काशी में उतरे सितारे (कार्तिक पूर्णिमा पर उत्सव)
जमीं पर उतरे सितारे
असंख्य झिलमिलाती दीपों की
टिमटिमाती रोशनी से
जगमगाते
काशी के घाट।
गंगा की लहरों पर
दीपों की रश्मियां।
राजघाट से अस्सी तक
अर्द्धचंद्राकार शक्ल लिए घाट,
मानों किसी राजकुमारी के
गले में
पड़े स्वर्णाहार।
गंगा की बलखाती लहरों पर
दीपों के बनते प्रतिबिंब
ऐसा
प्रतीत हो रहा था
जैसे कोई सुंदरी सोलहो श्रृंगार कर
गंगा की लहरों में
अपना चेहरा निहार रही हो।
देव दीपावली पर चांद की चांदनी में,
दीयों की
रोशनी में
अधिक निखार आ गया था।
रोशनी से सराबोर धरती जैसे
सूरज से
मिलने चल पड़ी हो।
इस अद्भुत और अलौकिक नजारे
समीप से निहारने के लिए
हर
कोई आतुर रहा।
हम भी इस दृश्य को देखने के लिए बेताब
राजघाट से लगा अस्सी घाट
कहीं भी तिल रखने की जगह नहीं
दीयों की जगमगाहट देखकर
हर किसी ने कहा
सचमुच जमीं पर उतर आए सितारे।
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