत सुमरा, श्री राम पाण्डेय, श्यामा कुमार आदि मेरे स्मरणों में हमेशा रहेंगे।
लन्दन में सरिता सबरवाल और रवि शर्मा जैसों ने भी अकेले मीडिया और संस्कृति में अनेक ऊँचाइयाँ छुई हैं.
उपरोक्त चित्र प्रेसक्लब नयी दिल्ली में 28 मार्च 2018 खींची गयी है.
यू के ने मुझे एक कवि के रूप में प्रतिष्ठित किया जहाँ मुझे अनेक
कवियों, मित्रों और विशेषकर डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी का सानिध्य
मिला। जबकि कादम्बिनी पत्रिका दिल्ली से मुझे कहानीकार के रूप में
प्रतिष्ठित किया।
1999 के बाद मैं मैनचेस्टर और बर्मिंघम तीन बार गया हूँ डॉ कृष्ण कुमार जी के आमंत्रण पर. दो साल पहले बर्मिंघम के मेयर आफिस में खींची तस्वीर.
बर्मिंघम में डॉ कृष्ण कुमार, शैल अग्रवाल, तीक्षिता शाह, चंचल जैन और स्वर्ण तलवार जैसे कर्मठ और व्यवहारशील रचनाकारों से हिंदी की शक्ति का आभास होता है.
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