महराष्ट्र में धनतेरस की बधाई
- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
महाराष्ट्र में जनता ने सरकार बनवायी,
सरकार ने कार्परेटरों के लिए
धनतेरस और दीवाली बनायी
जनता हाथ मल रही है,
जिताकर फिर से जनता हार गयी है?
नैतिकता और सत्य का गला घुट रहा है
नेता का हौंसला बढ़ रहा
जनता की उम्र कम हो रही है.
हाँ यह भारतीय प्रजातंत्र है?
जहाँ सभी बच्चे स्कूल नहीं जाते?
साक्षरता, बच्चों की शिक्षा पर
कार्पोरेटर और सरकार मौन वृत है?
देश की सार्वजानिक प्रॉपर्टी की
नीलामी और टेंडर भी नहीं?
केवल अपने चहेतों को स्थान्तरित हो रही हैं?
इसी तरह रामराज्य की स्थापना हो रही है?
आज धनतेरस है,
जनता ने महाराष्ट्र में दोबारा सरकार बनाकर,
सरकार को दिया है तोहफा।
सरकार ने आत्महत्या कर रहे किसानों को
कर दिया अनदेखा।
गरीबों की मृत्यु पर तुम्हारा जश्न
नैतिकता से उसे कुचलना जारी है.
तुम्हारी विजय जनता की लाचारी है.
सरकार सोचती है चुनाव के पहले
सरकार का दलबदल अभियान
जनता जाएगी भूल
नए नाम से उसे चुभाने आएंगे शूल.
जनता को मरने-मिटने पर
खुद राज्य मिलने पर नेता-सेनापति
झोक रहे हैं जनता की आँखों में धूल..
दलबदल का ठेका
शक्ति से निपटने का सरकारी दाँव,
विपक्षी को फँसाने का हथियार
खुले आम वार कर रहे हैं?
सभी अपनी पारी का
इन्तजार कर रहे हैं?
-सुरेशचन्द्र शुक्ल, लेखक, ओस्लो
- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
महाराष्ट्र में जनता ने सरकार बनवायी,
सरकार ने कार्परेटरों के लिए
धनतेरस और दीवाली बनायी
जनता हाथ मल रही है,
जिताकर फिर से जनता हार गयी है?
नैतिकता और सत्य का गला घुट रहा है
नेता का हौंसला बढ़ रहा
जनता की उम्र कम हो रही है.
हाँ यह भारतीय प्रजातंत्र है?
जहाँ सभी बच्चे स्कूल नहीं जाते?
साक्षरता, बच्चों की शिक्षा पर
कार्पोरेटर और सरकार मौन वृत है?
देश की सार्वजानिक प्रॉपर्टी की
नीलामी और टेंडर भी नहीं?
केवल अपने चहेतों को स्थान्तरित हो रही हैं?
इसी तरह रामराज्य की स्थापना हो रही है?
आज धनतेरस है,
जनता ने महाराष्ट्र में दोबारा सरकार बनाकर,
सरकार को दिया है तोहफा।
सरकार ने आत्महत्या कर रहे किसानों को
कर दिया अनदेखा।
गरीबों की मृत्यु पर तुम्हारा जश्न
नैतिकता से उसे कुचलना जारी है.
तुम्हारी विजय जनता की लाचारी है.
सरकार सोचती है चुनाव के पहले
सरकार का दलबदल अभियान
जनता जाएगी भूल
नए नाम से उसे चुभाने आएंगे शूल.
जनता को मरने-मिटने पर
खुद राज्य मिलने पर नेता-सेनापति
झोक रहे हैं जनता की आँखों में धूल..
दलबदल का ठेका
शक्ति से निपटने का सरकारी दाँव,
विपक्षी को फँसाने का हथियार
खुले आम वार कर रहे हैं?
सभी अपनी पारी का
इन्तजार कर रहे हैं?
-सुरेशचन्द्र शुक्ल, लेखक, ओस्लो
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