धनञ्जय सिंह का एक संस्मरण 'मिल्क केक'
प्रसंग वर्ष १९७० या १९७१ का है ! डी.ए.वी. कॉलेज, मुजफ्फर नगर के कवि -सम्मलेन से मैं, राष्ट्रकवि श्री सोहनलाल जी द्विवेदी और श्री संतोषानंद कार से लौट रहे थे ! मुझे गाज़ियाबाद छोड़कर द्विवेदीजी और संतोषानंद जी को दिल्ली जाना था ! गाज़ियाबाद पहुँचने से कुछ देर पहले द्विवेदी जी ने मुझसे कहा , "धनञ्जय सुना है तुम्हारे गाज़ियाबाद का मिल्क केक बहुत मशहूर है!" मैंने कहा, " जी आपने सही सुना है! आज आप खाकर भी देखेंगे और स्वयं इस बात की पुष्टि करेंगे!"
मुझे पहुंचाने के लिए कार मेरे घर के बाहर आकर रुकी ! मैंने दोनों विभूतियों से अंदर चलने का निवेदन किया और वे अंदर आ गये !
मैं मिल्क केक की व्यवस्था में लगा था कि यह खबर मोहल्ले भर में फ़ैल गयी कि राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी हमारे घर आये हुए हैं !
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाएं होकर चुकी थीं और हाई स्कूल परीक्षा में द्विवेदी जी की जीवनी लिखने का प्रश्न भी आया था ! फलतः घर के बाहर उनके दर्शनार्थ भीड़ एकत्र हो गयी ! मेरे अनुरोध पर द्विवेदीजी बाहर निकल कर भी आये ! मैं तो अनायास ही मोहल्ले में विशिष्ट व्यक्ति बन गया था !
द्विवेदीजी का स्नेह मुझ पर आजीवन बना रहा ! पत्राचार भी चलता रहा !
द्विवेदीजी के निधन के बाद उनके सुपुत्र श्री प्रभुदयाल द्विवेदी जी ने एक स्मृति ग्रन्थ में मेरा आलेख भी सम्मिलित किया था!
------- धनञ्जय सिंह.
प्रसंग वर्ष १९७० या १९७१ का है ! डी.ए.वी. कॉलेज, मुजफ्फर नगर के कवि -सम्मलेन से मैं, राष्ट्रकवि श्री सोहनलाल जी द्विवेदी और श्री संतोषानंद कार से लौट रहे थे ! मुझे गाज़ियाबाद छोड़कर द्विवेदीजी और संतोषानंद जी को दिल्ली जाना था ! गाज़ियाबाद पहुँचने से कुछ देर पहले द्विवेदी जी ने मुझसे कहा , "धनञ्जय सुना है तुम्हारे गाज़ियाबाद का मिल्क केक बहुत मशहूर है!" मैंने कहा, " जी आपने सही सुना है! आज आप खाकर भी देखेंगे और स्वयं इस बात की पुष्टि करेंगे!"
मुझे पहुंचाने के लिए कार मेरे घर के बाहर आकर रुकी ! मैंने दोनों विभूतियों से अंदर चलने का निवेदन किया और वे अंदर आ गये !
मैं मिल्क केक की व्यवस्था में लगा था कि यह खबर मोहल्ले भर में फ़ैल गयी कि राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी हमारे घर आये हुए हैं !
उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षाएं होकर चुकी थीं और हाई स्कूल परीक्षा में द्विवेदी जी की जीवनी लिखने का प्रश्न भी आया था ! फलतः घर के बाहर उनके दर्शनार्थ भीड़ एकत्र हो गयी ! मेरे अनुरोध पर द्विवेदीजी बाहर निकल कर भी आये ! मैं तो अनायास ही मोहल्ले में विशिष्ट व्यक्ति बन गया था !
द्विवेदीजी का स्नेह मुझ पर आजीवन बना रहा ! पत्राचार भी चलता रहा !
द्विवेदीजी के निधन के बाद उनके सुपुत्र श्री प्रभुदयाल द्विवेदी जी ने एक स्मृति ग्रन्थ में मेरा आलेख भी सम्मिलित किया था!
------- धनञ्जय सिंह.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें