देश (समाज) बचाना जरूरी है
-सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे
हवा के महल बनाना मेरा काम नहीं,
दलित मारा जाये, वह हिन्दुस्तान नहीं।
जनता के प्रतिनधि जब बलात्कारी हों,
ऐसे शासन से झुकता, वह इंसान नहीं।।
मन्दिर की देवियाँ, लाज बचाने यदि न आयीं,
सड़क पर विचर देवियाँ, सिंघासन पर बैठेंगी।
घर-घर बाल बाजदूरों की बेबसी लूटने वालों!
नवरात्रों पर कन्यायें, मन में शाप दिए लौटेंगी।।
बस्ती-नगरों-कारखानों में देवी-श्रमबालायें,
कौड़ी के भाव जब जूठन नहीं साफ़ करेगीं।
चोरी-सीना जोरी से धन काला करने वालों,
जनता जगी अगर, चोरों के मुख कालिख पोतेगी।।
जिसका जमीर मरा हो, वह इंसान नहीं,
श्रमसीकर से सींचें उसका हिन्दुस्तान कहाँ?
किसान आत्महत्या करे, बच्चे दर-दर भटकें?
उनके मन्दिर-मस्जिद में अब भगवान कहाँ ?
बिना श्रम किये यहाँ साधू सन्यासी बनकर,
नेता धनवानों की दलाली जहाँ खाते हो,
सच्चे नेता जेलों की सलाखों के पीछे हैं,
दोषी/ साधू को सत्ता मंत्री जहाँ बनाते है।।
झूठ बोलना -चापलूसी कवियों का काम नहीं।
निहत्थे प्रदर्शनकारी पर कायर सा वार नहीं?
कार्पोरेटर की जूती जनता के धन से चाटे,
जनता बोलेगी कि अब उनका हिन्दुस्तान नहीं।।
घोर अधर्मी, बच्चों को नरक भेजने वालों,
गुंडे बलात्कारी से छुड़ाओ, देश लूट रहा?
अपराधी-नेता को जब सरकार बचायेगी?
जनता देश बचाने, कैसे आगे आयेगी।।
सच्चाई से मुख मोड़ना, कवियों का धरम नहीं,
जातिपात में हमको बाँटे, ऐसे हैं शैतान यहाँ?
बलात्कार अपराधी, जहाँ खुले आम घूमते हैं!
लुटे बिना घर नारी आये, वह भारत देश कहाँ?
बिना जाँच, रात सड़क पर वाहन आते-जाते हैं,
खुले आम उनसे रखवाले पैसे ले जाने देते हैं
अन्याय देख चुप रहना, कायरता बीमारी है?
सरहद पर फ़ौजी मरकर देश की रक्षा करते हैं।।
नवरात्रि -कन्याभोज नहीं, शिक्षा बहुत जरूरी है.
भेदभाव नहीं रखें, श्रमपूजा बहुत जरूरी है।
लघु व्यापार-श्रमिक शिक्षा को बढ़ावा देना तुम,
उद्योंगों का केन्द्रीयकरण, देश बचाना जरूरी है।।
ओस्लो, 09.04.2018
suresh@shukla.no
-सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे
हवा के महल बनाना मेरा काम नहीं,
दलित मारा जाये, वह हिन्दुस्तान नहीं।
जनता के प्रतिनधि जब बलात्कारी हों,
ऐसे शासन से झुकता, वह इंसान नहीं।।
मन्दिर की देवियाँ, लाज बचाने यदि न आयीं,
सड़क पर विचर देवियाँ, सिंघासन पर बैठेंगी।
घर-घर बाल बाजदूरों की बेबसी लूटने वालों!
नवरात्रों पर कन्यायें, मन में शाप दिए लौटेंगी।।
बस्ती-नगरों-कारखानों में देवी-श्रमबालायें,
कौड़ी के भाव जब जूठन नहीं साफ़ करेगीं।
चोरी-सीना जोरी से धन काला करने वालों,
जनता जगी अगर, चोरों के मुख कालिख पोतेगी।।
जिसका जमीर मरा हो, वह इंसान नहीं,
श्रमसीकर से सींचें उसका हिन्दुस्तान कहाँ?
किसान आत्महत्या करे, बच्चे दर-दर भटकें?
उनके मन्दिर-मस्जिद में अब भगवान कहाँ ?
बिना श्रम किये यहाँ साधू सन्यासी बनकर,
नेता धनवानों की दलाली जहाँ खाते हो,
सच्चे नेता जेलों की सलाखों के पीछे हैं,
दोषी/ साधू को सत्ता मंत्री जहाँ बनाते है।।
झूठ बोलना -चापलूसी कवियों का काम नहीं।
निहत्थे प्रदर्शनकारी पर कायर सा वार नहीं?
कार्पोरेटर की जूती जनता के धन से चाटे,
जनता बोलेगी कि अब उनका हिन्दुस्तान नहीं।।
घोर अधर्मी, बच्चों को नरक भेजने वालों,
गुंडे बलात्कारी से छुड़ाओ, देश लूट रहा?
अपराधी-नेता को जब सरकार बचायेगी?
जनता देश बचाने, कैसे आगे आयेगी।।
सच्चाई से मुख मोड़ना, कवियों का धरम नहीं,
जातिपात में हमको बाँटे, ऐसे हैं शैतान यहाँ?
बलात्कार अपराधी, जहाँ खुले आम घूमते हैं!
लुटे बिना घर नारी आये, वह भारत देश कहाँ?
बिना जाँच, रात सड़क पर वाहन आते-जाते हैं,
खुले आम उनसे रखवाले पैसे ले जाने देते हैं
अन्याय देख चुप रहना, कायरता बीमारी है?
सरहद पर फ़ौजी मरकर देश की रक्षा करते हैं।।
नवरात्रि -कन्याभोज नहीं, शिक्षा बहुत जरूरी है.
भेदभाव नहीं रखें, श्रमपूजा बहुत जरूरी है।
लघु व्यापार-श्रमिक शिक्षा को बढ़ावा देना तुम,
उद्योंगों का केन्द्रीयकरण, देश बचाना जरूरी है।।
ओस्लो, 09.04.2018
suresh@shukla.no
कवि सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' को नागरी लिपि नयी दिल्ली द्वारा सम्मानित करते
चित्र में बायें से डॉ विनोद बब्बर, डॉ हरी सिंह पाल, स्वयं कवि सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
और डॉ परमानन्द पांचाल पुस्तक मेला, दिल्ली में जनवरी 2018 में.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें