अपनी सरकार नहीं तो किसी और की नहीं।
बी जे पी की सरकार नहीं तो किसी की नहीं।
शायद महामहिम राज्यपाल ने दो दिन की मोहलत देना प्रजातंत्र में ठीक नहीं समझा पर वह धरा और कारण नहीं बताया कि क्यों ऐसा जरूरी हो जाता है कि अक्सर जब बी जे पी की सरकार बनानी हो तो कभी जल्दी कभी बहुत समय दिया जाता है. हो सकता है उनका फैसला बदले, और भारत में डेमोक्रेसी के बारे में भगवान् जाने।
लोगों में चर्चा है कि भारत में मनमानी तरीके से शासन किया जाता है. चाहे महामहिम राज्यपाल हों या मुख्यमंत्री, यदि अपनी सरकार नहीं तो किसी और की नहीं। आज के दौर में भारत डेमोक्रेसी स्वीडेन और इंग्लैण्ड से सीखे।
भारत दुनिया का प्रजातंत्र है इसमें शक नहीं है पर अभी भी सूचना में और फ्रीडम आफ प्रेस में दुनिया में बहुत पीछे हैं. कभी-कभी तो भारतीय मामलों की सूचना विदेशी प्रेस या सोशल मीडिया से आती है. मुझे भारत पर गर्व है पर सभी राजनितिगों पर गर्व नहीं है जो देश को पीछे अपने फायदे पहले गिनते हैं. इस बात पर भारत में रायशुमारी से ज्यादा पता चल सकता है. जय हिन्द।
इमरजेंसी में मैंने एक कविता लिखी थी उसकी कुछ पंक्तियाँ यहाँ उद्घृत हैं इस पर आहूत लोगों ने लिखा है:
"नेता कुछ नहीं देता सब कुछ ले लेता।
झूठे वायदे, झूठे नारों से
सबको बस में कर लेता।
नेता कुछ नहीं देता सब कुछ ले लेता"
आज लिखने को मजबूर होना पड़ा:
"हमारी नहीं तुम्हारी भी नहीं बनने देंगे
आदर्शों को क्या लेकर चाटेंगे।
जब चाहे राह बदल लेंगे, हमारी मर्जी।
हम कांग्रेसी लौह पुरुष (सरदार पटेल) को
बी जे पी में मिला लेंगे।
माना देशभक्ति का गान ऊपर से करें,
हम चीन से ही मूर्ति बनवायेंगे।
भारतीय कलाकारों को मुँह नहीं लगाते,
जब चाहे उन्हें देशद्रोही बतायेंगे।
जानते हो हम तो गाँधी और उनके हत्यारों के
गुणगान करने वाले को सांसद और मंत्री बनाते हैं?
सभी के लिए द्वार खुले हैं यहाँ मित्रों!
सभी का साथ सभी का विकास हम कराते हैं।
धोबी के कुत्ते और गधे में हम फर्क क्यों करें?
सबको एक साथ गले लगाते हैं?"
आज लिखने को मजबूर होना पड़ा:
"हमारी नहीं तुम्हारी भी नहीं बनने देंगे
आदर्शों को क्या लेकर चाटेंगे।
जब चाहे राह बदल लेंगे, हमारी मर्जी।
हम कांग्रेसी लौह पुरुष (सरदार पटेल) को
बी जे पी में मिला लेंगे।
माना देशभक्ति का गान ऊपर से करें,
हम चीन से ही मूर्ति बनवायेंगे।
भारतीय कलाकारों को मुँह नहीं लगाते,
जब चाहे उन्हें देशद्रोही बतायेंगे।
जानते हो हम तो गाँधी और उनके हत्यारों के
गुणगान करने वाले को सांसद और मंत्री बनाते हैं?
सभी के लिए द्वार खुले हैं यहाँ मित्रों!
सभी का साथ सभी का विकास हम कराते हैं।
धोबी के कुत्ते और गधे में हम फर्क क्यों करें?
सबको एक साथ गले लगाते हैं?"
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', Oslo
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