भारतीय डेमोक्रेसी कहाँ जा रही है? - शरद आलोक, ओस्लो, 20.06.19
राजनैतिक पार्टियों के सदस्यों को तोड़ना और मिलाना मेरी नजर में अलोकतांत्रिक और अनैतिक है!
भारतीय राजनीति में एक दूसरी राजनैतिक पार्टियों के सदस्यों को तोड़ने, मिलाने और उसे प्रोत्साहित करने के कारण विदेशों में इस प्रक्रिया को हास्यपद बना दिया है. इससे भ्र्ष्टाचार को बढ़ावा मिलता है और जनता के फैसले की इज्जत का ध्यान नहीं दिया जाता। राजनैतिक पार्टियों के सदस्यों को तोड़ने में समर्थन देने में देश की अनेक प्रतिष्ठित संस्थाएं लगी हुई हैं ऐसा लगता है.
अभी चुनाव नहीं है पर आगामी चुनाव के लिए अभी से कुछ पार्टी के लोग लोग जनता के घरों और उनके कार्यस्थल पर चक्कर लगाना शुरू कर दिया है और वहां डेरा डाला हुआ है.
ऐसा यहाँ नहीं होता इसे किसी की निजी स्वतंत्रता का हनन माना जाता है.
भारत में राजनैतिक पार्टियों की टी वी और सार्वजनिक स्थलों पर नेताओं की डिबेट नहीं होती। इस बात को जनता को बताया जाना चाहिए कि यह लोकतंत्र के घटते स्तर की बात है और लोकतान्त्रिक नहीं है.
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